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दालमंडी (वाराणसी) पहलवानी के वर्चस्व से लेकर अपराध के वर्चस्व तक – भाग 1

तारिक आज़मी,

वाराणसी. बनारस जहा एक एतिहासिक नगरी है तो वैसे ही एतिहासिक इलाका है दालमंडी. पुरातन काल से लेकर आज तक दालमंडी चर्चा कर विषय बना रहा है. कभी दालमंडी के तंग गलियाँ अपनी रंगीन शामो के लिये मशहूर हुआ करती थी तो वह ज़माना भी काफूर हो गया. अब दालमंडी एक वाणिज्यिक क्षेत्र है. यह एक ऐसी मार्किट है जो आस पास के जिलो की मार्किट को प्रभावित करती है. इस क्षेत्र में लगभग हर चीज़ की दुकाने आपको मिल जायेगी और यही नहीं बढ़िया वाजिब दामो में.

क्षेत्र का व्यवसाय दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया और क्षेत्र एक व्यावसायिक हब बनकर उभरा. इसकी प्रसिद्धि आस पास के जिलो में ही नहीं बल्कि देश के मेट्रो सिटिज़ में भी है. कारोबार बढ़ा तो तंग मकानों में निकली दुकानों को भी परिवर्तन चाहिए इसी परिवर्तन की बयार ने इस क्षेत्र में निर्माण कार्यो में भी तेज़ी ला दिया. तंग और बोसीदा मकानों की जगह आलिशान कटरो ने लेना शुरू कर दिया. बिजनेस हब होने के कारण कटरे बनने के पहले ही बिक जाने लगे. यह क्रम आज भी बदस्तूर जारी है.

दालमंडी के कारोबार और कमाई ने यहाँ अपराधियों को भी खूब आकर्षित किया. 70 से 80 के दशक तक लल्लापुरा और छत्तातले के पहलवानो ने इस क्षेत्र के अन्दर अपना वर्चस्व बनाने का प्रयास किया. दोनों ही पहलवान शब्द बाहुबल को शाब्दिक रूप से चरितार्थ करते रहे. कभी किसी का पल्ला भारी तो कभी किसी का. यह दौर वह था जब दालमंडी और विश्वनाथ गली के कारोबार के बीच अच्छा ख़ासा कम्पटीशन हुवा करता था. दोनों क्षेत्र में दुकानों की भरमार थी और ग्राहकों को दो दोनों ही मार्किट आकर्षित करती रहती थी. इस बीच दालमंडी में वर्चस्व की स्थापना के लिये पहलवानी का दौर था और पहलवानों के बीच आपसी मल्ल हुआ करते थे यह द्वन्द अखाड़ो में होते रहे और अखाड़ो के नाम के लिए दोनों ही पहलवान अपने अपने दाव पेंच लगाया करते थे. इस दौरान किसी अन्य प्रकार का वर्चस्व स्थापित नहीं होता था और आपसी कुश्ती के माध्यम से दोनों अखाड़े अपनी अपनी जीत का दंभ भरा करते थे. इसी दौरान मदनपुरा क्षेत्र के भी एक अखाड़े ने अपने दाव लगाने के लिए कई बार दावेदारी किया था.

इसके बाद शुरू होता है गैंग का दौर. पहलवानी के इस दौर में केवल अखाड़े की पहलवानी रहा करती थी जिसमे एक पहलवान का दुसरे पहलवान पर दाव कुछ इस प्रकार लगाने का प्रयास होता था कि उस कुश्ती के बाद उसका अखाड़े का कैरियर ही खत्म हो जाये. इस दौर में वर्चस्वा हेतु अपराधिक गतिविधिया नहीं होती थी. जो भी जीत हार रहती थी वह मन में एक मलाल के तरह रहती थी और लोग उस मलाल को अगले कुश्ती के इंतज़ार में पालते रहते थे, इस दौरान एक दुसरे पहलवानों में बात चीत बंद हो जाना और एक दुसरे को देख कर ताने कसना आम बात थी मगर लड़ाई केवल अखाड़े तक रहती थी. सडको पर आपसी कहासुनी अलग बात है मगर इस लड़ाई ने कभी अपराधिक रूप नहीं लिया.

इधर कारोबार में भी दालमंडी धीरे धीरे विश्वनाथ गली के कारोबार से आगे बढ़ने लगा. इस क्षेत्र में कारोबार के बढ़ने का एक कारण और भी हुआ जब विश्वनाथ गली के कारोबार पर सरकारी नियमो की चोट पहुची. धीरे धीरे करके विश्वनाथ गली का कारोबार मंदा पड़ने लगा और उस क्षेत्र में जाने वाले कस्टमर भी दालमंडी का रुख करने लगे. इसका मुख्य कारण कही न कही से कीमती का फर्क था. विश्वनाथ गली की कीमते दालमंडी की कीमतों से अधिक होने से ग्राहक का रुझान दालमंडी की तरफ अधिक होने लगा. दूसरा कारण हुआ विश्वनाथ गली के अन्दर सकरी गलिया जहा भीड़ बढ़ जाने से ग्राहकों को आराम से खरीदारी करने का मौका नहीं मिलता था, और फिर सबसे बड़ा कारण पड़ा 90 के दशक में विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में सुरक्षा को लेकर प्रशासन का सख्त होना.

इस सख्ती के कारण ग्राहकों का विश्वनाथ गली के तरफ से रुझान हटा और दालमंडी के तरफ रुझान जाने लगा. विश्वनाथ गली में जो दुकाने ज्ञानवापी के मोड़ से लेकर दशाश्वमेघ मोड़ तक लगती थी धीरे धीरे बंद होने लगी. सड़क की मार्किट हमेशा से लोगो के नज़र में महँगी मार्किट रहती थी इसी कारण ग्राहकों का रुझान जो माध्यम वर्गीय थे वह दालमंडी होने लगा. धीरे धीरे विश्वनाथ गली का कारोबार सिमट कर दालमंडी को आ गया और 90 का दशक खत्म होते होते दालमंडी पूरी तरह से बिजनेस हब बन गया. यहाँ तक की कुछ विश्वनाथ गली के दुकानदारों ने अपनी दुकाने दालमंडी के क्षेत्र में भी खोल लिया. इसी दरमियान दालमंडी भी फ़ैलने लगा और सराय से लेकर यह बनिया बाग़ के पूर्वी गेट तक पहुच गया और फिर बढ़ते बढ़ते बेनियाबाग नईसड़क आदि सभी इलाके एक बिजनेस हब बन चुके है. यहाँ तक कि नई सड़क की मार्किट गोदौलिया तक पहुच गई और सराय की मार्किट होलसेल मार्किट में बदल गई. वर्त्तमान में देखे तो फाटक शेख सलीम से लेकर चिकियाने तक मार्किट फैलती जा रही है.

बढ़ते बिजनेस के साथ पहलवानी एरा का अंत होने लगा और फिर धीरे धीरे अपराध ने भी अपने पैर इस क्षेत्र में फैलाने शुरू कर दिये. अगले अंक में हम आपको बतायेगे किस तरह वर्चस्व हेतु इस क्षेत्र में अपराध ने अपना पैर फैलाना शुरू कर दिया और आज की वर्त्तमान स्थिति पर चिंतन करेगे. जुड़े रहे हमारे साथ.

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