Categories: Morbatiyan

तारिक आज़मी की मोरबतिया – ये जो हल्का हल्का सुरूर है, गुरु कड़वा सच हज़म हो सके तभी पढो

तारिक आज़मी

काका का नाम लेते लेते तो थक चूका हु। आप भी मोरबतिया में बतियाते बतियाते थके न थके मगर हमारे काका गुरु एकदम बेचैन हो गये। कल रात सपने में आ गये और लाठिया लेकर दौड़ा लिये। बड़ी मुश्किल से बचे तो पूछा का काका मरे बाद भी लाठिया लेकर लड़का को हड़का रहे हो। तो बोल पड़े, काबे ई बता हमारा पेटेंट वाला डायलाग मार मार के तू बड़का पत्रकार बनल है ता हमार प्राफिट का हिस्सा का भवा। बात तो काका की सहिये रही मगर प्राफिट हो तब तो दे, और यहु कबर में का करिहे प्राफिट लेके। हम कहा काका कहा प्राफिट है, यहाँ प्राफिट में खाली गाली मिलती है अब बताओ उसमे हिस्सा चाहे तो, बस फिर का रहा हऊक दिहिन एक ठ सपने में ही। फिर बड़ा सरियसिया के पूछे का हो बबुआ ई पत्रकारिता का है।

अब सपना में काका का सवाल कैसे टाल सकते रहे, टालते तो अभी सपना में आये रहे उसके बाद कही बुला लेते तो बाते गड़बड़ हो जाती। हम भी गला कस के बाँध लिया और जवाब दे दिया। हम कहा काका सुनो अब पत्रकारिता का है,

असल में सच को दबा लीजिये, अमीरों को बहला लीजिये, झूठी बाते फैला लीजिये, चाटुकारी का परचम लहरा लीजिये, पट्तेचाटी का बीड़ा उठा लीजिये, शासन सत्ता और इधर उधर से ले लीजिये बस हो गई पत्रकारिता।

थोडा और बढ़ जाइये, कद उंचा कर लीजिये, सच को झुठला लीजिये, नाग नागिन को नचा लीजिये, मेंढक मेढकी का शादी दिखा लीजिये, बेमतलब बहस करवा लीजिये, बड़ी गाडी मंगवा लीजिये टीआरपी बढ़ा लीजिये, बस हो गई पत्रकारिता।

दो पैग लगा लीजिये, टेरर दिखा लीजिये, सड़क पर झूम लीजिये, सही जो हो उसको दुत्कार और गलत को चूम लीजिये, झूठ का परचम लहरा लीजिये बस हो गई पत्रकारिता।

कोई निर्दोष और गरीब को अगर कोई हिष्ट्रीशीटर मारे और फिर भागे तो भगोड़े अपराधी को बचा लीजिये, उसको संरक्षण दे लीजिये, झूठी सुलह की खबर फैला लीजिये, किसी कद्दावर का नाम बेच लीजिये, संगठन का रौब दिखा लीजिये यही गुना गणित से अपराधी से पैसा कमा लीजिये, बस हो चुकी पत्रकारिता।

 जब तक कोई आपको पैसे देता रहे तो उसको वीर महापुरुष बता लीजिये, मेरे रश्के कमर गा लीजिये, हर गलत को सही ठहरा लीजिये, फिर जब वो पैसे न दे तो उसकी बैंड बजा लीजिये, अपना गिरा चरित्र छोड़ उसके करेक्टर पर उंगली उठा लीजिये, झूठे मुक़दमे की धमकी दिखा लीजिये, कल तक जिसको सही कहा उसी को गलत बता लीजिये बस हो गई पत्रकारिता।

काका जैसे हमारी बात सुने उनके चहरे का रंग उड़ गया। बोले बबुआ हम चलते है। फरिश्तो से थोड़ी मोहलत लेकर आये थे अब वक्त हो गया है जाने का। जैसा बता रहे हो तो बाबु ढेर उकता जाना तो चले आना बगल वाली कबर में जगह खाली है।

उनके जाते जाते कहा काका एक और है जातिवाद फैला लीजिये, धर्म का परचम लेकर नफरत बढ़ा लीजिये, किसी को कुछ और किसी को कुछ बता लीजिये, झूठे आरोप लगा लीजिये, मिया हिदू कर लीजिये, मुह में पान घुला लीजिये, धर्म की नफरत फैला लीजिये, खुद को सबका मालिक बता लीजिये, आँखों में धुल झोक कर सच को झूठ बता दीजिये। सीधे आँखों का काजल चुरा लीजिये। झूठे आरोप लगा लीजिये। बस यही है पत्रकारिता।

काका हमारा जवाब सुनकर सपना में भी दौड़ लगा दिहिन। लगता है कि वापस जल्दी नहीं आयेगे। तो अब ठीक है सोच रहे थे कि बगल में पड़ा फोन का बजा आँखे खुल गई। सपना ही सही मगर हकीकत तो यही है। और इसी हकीकत को सुनकर काका निकल लिए वापस बैक टू पवेलियन की तरफ। अब भैया हकीकत तो कही न कही इसी रूबरू होकर रह जाती है। अगर नहीं होती है तो फिर गा लो एक बार फिर कि ये जो हल्का हल्का सुरूर है।झूठ का परचम लहरा लीजिये। फिर भी न बात बने तो गा लीजिये, कि ये जो हल्का हल्का सुरूर है, बात का गुरुर है।

pnn24.in

Share
Published by
pnn24.in

Recent Posts

शम्भू बॉर्डर पर धरनारत किसान ने सल्फाश खाकर किया आत्महत्या

तारिक खान डेस्क: खनौरी और शंभू बॉर्डर पर धरने पर बैठे किसानों का सब्र का…

1 hour ago

वर्ष 1978 में हुवे संभल दंगे की नए सिरे से होगी अब जांच, जाने क्या हुआ था वर्ष 1978 में और कौन था उस वक्त सरकार में

संजय ठाकुर डेस्क: संभल की जामा मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद के बीच उत्तर…

4 hours ago