सरताज खान
गाजियाबाद। लोनी विधानसभा क्षेत्र में जगह-जगह से ताजिया निकालकर इमाम हसन व हुसैन की शहादत को याद किया गया। लोनी मैन बाजार, गोरी पट्टी, प्रेम नगर ,अपर कोर्ट , मिर्जा गार्डन , हाजीपुर बेहटा , नसबंदी कॉलोनी , एल्वी नगर , कासिम विहार , खुशहाल पार्क ,पूजा कॉलोनी आदि जगहों से बडे जोरो खरोश के साथ या इमाम – या हुसैन के नारों के साथ शहर गुंज उठा और उनकी कुर्बानियों को याद किया। वही दूसरी ओर जगह-जगह शरबत , बिरयानी , जर्दा , ताहरी , हलवा आदि तबर्रूख बांटते हुए लोग दिखाई दिए।
दरअसल इराक में यजीद नामक जालिम बादशाह था जो इंसानियत का दुश्मन था। हजरत इमाम हुसैन ने जालिम बादशाह यजीद के ज़ुल्मो के आगे बयत होने से मना कर दिया था और उसके विरुद्ध जंग का एलान कर दिया था। मोहम्मद-ए-मुस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला नामक स्थान में परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था। उस दिन 10 तारीख थी , जिसके बाद इस्लाम धर्म के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया। बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में बदल गया।
कौन हैं शिया मुस्लिम
इस्लाम की तारीख में पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता यानी खलीफा चुनने का रिवाज रहा है। ऐसे में पैगंबर मोहम्मद साहब के बाद चार खलीफा चुने गए। लोग आपस में तय करके किसी योग्य व्यक्ति को प्रशासन , सुरक्षा इत्यादि के लिए खलीफा चुनते थे। जिन लोगों ने हजरत अली को अपना इमाम (धर्मगुरु) और खलीफा चुना , वे शियाने अली यानी शिया कहलाते हैं। शिया यानी हजरत अली के समर्थक , इसके विपरीत सुन्नी वे लोग हैं , जो चारों खलीफाओं के चुनाव को सही मानते हैं।
पहनते हैं काले कपड़े
मुहर्रम माह के दौरान शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के 10 दिन काले कपड़े पहनते हैं।वहीं अगर बात करें मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय के लोगों की तो वह मुहर्रम के 10 दिन तक रोज़ा रखते हैं। इस दौरान इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में शहीद हुए थे उन्हें याद किया जाता है
क्या है ताजिया
ये शिया मुस्लिमों का अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है। मुहर्रम के 10 दिनों तक बांस, लकड़ी का इस्तेमाल कर तरह तरह से लोग इसे सजाते हैं और 11वें दिन इन्हें बाहर निकाला जाता है। लोग इन्हें सड़कों पर लेकर पूरे नगर में भ्रमण करते हैं सभी इस्लामिक लोग इसमें इकट्ठे होते हैं। इसके बाद इन्हें इमाम हुसैन की कब्र बनाकर दफनाया जाता है। एक तरीके से 60 हिजरी में शहीद हुए लोगों को एक तरह से यह श्रद्धांजलि दी जाती है।
आपको बता दें कि मुहर्रम कोई त्यौहार नहीं है बल्कि मातम मनाने का दिन है। जिस स्थान पर हुसैन को शहीद किया गया था वह इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है। मुहर्रम महीने के 10 वें दिन को आशुरा कहा जाता है। मुहर्रम के दौरान जुलूस भी निकाले जाते हैं।
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