बलिया। 19 अगस्त 1942 का दिन बलिया के इतिहास का एक अहम पड़ाव है। क्रांति की मशाल गांव-गांव में जल चुकी थी। जनपद में हो रही घटनाओं से कलेक्टर निगम को आभास हो चुका था कि कभी भी सरकारी खजाना और शस्त्रागार लूटा जा सकता है। ऐसी स्थिति में इसके बचाव में असमर्थता देख, सभी नोटों के नम्बर नोट कराकर डिप्टी कलेक्टर जगदम्बा प्रसाद की देखरेख में नोटों को जलवा दिया गया।
अंग्रेजी हुकूमत के पंगु हो जाने के बाद 20 अगस्त 1942 को नये प्रशासन की विधिवत घोषणा कर दी गई और यह निश्चय किया गया कि इस निर्णय की पुष्टि जनसभा बुलाकर दी जाय। इस प्रकार सन् 1942 को जनपद में हुई जनक्रांति के बाद स्थापित स्वराज सरकार की ओर से स्वतंत्र बलिया के प्रथम जिलाधिकारी चित्तू पाण्डेय को नियुक्त किया गया। बाद में पं.जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाष बाबू जैसे महान नेताओं ने इन्हें बलिया का शेर कहकर सम्मानित किया। यह स्वराज सरकार अगले कुछ दिनों तक जारी रही। फिर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।
प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को बलिया बलिदान दिवस मनाया गया। सन् 1942 की घटना की याद को ताजा बनाये रखने हेतु प्रतीक स्वरूप इस दिन बलिया जेल का फाटक खोला जाता है। इस बलिदानी भूमि के क्रांतिकारियों के उत्तराधिकारी, पत्रकार, समाजसेवी एवं तमाम संगठनों से जुड़े लोग इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को जीवंत बना देते है। यह एक दर्शनीय पल हैं।
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