तारिक आज़मी.
वाराणसी. चिकित्सा क्षेत्र एक समाज सेवा का क्षेत्र था, इस शब्द में था शब्द मुझको मालूम है कि आपको भी चुभ रहा होगा, मगर वास्तविकता के धरातल पर आकर देखिये साहब इसमें था शब्द ही दिखाई देगा क्योकि अब समाज की सेवा क्या करना चिकित्सा क्षेत्र वास्तव में एक व्यवसाय बन गया है. अब व्यवसाय है तो उसमे ऊपर नीचे के तरीके तो चलते ही रहते है. डिग्री क्या किसी बयान में आप कुछ बता दे और किसी और बयान में आप कुछ और बता दे, क्या किसी ने आपका हाथ रोक लिया है क्या ? कोई ज़रूरी है कि अगर मैं इंटर में फेल हो जाऊ तो युगांडा से मैं पीएचडी नहीं कर सकता हु. बिलकुल कर सकता हु कोई रोक सकता है क्या ? वह भी जब धन बल और बाहूबल दोनों हो तो किसी की क्या मजाल जो रोक दे.
अब भैया बात ये भी है कि अगर कोई हमको रोक नहीं सकता तो कोई समझदार और सच में पढ़ा लिखा अगर मिल गया तो हमारे बयान की कॉपी तो वह आरटीआई से भी निकाल कर शांति से रख सकता है. यही नहीं भाई गोपनीय सूत्र भी तो होते है जो गोपनीयता के साथ ही सब बता देते है कि क्या हुआ क्या नहीं हुआ.
खैर छोडिये विशाल बाबु हम तो कंफियुज इंसान ही है. आखिर कम पढ़े लिखे है न. कहा हमारे पास विदेश की डिग्री है. हम तो देसी प्रमाण पत्र से काम चला रहे है. अगर इतना पढ़े लिखे होते तो आखिर कलम घिस रहे होते, नहीं न, हम भी कोई बड़ा सा व्यवसाय कर रहे होते. मगर साहब जो हम कर रहे है वह हमको मालूम है एकदम तो नही मगर थोडके सही परफेक्ट तो है.
साहब फिर वही सवाल आ गया, का बताये दिमाग को समझता ही नहीं है कि क्या पूछना चाहिये क्या नहीं, मगर साहब अब आ गया दिमाग में तो पूछ लेते है. बुरा नही मानियेगा साहब काहे कि जब कुछ लोग बुरा मान जाते है तो 92 में गरमा गरम मीट खिला देखे है वह भी पतीली समेत मुहे पर दे धरते है कहते है ले खा ले खा.
खैर साहब बात जो दिमाग में आई वह यह है कि आपकी एक जाँच हुई थी जिसमे ५ जुलाई 2018 को रिपोर्ट जो हमको सूत्रों से प्राप्त हुई उसमे आपने अपने बयान में कहा है कि आप जार्जिया से मेडिकल स्नातक है. अब जाँच कर्ता ने आपसे पूछ लिया कि साहब आप भारत में मेडिकल प्रेक्टिस करने हेतु वांछित परीक्षा क्रमशः MCI और FMG जैसी किसी परीक्षा को पास किये है कि नही ? तो आपने लिखित में जवाब दे डाला नहीं किया है और आप केवल जार्जिया की एक यूनिवर्सिटी से मेडिकल स्नातक है.
अब विशाल बाबु देखिये सच तो सच होता है. महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि सच बोलने का एक फायदा रहता है कि उसको याद नहीं रखना पड़ता है. वास्तव में अगर हम सच बोलते है तो उसको याद नहीं रखना पड़ता है कि कौन वाला सच बोला था. मगर अगर हम झूठ बोलते है तो याद रखना पड़ता है कि कौन वाला झूठ बोला था. ये आज का ज्ञान भी हो सकता है. अब देखने वालो का नजरिया है कैसे देखते है बस हमारे यही नहीं समझ आया कि आप इतना कम समय और इतनी एक डिग्री पा कैसे गये. साहब अब कलमकार हु तो ज़रा दूजे किस्म का, बातो को सिद्ध करने के लिए दो चार कागज़ का टुकड़ा हम भी रखे रहते है. क्या करे साहब अब काम ही ऐसा है. वैसे साहब आप नाराज़ न हो. हम कुछ नहीं कह रहे है.
जल्द ही हम बतायेगे कि कौन ऐसा चिकित्सक है जिसके घर की बहु भी सायबर अपराध की आरोपी है
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