आदिल अहमद
लीबिया में फिर से लड़ाई आरंभ होने की सूचना है जिसमें अब दसियों व्यक्ति हताहत व घायल हो चुके हैं। लीबिया की राजधानी त्रिपोली में रविवार 26 अगस्त से दोबारा लड़ाई आरंभ हो गयी है।
सवाल यह पैदा होता है कि लीबिया में दोबारा क्यों लड़ाई आरंभ हुई है? इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस प्रश्न का जवाब लीबिया की अशांत सुरक्षा और राजनीतिक स्थिति में है।
पहली बात तो यह है कि इस समय लीबिया में कोई राष्ट्रीय सेना नहीं है। दूसरे शब्दों में लीबिया की सुरक्षा का कोई राष्ट्रीय ज़िम्मेदार नहीं है। दूसरे यह कि इस समय लीबिया में कोई राष्ट्रीय सरकार भी नहीं है।
यद्यपि आधिकारिक रूप से लीबिया के केन्द्र और पूर्व में दो सरकारें हैं किन्तु व्यवहारिक रूप से इस देश में दूसरी छोटी सरकारें भी हैं जो मनमाने ढंग से काम कर रही हैं और विशेषकर सुरक्षा के मामले में वे दोनों में से किसी भी सरकार का अनुसरण नहीं कर रही हैं।
तीसरे यह कि वर्ष 2011 के अंत से अब तक लीबिया की सुरक्षा स्थानीय हो गयी है। राष्ट्रीय सेना न होने की वजह से स्थानीय गुट लीबिया के विभिन्न शहरों की सुरक्षा संभाले हुए हैं। चौथे यह कि विभिन्न स्थानीय गुटों में से कुछ देश के गृहमंत्रालय का अनुसरण कर रहे हैं जबकि कुछ रक्षामंत्रालय का।
त्रिपोली में जो लड़ाई आरंभ हो गयी है वह इन्हीं दो गुटों के बीच है। दूसरे शब्दों में यह लड़ाई जहां इस बात की सूचक है कि लीबिया के पास राष्ट्रीय सेना नहीं है वहीं इस बात की भी परिचायक है कि लीबिया की राष्ट्रीय सरकार के अंदर भी एकता व एकजुटता नहीं है।
यहां एक अन्य सवाल यह उठता है कि इस लड़ाई का परिणाम क्या होगा? इसके जवाब में कहा जा सकता है कि इस लड़ाई के दो स्पष्ट परिमाण हो सकते हैं। पहला यह कि दिसंबर महीने में संसदीय और राष्ट्रपति पद के चुनाव होने वाले हैं और यदि यह लड़ाई जारी रहती है तो चुनावों के आयोजन खटाई में पड़ सकता है।
रोचक बात है कि ये चुनाव कराने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने काफी प्रयास किया ताकि लीबियाई गुट चुनाव कराने के संबंध में सहमत हो सकें। दूसरे यह कि इस लड़ाई से नया मानवीय संकट उत्पन्न होगा।
इसी संबंध में लीबिया के संचार माध्यमों ने भी घोषणा की है कि राहत व चिकित्सा केन्द्र भी इस लड़ाई से सुरक्षित नहीं हैं और इनमें से कुछ केन्द्रों को भारी क्षति पहुंची है।
बहरहाल लीबिया में जारी लड़ाई इस देश के हित में नहीं है और इससे बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।
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