तारिक आज़मी
वाराणसी. शहर में झोला छाप डाक्टरों की फेहरिस्त लम्बी है. पुश्तैनी नाम कमा कर यहाँ तक पंहुचा डॉ मलिक परिवार अब अपनी अगली पीढ़ी के बने डाक्टरों की डिग्री को लेकर चर्चा में है. इस क्रम में चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ के सी मलिक के पुत्र डॉ विशाल मलिक पर सबसे पहले चिकित्सा विभाग की नज़रे टेढ़ी हो रही है.
मामला कुछ इस प्रकार है कि एक शिकायत के आधार पर मुख्य चिकित्साधिकारी ने डॉ के सी मलिक के बेटे विशाल मलिक की जाँच का आदेश दे डाला. वैसे तो चर्चाओं के अनुसार डॉ मलिक की ऊँची पकड़ है मगर इस जाँच में जाँच अधिकारी इमानदार मिल गया और डॉ मलिक की पिछली एक पीढ़ी से बनी साख पर सवाल ही खड़ा हो गया. गोपनीय सूत्रों से प्राप्त समाचारों के अनुसार यह जानकारी सामने आई है कि डॉ के सी मलिक के पुत्र विशाल मलिक जो खुद को जार्जिया के एक कालेज से चिकित्सा स्नातक का डिग्री होल्डर बताते है कि डिग्री के साथ भारत में प्रैक्टिस करने हेतु अधिमान्य परीक्षा ही पास नहीं किये है. परीक्षा पास फेल तो कोई बड़ी बात नहीं है जाँच में यह भी सामने आया कि मलिक साहेब की क्लिनिक के रजिस्ट्रेशन की बात तो मलिक साहब ने किया मगर रजिस्ट्रेशन दिखा नहीं सके. यही नहीं गोपनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि डॉ के सी मलिक के टेबल पर डॉ विशाल मलिक नाम की नेम प्लेट रखी हुई है और डॉ विशाल मलिक ने लिखित बयान में कहा है कि वह प्रैक्टिस नहीं करते है बल्कि अपने पिता के साथ उनके काम में हाथ बटाते है.
सब मिला कर सामने आये गड़बड़ झाले के बीच जब हमने मुख्य चिकित्साधिकारी से इस सम्बन्ध में सवाल पूछा कि क्या कार्यवाही होगी तो मुख्य चिकित्साधिकारी ने तत्काल कहा कि मैंने व्यस्तता के कारण रिपोर्ट अभी तक नहीं देखी है मगर ऐसे रिपोर्ट अगर है तो निश्चित कड़ी कार्यवाही होगी और उनके ऊपर मुकदमा दर्ज विभाग द्वारा करवाया जायेगा.
अभी इस कड़ी में आगे काफी कुछ है. हम लगातार झोलाछाप डाक्टरों के ऊपर अपनी पैनी नज़र रखे हुवे है जिसमे कुछ तो बीयूएमएस चिकित्सक ऐसे भी है जो अपना खुद का नर्सिंग होम खोले हुवे है. इनमे महिला चिकिसको की संख्या अधिक है जो डिलीवरी का केस देखती है. नार्मल और आपरेटेड डिलीवरी का बोर्ड लगा रखा है और धड़ल्ले से आपरेशन तक कर डालते है. जबकि चिकित्सा क्षेत्र हेतु बनी नियमावली 1963 के चैप्टर VI में साफ़ इस सम्बन्ध में लिखा हुआ है, वही चिकित्सा सुविधाओ को बढाने हेतु सरकार ने 2017 में इसमें संशोधन करते हुवे Ayush practitioners नियम को लागू किया है. इसका उद्देश्य मुख्यता रूलर क्षेत्र में चिकित्सा सुविधा को बढाने के लिये हुआ है जिसमे एक परीक्षा जो ६ माह के प्रशिक्षण उपरान्त पास करने के बाद अंग्रेजी दवाओ को चिकित्सक लिख सकता है मगर चिकित्सा क्षेत्र में इस प्रशिक्षण को लिए बिना आज प्रेक्टिस करते हुवे कई चिकित्सक दिखाई दे जायेगे. हम जल्द ही इस प्रकार के लोगो का भी खुलासा करेगे.
खैर साहब यह तो कहने सुनने की बाते है, नियमो को ताख पर धर कर काम करने वालो की देश में कोई कमी नही है. अब देखना होगा कि जाँच रिपोर्ट के आधार पर मुख्य चिकित्साधिकारी क्या और कब कार्यवाही करते है और करते भी है कि पिछले महीने से धुल खा रही यह रिपोर्ट अब वक्त के रफ़्तार के धुंध में ऊँची पहुच के साथ दब जाती है. वैसे हम शुक्रगुज़ार है अपने उस गोपनीय सूत्र के जिसने उक्त जानकारी हमको समय रहते दे दिया. वैसे किसी ने सही कहा है कि इंसान के अन्दर इतना सुरूर नहीं होना चाहिये कि रस्सी जल जाय मगर ऐठन न जाये,
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