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पलिया का नाम रोशन कर रहीं रिदा

फारुख हुसैन

पलिया कलां खीरी । जहां कुछ लोग अपनी बेबसी और कमजोरी के चलते खुद को निष्क्रीय कर लेते हैं और अपनी जिंदगी को आम जिंदगी बना कर बिताना शुरू कर देते हैं उनमें जिंदगी में कुछ बनने का जज्बा जैसे कहीं दम तोड़ता हुआ दिखाई देने लगता है और वह हालातों से हार जाते हैं वह बस एक साधारण सा इंसान बन कर रह जाते हैं  उनके सपने जैसे कहीं गुम से हो जाते हैं ।

परंतु  वहीं जिले की तहसील पलिया कलां निवासी रिदा जो काफी समय से मुशायरा और कवि सम्मेलन में अपनी आवाज और गजलों से  अपनी पहचान बनाने में जुटी हुई हैं वह अपने हालातों से टकराकर अपने हुनर और अपनी पहचान से पलिया को एक नयी पहचान दिलाना चाहतीं हैं जिसका मात्र एक सपना चाहे जैसे भी हालात हों खुद को हलातों से हर हाल में जीतकर एक ऐसे मुकाम पर पहुंचना हैं जहां से लोग उससे एक संदेश ले कि हालात जैसे भी हो पर कभी अपनी हिम्मत नहीं हारनी चाहिये ।

उल्लेखनीय है कि जिले की तहसील पलिया कलां किसी भी पहचान से वंचित नहीं हैं जहां एक से एक काबिल और हुनर रखने वाले लोग हैं इसी में एक नाम आता है शबनूर खान का जो इस समय अपनी बेहतरीन आवाज और खूबसूरत गजलों से मुशायरों और कवि सम्मेलन में अपनी पहचान बना रहीं हैं ।शबनूर खान जो अब अपने नये नाम रिदा पलियावी के नाम से जानी पहचानी जा रही है रिदा लगभग तीन वर्षो से मुशायरों और कवि सम्मेलन पढ़ रहीं हैं उन्होने अपने जीवन का पहला मुशायरा सीतापुर में पढ़ा जहां से उनकी शुरूआत हुई जहां उनके उस्ताद डाॅ एख्लाक हरगामी जिन्होने उनका मंच पर भेजा और जहां वह सफल हुई उसके बाद से अभी तक वह लगढग दो दर्जन से अधिक मुशायरे और कवि सम्मेलन पढ़ चुकी हैं  ।

रिदा अपने तीन भाई और दो बहनों में सबसे छोटी हैं जिसमें उनके तीनों भाई की शादी हो चुकी हैऔर बहनों की भी ।भाई जो बाद में काम के सिलसिले में नेपाल गये जहां वह बस गये और उनके अब्बू को भी काम के सिलसिले में नेपाल जाना पड़ा और वह भी वहीं के होकर रह गये ।रिदा बताती है कि भाइयों और अब्बू के जाने के बाद उनको लगा कि सब पहले की तरह ही उनका ख्याल रखेगें पर एसा कुछ नहीं रहा। हालात के बिगड़ने पर रिदा ने अपने कदम घर से बाहर निकाले और आॅफिस में काम करने लगे जहां उनको कुछ राहत हुई  ।

 वह जब पांचवी में थी तभी से उनकों गजलें गीत नाअतेपाक लिखने का शौक था और अधिकतर वो चोरी चुपके ही लिखा करती थी पर जब एक बार जब उनकी अम्मी ने देखा तो व बहुत खुश हुई और उन्होने उनको प्रोत्साहित किया उसके बाद वह लगातार लिखने लगी और उनकी कई गजलें पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई जो उनका होसला बढाने के लिये काफी थी ।पर॔तु वहीं दूसरी ओर उनके भाई आस पड़ोश के लोग उनका उपहास उड़ाने लगा और जब वह मंच पर पहुंची तो उन पर और भी छींटाकंसी करने लगे पर उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया और वह अपना कर्म लगातार कर रहीं हैं,ऐसे ही एक दिन जब वह गजल लिख रही थीं तो उनकी मुलाकात मोहम्मद दिलशाद से हुई जो कि भीरा निवासी थे उन्होनें उनकी गज़ल देखी और उनको आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया और उनकी मुलाकत डाॅ एख्लाक हरगाॅमी से करवाई जो उनके उस्ताद बने ।जिन्होंने उनको आगे बढ़ाया ।जिसके बाद से वह आगे बढ़ती रहीं ।रिदा इस समय पलिया नगर की एक कम्पयूटर ट्रेनिंग इंसट्यूट में जाॅब कर रहीं हैं और वह बताती है कि यहां भी उनके सर अमन अग्रवाल उनकी सपोट करते हैं और वह मुशायरा पढ़ने के लिये खुशी खुशी जाने की इजाजत दे देते हैं जिनका वह आभार व्यक्त करती हैं

फिलहाल रिदा अभी भी अपनी कामयाबी पर दिनों दिन आगे कदम बढ़ा रहीं हैं और वह जाॅब के साथ पढाई भी कर रहीं हैं उनका उद्देश्य सिर्फ आगे बढना है और वह जल्द ही अपने मुकाम तक पहुंचेगी ।

हमें हालातों से कभी घबराना नहीं चाहिये बल्कि उनका डटकर मुकाबला करना चाहिये और हमें सिर्फ अपने उद्देश्य को ही देखना चाहिये ।

(रिदा खान)

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