तारिक आज़मी.
कानपुर. हलीम कालेज प्रकरण एक बार फिर सुर्खियों में है. कभी कभी तो लगता है कि अपनी बेशकीमती ज़मीन को मौलाना हलीम साहब ने जिस तालीमी मरकज़ के लिये दिया था आज के हालात उनको अगर मलूग होते तो वह इस मरकज़ को बनाते ही नहीं. जी हां हम बात कर रहे है कानपुर के चमनगंज स्थित हलीम कालेज की. जहा हर दो चार महीनो में कोई न कोई कार्य ऐसा होता है जिससे यह कालेज कही न कही सुर्खियों में आ जाता है और इसका कारण फिर एक बार एक ही शख्स हसीब होता है.
कौन है हसीब.
बसपा का यह बाहुबली व्यक्ति ही कहेगे इसको क्योकि नेता तो साहब बन न पाये और बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर समाज सेवक और माननीय बनने का सपना धरा का धरा रह गया. क्षेत्र की जनता ने इनको पसंद ही नहीं किया या फिर कह सकते है कि शायद इनकी कार्यप्रणाली को क्षेत्रीय जनता ने सीरे से नकार दिया.
हलीम कालेज के मैनेजमेंट को हाथ में लेकर गरीब बच्चे बच्चियों का उद्धार करने की कसम खाने वाले इस बाहुबली ने यह तो नहीं मालूम कितने गरीबो का उद्धार किया मगर ये ज़रूर दिखाई देता है कि इनकी दौलात दिन दुनी रात चौगुनी बढती ही गई. क्षेत्रीय चाय पान के खोमचो पर पान मसालों की गुडगुडाती आवाजों के साथ चंद पेचीदा दलीलों सहित लोगो की चर्चा रह कि हलीम कालेज की संपत्ति जो शिक्षण संस्था के उत्थान के लिये हलीम साहब छोड़ कर इस दुनिया से रुखसत हुवे थे पर एक कन्नोज के कुख्यात से हाथ मिलाकर हसीब ने खूब जमकर मलाई काटी और उन ज़मीनों पर खड़ी आसमान की बुलंदियों को छूने की चाहत रखती इमारतों में फ़्लैट बनवाकर जमकर बेचा और मोटी रकम अन्दर किया.
यही नहीं हलीम कालेज ले शिक्षको के नियुक्ति पर भी बड़े सवाल लगातार उठते रहे है. इन्ही चर्चाओ को आधार माने तो एक शिक्षक की नियुक्ति का पूरा रेट कार्ड यहाँ उपलब्ध है और 15 लाख से लेकर 25 लाख तक का सौदा होता है. इसके अलावा भी कई अन्य आरोप लगे है मगर आज तक आरोपों की जाँच नहीं हुई है.
जाँच के नाम पर बैठते है हसीब के रिश्तेदार
अभी तक के कार्यप्रणाली को ध्यान देकर देखा जाये तो हसीब के खिलाफ जो भी आवाज़ उठी है उसको कभी अल्पसंख्यक समाज तो कभी लोक लाज पर दबा दिया जाता है. बात कुछ बढे इसके पहले ही एक कमेटी बना कर जाँच की घोषणा कर दिया जाता है. प्रशासन खामोश हो जाता है और जाँच के नाम पर हसीब के रिश्तेदार ही जाँच कमेटी में बैठते है. इस बार भी ऐसा ही है जिन दो लोगो को जाँच सौपी गई है वह सभी हसीब के करीबी रिश्तेदार है. अब कोई अपना हसीब के खिलाफ तो रिपोर्ट देगा नहीं तो काम चल रहा है और प्रशासन मजबूर रहता है कि कोई लिखित शिकायत नहीं मिल पाने से वह कार्यवाही नहीं कर सकता है.
अगले अंक में बतायेगे कि क्या है असल में खैरात के पैसे का खेल. जुड़े रहे हमारे साथ.
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