वाराणसी. हमारे प्रदेश की एक कहावत, हमारे काका कहते रहे है अक्सर कि बतिया है कर्तुतिया नाही, मेहर है घर खटिया नाही. ता भैया अब बतिया तनिक समझ आई है काहे की खटिया का जमाना खत्म हो गया है, और ई तो जग जाहिरे है कि भैया हम बस बतियाते है. हम पहले ही आप सबका बता देते है कि हम बतिया करेगे अब का करे बतिया करने से समस्याएं भी हल हो जाती है मगर हम कैसे हल कर देंगे ? समस्या जब विकराल हो। तो भैया हम तो पहले ही कह देते है साफ़ साफ़ कि हम खाली बतियाते है, अब किसी को अगर इ बतिया से बुरा लगे तो न पढ़े भाई हम कोई जोर जबरदस्ती तो कर नहीं रहे है कि पढ़बे करो साहेब। तो साहेब बतिया शुरू करते है और बतिया की खटिया बिछा लेते है.
वैसे कहा जाये तो अपना सिस्टम खुद ही बीमार है मगर फिर भी समाज में इंसानों के इलाज के लिये अस्पताल है. इसी कड़ी में दालमंडी क्षेत्र में मरियम अस्पताल संचालित होता है जिसमे कोई पैसा नहीं लगता बल्कि इलाज होता है. यहाँ आने वाले मरीजों को सीवर के पानी से होकर जाना पड़ता है. बच्चे हो या बूढ़े या जवान, औरत हो या मर्द इस सीवर के पानी में उछाल कूद मारते हुवे जाने को मजबूर है अब आप खुद सोचे कि लोग इलाज के लिये पहुचते है तो इलाज के जगह बिमारी तो नहीं लगती होगी,
क्षेत्र के पार्षद सलीम का कहना है कि काम का बजट ही नहीं है. फाइल बनकर तैयार है मगर अभी तक पास नहीं हुई है. जब तक सीवर लाइन नहीं बदली जाती है तब तक क्षेत्र की इस समस्या का समाधान नहीं है. हम तो लगातार लगे है मगर फाइल पास ही नहीं हो रही है. जैसे ही फाइल पास हो जाती है वैसे ही काम लगवा दिया जायेगा.
दुकानदारो का कारोबार हो रहा है नष्ट.
सर पर त्यौहार आ जाने के बाद भी मार्किट में कोई चहलकदमी नहीं हो रही दुकानदारो का कहना है कि पूरा कारोबार ठप पड़ा है. बिक्री इस बहते सीवर में बह कर कही जा चुकी है. दूकान का खर्चा नहीं निकल पा रहा है, कभी कभी तो ऐसा होता है कि बोहनी तक नहीं हो पा रही है. मगर प्रशासन के कानो पर जू तक नहीं रेंगी.
भैया तो आज का बतिया सिर्फ इतना रहा, अब का बताये हमारे पास समस्या का निराकरण नहीं है. अब क बताये साहब हम तो पहले ही कह दिया रहा कि हम निराकरण कऊनो समस्या का नहीं कर पाते है, हम तो खाली बतियाते है और रही बात कुछ करने की तो इसके लिये नगर आयुक्त साहब कुछ करना चाहे तो कर सकते है. मगर जब 2017 से लेकर अभी तक साहब ने कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई तो अब क्या कर सकते है. वैसे हम कहते अगर नगर आयुक्त साहब कुछ करते है तो इस सीवर लाइन की कब तक तक मरम्मत करवा चुके होते और रही बात हमारी तो हम तो खाली बतियाते है और कुछ कर मही सकते है. तो अब बतियाना बंद करते है और बतिया की खटिया उठा लेते है.
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