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सऊदी अरब में मुफ़्तियों पर गिरी गाज मक्का के मशहूर मुफ़्तु नासिर अलउमर भी पहुंचे सलाखों के पीछे

आदिल अहमद

सऊदी अरब में पिछले एक साल से मुफ़्तियों पर आफ़त टूट पड़ी है। जेल में बंद सऊदी मुफ़्ती सलमान अलऔदा के बेटे अब्दुल्लाह अलऔदा ने बताया है कि मक्का के वरिष्ठ मुफ़्ती नासिर अलउमर को गिरफत़ार कर लिया गया है।

नासिर अलउमर की गिरफ़तारी पर सऊदी अरब में सोशल मीडिया पर भी ज़ोरदार बसह हो रही है। कुछ उपभोक्ताओं ने कहा है कि देश संकट की स्थिति से गुज़र रहा है इन हालात में यदि शाही सरकार ने सूझबूझ से काम न लिया तो हालात और बिगड़ सकते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सऊदी सरकार विदेशी ताक़तों के इशारे पर गिरफ़तारियां कर रही है।

कुछ उपभोक्ताओं ने मुफ़्तियों की गिरफ़तारी का समर्थन करते हुए अलअरऊर, उरैफ़ी और आएज़ अलक़र्नी की गिरफ़तारी की भी मांग की है।

सऊदी अरब ने लंबे समय तक मुफ़्तियों को खुली छूट दी और इन मुफ़्तियों ने शाही अंदाज़ में जीवन गुज़ारना शुरू कर दिया लेकिन मुहम्मद बिन सलमान के अधिकार बढ़ने के बाद मुफ़्तियों पर नकेल कसी जाने लागी। वैसे इससे पहले भी मुफ़्तियों के अधिकारों में कुछ कमी की गई थी लेकिन मुहम्मद बिन सलमान ने तो मानो इन मुफ़्तियों के पर ही कतर दिए। अब केवल वही मुफ़्ती आराम से है जो शाही सरकार के हर फ़ैसले और हर नीति का समर्थन करते हैं।

हाल ही में एक मुफ़्ती शैख़ अब्दुल अज़ीज़ की एक वीडियो वायरल हुई। इस वीडियो में यह मुफ़्ती मदीने की एक मस्जिद में बैठकर भाषण दे रहे हैं कि यदि देश का बादशाह टीवी पर खुले आम शराब पिए और बलात्कार करे तब भी उसके ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया जा सकता बल्कि जनता का दायित्व है कि फिर भी उसका अनुसरण करे।

मगर दूसरी ओर जनता के बीच इन दरबारी मुफ़्तियों को बड़ी नफ़रत की नज़र से देखा जाता है। क्योंकि आम जनमानस में यह विचार प्रबल रूप से मौजूद है कि यह मुफ़्ती सुविधाओं और पैसे की लालच में या दंडात्मक कार्यवाही के डर से इस्लामी शिक्षाओं में फेर बदल करते हैं और शाही सरकार के अनुसरण और आज्ञापालन की रट लगाए रहते हैं।

मुफ़्तियों ने कई दशकों तक मेहनत करके सऊदी अरब के समाज को रूढ़िवादी समाज बनाया और वहाबी विचारधारा का प्रचार करके सऊदी अरब के लिए भी तथा दुनिया के अन्य देशों के लिए मुसीबत खड़ी कर देने वाली वहाबी संगठन खड़े कर दिए। अलक़ायदा और दाइश जैसे वहाबी संगठनों की विचारधारा वही वहाबी विचारधारा है।

इस बीच मुहम्मद बिन सलमान इस कोशिश में है कि पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमरीका के दबाव के अनुसार सऊदी अरब के समाज को रातों रात बिल्कुल बदल दें। कुछ टीकाकार कहते हैं कि मुहम्मद बिन सलमान चाहते हैं कि सऊदी अरब का समाज भी संयुक्त अरब इमारात जैसा खुला समाज हो जाए।

मगर सबसे बड़ी समस्या यह है कि वर्तमान सऊदी सरकार देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने की प्रभावी कोशिश करने के बजाए अपने क्षेत्रीय नीतियों के कारण आर्थिक समस्याएं बढ़ा रही है। यमन युद्ध के कारण सऊदी अरब को भारी आर्थिक नुक़सान हो रहा है और इस युद्ध में अब तक सऊदी गठबंधन को कुछ भी हासिल नहीं हो सका है और न ही कुछ हासिल होने की आशा है।

इन हालात में समाज को एक खुला समाज बनाने की मुहम्मद बिन सलमान की कोशिश की सफलता को संदेह की नज़र से देखा जा रहा है क्योंकि सामाजिक सुधार से ज़्यादा  लोगों को रोज़गार की ज़रूरत है और रोज़गार के अवसरों की भारी रूप से कमी है। इन्हीं परिस्थितियों के कारण अलग अलग हल्क़े सरकार के रवैए से संतुष्ट नहीं है और जो भी असंतोष का इशारा देता है तत्काल गिरफ़तार कर लिया जाता है।

aftab farooqui

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