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इलाहाबाद में अंतिम समय बिताना चाहते थे प्रेमचंद

कनिष्क गुप्ता

इलाहाबाद :  हिन्दी-उर्दू साहित्य का जिक्र हो तो भला मुंशी प्रेमचंद का जिक्र क्यों कर न आएगा? मगर प्रयाग का भी अपना आकर्षण है। इसलिए शब्दों से जीवन का चित्र खींच देने वाली यह अनुपम शख्सियत भी जीवन के अंतिम क्षण इस शहर में बिताना चाहती थी। बहरहाल आर्थिक दशा खराब होने के कारण उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी।

‘गोदान’ व ‘नमक का दारोगा’ जैसे उपन्यासों को लिखने वाले मुंशी प्रेमचंद्र भले ही वाराणसी में रहते थे लेकिन इलाहाबाद से भी उनका गहरा लगाव रहा है। उनका इलाहाबाद आना-जाना इसलिए लगा रहता था, क्योंकि उनके दोनों बेटे अमृत राय और श्रीपति यहीं अशोक नगर मोहल्ले में रहते थे। वह जब इलाहाबाद आते थे तो अपने बेटे के अशोक नगर स्थित आवास ‘धूप छांव’ में ही ठहरते थे। यहां साहित्यकारों के बीच उनका काफी आना जाना था। अपने जीवन के अंतिम समय में वे इलाहाबाद से ही ‘हंस’ पत्रिका का प्रकाशन करना चाहते थे।

मुंशी प्रेमचंद फिल्मी दुनिया में भाग्य आजमाने के लिए 31 मई 1934 को मुंबई (तत्कालीन बंबई) गए। वहां उन्होंने निर्माता मोहन भवानी के लिए मजदूर फिल्म की कहानी लिखी। यह फिल्म मालिकों के खिलाफ मजदूरों को भड़काने वाली मानते हुए बाद में प्रतिबंधित कर दी गई। इधर, उनकी सरस्वती प्रेस पर भी हजारों का कर्ज हो गया, इसलिए बांबे टॉकीज के हिमांशु राय के लाख समझाने के बावजूद वह चार अप्रैल 1935 को वापस लौट आए। हालांकि खराब माली हालत व अन्य परिस्थितियों के कारण उन्हें इलाहाबाद की बजाय वाराणसी जाना पड़ा, जहां उन्होंने अपना अंतिम समय बिताया।

‘प्रयाग की धरती अनुप्राणित करती है’

– मुंशी प्रेमचंद (डॉ. कमल किशोर गोयनका की पुस्तक ‘प्रेमचंद की पृष्ठभूमि’ के हवाले से)। ने कहा था कि ‘वाराणसी और इलाहाबाद रचना के लिए सबसे उर्वर भूमि है। मुझे चैन भी तभी मिलेगा जब मैं अंतिम सांस यहां ले सकूं। इलाहाबाद में दो नदियां ही गले नहीं मिलतीं, बल्कि यहां हिन्दी व उर्दू की साझा तहजीब भी देखने को मिलती है। एक सफल रचनाकार को या तो इलाहाबाद में पैदा होना चाहिए या उसे अपने जीवन का बड़ा हिस्सा इलाहाबाद में बिताना चाहिए। ‘

प्रो. राजेंद्र कुमार, वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा कि ‘मुंशी प्रेमचंद बनारस में रहते थे, जो शास्त्रीय शहर है, जबकि इलाहाबाद देश की साहित्य का केंद्र था। निराला, पंत समेत अनेक रचनाकार यहीं रहते थे। यह शहर प्रकाशकों का गढ़ था। प्रेमचंद अंतिम समय में यहां रहकर सबसे जुड़ना चाहते थे।’

साहित्यकार डॉ अनुपम परिहार ने कहा कि मुंशी प्रेम चन्द्र का जितना बनारस से लगाव था उतना ही इलाहाबाद से भी था। वह बनारस व इलाहाबाद को अपनी दो आंख मानते थे। अंतिम समय वह रचनाकारों के बीच में बिताना चाहते थे, जिसके चलते यहां रुकने का मन बनाया था।’

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