कनिष्क गुप्ता
इलाहाबाद : लखनऊ के बाद शायद इलाहाबाद ही ऐसा जिला है, जो राजनीतिक रूप से इस सरकार में सबसे असरदार है। यहां उप मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री भी हैं जो राज्य सरकार के प्रवक्ता भी हैं। इसके अलावा इस शहर के दो मंत्री और भी हैं। ऊपर से यहां करोड़ों लोगों का कुंभ भी आयोजित होने जा रहा है। फिर भी यहां स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। ट्रामा सेंटर बना तो आधा अधूरा और एसआरएन जैसे अस्पताल भी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। जिसका खामियाजा बेचारी जनता भुगत रही है। आइये ट्रामा सेंटर और एसआरएन अस्पताल के हालात से आपको रूबरू कराते हैं। ट्रामा सेंटर : एक्स-रे तक की सुविधा नहीं मौजूद है.
स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल का ट्रामा सेंटर बनने के बाद उम्मीद जगी थी कि यहां एक्सीडेंट आदि के मरीजों को तत्काल इलाज मिल सकेगा, लेकिन यहां आने वाले मरीजों को बाहर से एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन करवाना पड़ रहा है। वर्षो इंतजार के बाद मिले ट्रामा सेंटर में एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआइ व अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में गंभीर मरीजों को निजी संस्थानों में जाकर महंगी जांच करानी पड़ रही है। इमरजेंसी में आने वाले ये मरीज इस वजह से बेहद परेशान हैं, लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन अभी तक यहां ये सुविधाएं मुहैया कराने में नाकामयाब रहा है।
वर्ष 2006-07 में ट्रामा सेंटर निर्माण को स्वीकृति मिली, लेकिन अनेक झंझावातों के चलते इसका निर्माण वर्ष 2013-14 में पूरा हुआ। एसआरएन अस्पताल परिसर में बने ट्रामा सेंटर का उद्घाटन सात जुलाई 2018 को चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन ने किया था। लेकिन अभी भी यहां जांच के लिए प्राइवेट सेंटरों का ही सहारा है। शौचालयों में ताला बंद किया गया है। एक शौचालय खुला है लेकिन उसमें गंदगी का अंबार है। पानी के लिए लगा आरओ सिस्टम खराब हो चुका है। यहां लगी लिफ्ट भी अभी तक चालू नहीं हो पाई है। 10 के बजाय चार डॉक्टर हैं नियुक्त
20 बेडेड इस ट्रामा सेंटर में 10 डॉक्टरों की जरूरत है लेकिन इन दिनों महज चार डॉक्टरों के भरोसे ही काम चल रहा है। दो जनरल सर्जन, एक न्यूरो सर्जन व एक एनेस्थेसिस्ट तैनात हैं। 40 स्टॉफ नर्स के सापेक्ष महज सात की तैनाती है। रेडियोलाजिस्ट भी तैनात नहीं है।
एसआरएन की दोनों एक्स-रे मशीन खराब, मरीज परेशान
मंडल के सबसे बड़े अस्पताल एसआरएन में दो एक्स-रे मशीन हैं। एक मशीन वर्षो पुरानी है जो चलते चलते बिगड़ जाती है। इसी मशीन से टेक्निशियन किसी तरह से काम चलाते हैं। अब यह चार दिन से बिगड़ गई है। जबकि दूसरी एक्स-रे मशीन अभी जल्दी ही आई है लेकिन वह भी चार माह से खराब पड़ी है। ऐसे में मरीजों को बड़ी परेशानी होती है। यहां सुबह से ही एक्स-रे कराने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन अंत में निराश होकर वह लौट रहे हैं। उधर, एक नई एक्स-रे मशीन है जिसे उस वार्ड में रख दिया गया है, जहां मरम्मत का काम चल रहा है। जिस पर चढ़कर मजदूर भवन की मरम्मत का काम कर रहे हैं। ऐसे में इस मशीन के खराब होने की भी आशंका है। टेक्नीशियन के भरोसे रेडियोलॉजी विभाग
रेडियोलॉजी विभाग काफी दिनों से बिना मुखिया के चल रहा है। पूरी व्यवस्था एक लिपिक और टेक्नीशियन के भरोसे है। संविदा चिकित्सक असिटेंट प्रोफेसर डॉ. एसके गुप्ता को इसकी जिम्मेदारी दी गई, लेकिन अव्यवस्थाओं से नाराज होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अब कार्यवाहक के रूप में डॉ. मुकेश पंत हैं, लेकिन उनकी गैरमौजूदगी से यहां अव्यवस्था हावी है। जिसकी वजह से मरीज परेशान रहते हैं और उन्हें बाहर से एक्स-रे करवाना पड़ रहा है। ‘कुंभ के पहले-पहले ट्रामा सेंटर में सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाएंगी। अभी स्टॉफ की कमी के चलते कुछ परेशानी हो रही है। इस दिशा में तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं।’
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