फारुख हुसैन
लखीमपुर खीरी – जनपद में भगवान विश्वकर्मा जी की जयंती बडे ही धूम धाम से मनाई गयी शहर के विभिन्न कारखानों वर्कशाप पालीटेक्निक स्कूल आईटीआई कालेज शुगर मिलों तथा पीडब्लूडी कार्यालय के साथ साथ निजी वर्कशाप आदि जगहों पर विधि विधान से वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य भगवान विश्वकर्मा की जयंती बडे ही धूमधाम से मनाई गयी।हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति को मनाई जाती है इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं।
पूजन के बाद प्रसाद वितरण किया गया तथा भगवान विश्वकर्मा के योगदान पर प्रकाश डाला गया कार्यक्रम की शुरूआत गाँव के आयोजक शर्मालाल ने समस्त श्रद्धालुओं का आभार प्रकट कर किया और विश्वकर्मा के पौराणिक यशोगान व तकनीकी के क्षेत्र में मुख्य देवता की जानकारी दी इस दिन कल कारखानों और मशीनों की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है इस दिन का बड़ा ही महत्व होता है।दुनिया के पहले गैजेटस निर्माता की बात की जाये तो वह भगवान विश्वकर्मा ही है।भगवान भोलेनाथ के डमरू कमण्डल कर्ण के कवच कुण्डल या फिर कुबेर के पुष्पक विमान हो सब इन्ही के द्वारा बनाया गया था कार्यक्रम में पूजन अर्चन के बाद भजन कीर्तन का आयोजन किया गया जिसमें शत्रुहन लाल शर्मा व ओम प्रकाश विश्वकर्मा ने खूब रंग जमाया भगवान विश्वकर्मा के भजन कीर्तन सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गये।हमारे देश में विश्वकर्मा जयंती बडे ही धूमधाम से मनाई जाती है इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में खासकर औद्योगिक क्षेत्रों फैक्ट्रियों लोहे की दुकान वाहन शोरूम सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है इस मौके पर मशीनों औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है इस दिन ज्यादातर कल कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है।
उत्तर प्रदेश बिहार पश्चिम बंगाल कर्नाटक दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है मान्यता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी प्रायः सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं यहां तक कि सतयुग का स्वर्ग लोक त्रेता युग की लंका द्वापर की द्वारिका और कलयुग का हस्तिनापुर आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं सुदामापुरी की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता भगवान विश्वकर्मा ही थे इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन धान्य और सुख समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम नारायण अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए उनके नाभि कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए कहा जाता है कि धर्म की वस्तु नामक स्त्री से उत्पन्न वास्तु सातवें पुत्र थे जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।भगवान विश्वकर्मा के हैं अनेक रूप और क्या है मान्यता
कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं।यहां तक कि सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ और कलयुग का ‘हस्तिनापुर’ आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं।’सुदामापुरी’ की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।
कैसे हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति
एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम ‘नारायण’ अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। उनके नाभि कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ तथा धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए।कहा जाता है कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे।उन्हीं वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए।पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु और दस बाहु वाले।इसके अलावा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले।उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं।यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया।
इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है. विश्वकर्मा पर प्रचलित कथा भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा है।इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था।अपने कार्य में निपुण था, परंतु विभिन्न जगहों पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था।पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी।पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी।तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो।इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे उत्तर भारत में इस पूजा का काफी महत्व है।
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