आफ़ताब फ़ारूक़ी
इलाहाबाद। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017 के अनुसार भारत में प्रजनन उम्र (15-49 साल) की 51 फीसदी महिलाएं एनीमिया ग्रस्त है। एनीमिया का स्तर सबसे ज्यादा होने के कारण हमारा देश इस लिस्ट में सबसे ऊपर है और इसके बाद पाकिस्तान और नाइजीरिया है। एनीमिया सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे बच्चे भी जूझ रहे है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-2016) के अनुसार पांच साल से कम उम्र के 58.4 फीसदी बच्चे भी एनीमिया से ग्रस्त पाए गए हैं।
गुरूग्राम के फोर्टीस अस्पताल के हेमाटोलोजी व बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक डाॅ राहुल भार्गव ने बताया कि यह आंकड़े हैरान करने वाले नहीं हैं क्योंकि हमारे देश का न्यूट्रिशन इंडेक्स बहुत खराब है। आयरन युक्त आहार की कमी और खाने की ग़लत आदतें, पौधों पर आधारित डाइट जिसमें फाइटेट ज्यादा होने के कारण आयरन की कमी, माहवारी में रक्त का बहाव और पेट में कीड़े या संक्रमण महिलाओं व बच्चों में एनीमिया का कारण बनता है।
उन्होंने बताया कि लोगों को पता ही नहीं है कि महिलाओं और पांच से कम उम्र के बच्चों के विकास में एनीमिया किस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है। गंभीर एनीमिया से डिप्रेशन, चिंता, गंभीर कोरोनेरी लक्षण और मृत्यु तक हो सकती है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया काफी नुकसान पहुंचा सकता है। शुरूआती समय में एनीमिया से बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में देरी हो सकती है व अंगों और इम्यून सिस्टम की कार्यक्षमता कम हो सकती है। डाॅ राहुल भार्गव कहते है कि जिन महिलाओं को थकान, सांस लेने में तकलीफ, त्वचा में पीलापन, नाखूनों का कम गुलाबी होना या चिड़चिड़ापन हो, उन्हें डाॅक्टर से सलाह लेनी चाहिए। हालांकि एनीमिया की पहचान और इलाज दोनों ही बहुत आसान है, इसके बावजूद यह देश में बहुत ज्यादा है।
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