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मुहम्मद बिन सलमान को तगड़ा झटका सऊदी नरेश ने वापस ले लिया फिलिस्तीन का मुद्दा डील ऑफ़ सेंचुरी पर चौतरफ़ा आलोचना से घबराया सऊदी अरब

आफताब फारुकी 

सऊदी नरेश सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ ने एक चौंकाने वाला लेकिन ज़रूरी फ़ैसला करते हुए फ़िलिस्तीन का मुद्दे की फ़ाइल अपने बेटे और क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान से वापस ले ली क्योंकि उन्हें अचानक अभास हुआ कि मुहम्मद बिन सलमान की नीतियों के चलते सऊदी अरब की साख को भारी नुक़सान पहुंच चुका है।

सबसे बड़ा नुक़सान यह हुआ कि बिन सलमान ने सऊदी अरब को डील आफ़ सेंचुरी के जाल में फंसा दिया। फ़िलिस्तीन मुद्दे की फ़ाइल मुहम्मद बिन सलमान से वापस लिए जाने की ख़बर रोयटर्ज़ ने दी और कहा कि उसे यह रिपोर्ट सऊदी अरब के उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली है। हम लंबे समय से विदेशी समाचार एजेंसियों के साथ काम करते रहे हैं और हमारा यह मानना है कि इस प्रकार की ख़बरें जब उच्च स्तर से लीक की जाती हैं तो अधिकारियों और पाठकों के एक बड़े वर्ग को कोई संदेश देना होता है।

सऊदी नेतृत्व ने यह ख़बर लीक करके सबसे पहले तो फ़िलिस्तीनियों को आश्वासन दिलाने की कोशिश की है और दूसरे नंबर पर अरब जनमत को संतुष्ट करना चाहा है और यह संदेश देने की कोशिश की है कि रियाज़ सरकार अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग है और मध्यपूर्व के इलाक़े में किसी भी एसी शांति योजना को स्वीकृति नहीं दे सकती जिसमें यह न स्वीकार किया गया हो कि बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीन की राजधानी है और जिसमें फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों की स्वदेश वापसी के अधिकार को मान्यता न दी गई हो। डील आफ़ सेंचुरी में इन दोनों केन्द्रीय बिंदुओं को पूरी तरह नज़र अंदाज़ कर दिया गया था। इस साज़िश में तो बैतुल मुक़द्दस के बदले अबू दीस को फ़िलिस्तीन की राजधानी बनाने की बात कही गई थी और शरणार्थी फ़िलिस्तीनियों की स्वदेश वापसी के अधिकार को पूरी तरह नकार दिया गया था। इस योजना का समर्थन करने के कारण सऊदी अरब की साख को भारी नुक़सान पहुंचा और सऊदी नरेश को अच्छी तरह आभास हो गया कि अरब जगत और इस्लामी जगत में सऊदी अरब को गहरी नफ़रत की नज़र से देखा जा रहा है।

फ़िलिस्तीनी जनता और नेतृत्व में जिस चीज़ पर सबसे ज़्यादा नाराज़गी बढ़ी है रोयटर्ज़ की रिपोर्ट में किया जाने वाला ख़ुलासा था कि मुहम्मद बिन सलमान ने फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास को गत वर्ष दिसम्बर में रियाज़ बुलाकर उन पर दबाव डाला कि वह डील आफ़ सेंचुरी का समर्थन करें और बैतुल मुक़द्दस को फ़िलिस्तीन की राजधानी बनाने का विचार मन से निकाल दें और अबू दीस को ही फ़िलिस्तीन की राजधानी मान लें इसी तरह फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के स्वदेश वापसी के अधिकार को भी भूल जाएं तो इसके बदले में उन्हें दस अरब डालर की सहायता दी जाएगी। महमूद अब्बास ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इंकार किया और मुहम्मद बिन सलमान की ओर से डाले जा रहे भारी दबाव का सामना किया। बिन सलमान ने महमूद अब्बास को यह धमकी भी दी थी कि यदि उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार न किया तो उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ सकता है।

सबसे बुरी बात तो यह थी कि डील आफ सेंचुरी को मान कर मुहम्मद बिन सलमान ने मार्च 2002 के अरब लीग के बैरूत घोषणा पत्र का खुलकर विरोध कर दिया जिसमें सऊदी अरब की पहल पर शांति प्रक्रिया शुरू की गई थी। रोयटर्ज़ से बात करने वाले सऊदी अधिकारियों ने कहा कि फ़िलिस्तीन का मामला मुहम्मद बिन सलमान से वापस लेने का यह अर्थ नहीं है कि सऊदी नरेश और क्राउन प्रिंस में कोई विवाद चल रहा है। यह केवल सऊदी अरब की साख को पहुंचने वाले नुक़सान को रोकने की एक कोशिश है विशेषकर इस समय जब सऊदी अरब एक साथ कई मोर्चों में बुरी तरह उलझा हुआ है।

सऊदी अरब के इस क़दम के कुछ कारण है। पहला कारण तो यह है कि सऊदी अरब के भीतर कुछ गलियारों की ओर से फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ़ जो दुष्प्रचार किया जा रहा था और यह कहा जा रहा था कि फ़िलिस्तीनियों ने खुद अपनी ज़मीनें यहूदियों के हाथें बेची हैं, उसका जनमत के बीच बिल्कुल उल्टा परिणाम निकला है और सऊदी सरकार से लोगों की नफ़रत बढ़ने लगी।

दूसरी चीज़ यह हुई कि सीरिया में सेना ने अधिकांश मोर्चों पर ज़ोरदार सफलताएं हासिल की हैं और अब इदलिब पर हमले की तैयारी चल रही है। इसका मतलब यह है कि सीरिया में सऊदी अरब की युद्ध नाकाम हो चुका है जो सात साल तक चला।तीसरी बात यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने ईरान को धमकियां देना बंद करके ईरानी अधिकारियों और ईरानी राष्ट्रपति रूहानी से बिना शर्त के वार्ता के लिए अपनी तत्परता की घोषणा कर दी। इस तरह सऊदी अधिकारियों का यह सपना चकनाचूर हो गया कि अमरीका ईरान पर हमला करे।

चौथी बात यह है कि मलेशिया उस गठबंधन से निकल गया जिसका गठन सऊदी अरब ने तीन साल पहले किया  था। मलेशिया ने यमन युद्ध में शामिल अपने गिने चुने सैनिकों को भी वापस बुलाने की घोषणा कर दी जबकि दूसरी ओर यह संभावना भी प्रबल हो गई है कि पाकिस्तान में चुनाव जीतने वाले इमरान ख़ान भी अपने देश के सैनिकों को यमन से वापस बुला लेंगे। फ्रांस ने भी कहा है कि वह अरब गठबंधन का समर्थन बंद कर रहा है।

पांचवी बात यह है कि यमन युद्ध को चौथा साल चल रहा है लेकिन इस युद्ध का कोई सामरिक हल दिखाई नहीं दे रहा है। तइज़्ज़, सअदा या हुदैदा में किसी भी मोर्चे पर सऊदी अरब और इमारात को कोई सफलता नहीं मिल रही है बल्कि संकट और भी जटिल होता जा रहा है। हमारे विचार में सऊदी अरब ने अपने फ़ैसले को बदलने और रुख़ में बदलाव लाने का फ़ैसला किया है क्योंकि इस्राईल से संबंध स्थापित करने की बात करते वाले अनवर इश्क़ी और तुर्की फ़ैसल जैसे लोग कहीं ग़ायब हो गए हैं।

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