हमारे एक छोटे से प्रयास से एक 26 साल पहले अपनों से बिछड़ा सलीम आज अपने अपनों के आस पास पहुच चूका है. समाचार लिखे जाने तक सलीम की बहन उसको लेने के लिये पाली को निकल चुके है. सलीम भी अपने बहन से मिलने के लिया बेताब है.
अनुपम राज
वाराणसी. किसी अपने से जिंदा रहते जुदाई क्या होती है इसका गम अहसास किया जा सकता है. सोचिये उस परिवार का क्या हुआ होगा जिसका सबसे बड़ा बेटा आज से 26 सालो पहले गुम हो गया था और उसका पता भी नहीं चला था, दिमागी रूप से परेशान होकर आज से 26 साल पहले चन्दौली जिले के बलुआ थाना क्षेत्र का निवासी एक बेटे और एक बेटी का पिता सलीम गुमशुदा हो गया था. बूढ़े हो चुके बाप और माँ ने अपने बेटे को फिर कभी नही देखा. आज जब हमारे प्रयास से सलीम के जिंदा और सही सलामत होने की जानकारी सलीम के परिवार को लगी तो उसको वापस देखने के लिये उसके माँ और बाप दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहे, अपनी ही गृहस्थी में परेशान उसका छोटा भाई मुन्ना भी अब बलुआ में नहीं रहता. सब मिला कर बलुआ से उसका पूरा परिवार ही दिल्ली जा चूका है और अपनी रोज़ी रोटी किसी तरह चला रहा है.
कौन है सलीम
चन्दौली जिले के बलुआ थाना क्षेत्र के कैलावर थाना क्षेत्र के रहने वाले मकदूम अली के दो बेटे और तीन बेटिया थी. मकदूम अली के बड़े बेटे का नाम सलीम था, जिसका विवाह बिहार की रहने वाली एक युवती से हुआ था. जिससे उसके एक बेटा और एक बेटी थी. सलीम की बहन सकीना के बताये अनुसार सन 1992 में सलीम की उसकी पत्नी से कहासुनी हो गई थी. जिसकी सुचना उसकी पत्नी ने अपने मायके में दिया जहा से सलीम से ससुर और साले सलीम के घर आये और सलीम की पिटाई कर दिया. सलीम इस मार को खाने के बाद खामोश हो गया. सलीम अपनी यह बेईज्ज़ती बर्दाश्त नहीं कर सका और खामोश हो गया.इस ख़ामोशी ने उसके दिमाग पर एक अजीब असर किया और कुछ महीनो के बाद सलीम मानसिक विक्षिप्त हो गया और घर छोड़ कर कही चला गया
उसकी गुमशुदगी के बाद सलीम के पिता मकदूम अली ने सलीम को आस पास के गावो में तलाश किया मगर वह नहीं मिला. शरीर और धन दोनों से कमज़ोर मकदूम अली फिर शांत बैठ गये. बेटे के जुदाई के गम और उम्र का तकाज़ा था कि सलीम की माँ और पिता ने आँखे बंद कर लिया. सलीम को दुबारा देखने का सपना धरा का धरा रह गया. इस दौरान सलीम किसी तरह ट्रेन में बैठ गया और राजस्थान पहुच गया
सलीम मानसिक विक्षिप्तता के दौरान किसी तरह राजस्थान पहुच गया और उसके ऊपर नज़र राजस्थान के पाली में चलने वाले आश्रम अपना घर आश्रम वाले अजय लोढ़ा की पड़ गई और फिर अजय द्वारा सलीम को एम्बुलेंस से आश्रम ले आये. जिस समय सलीम आश्रम में आया था उसके एक पैर में गहरा ज़ख्म था जो सड चूका था. आश्रम के स्वयं सेवको ने सलीम का इलाज करना शुरू कर दिया. धीरे धीरे करके सलीम के शरीर का जख्म तो भर गया मगर उसके दिमाग पर लगा ज़ख्म भर नहीं पाया और सलीम को उस ज़ख्म से उबरने में लगभग 26 साल लग गये. इस दौरान उसकी पत्नी ने दूसरी शादी कर लिया और उस युवक से भी उसको बच्चे हुवे.
कैसे मिला सलीम
इस दौरान कैलावर के ग्राम प्रधान से हमारे सम्पादक का संपर्क हुआ और ग्राम प्रधान ने बताया कि उक्त परिवार रोज़गार के तलाश में आज से लगभग 20 वर्ष पहले दिल्ली जा चूका है और अब असलम मास्टर के परिवार या कोई सगा सम्बन्धी इस गाव में नहीं रहता है. फिर भी ग्राम प्रधान ने उनका सम्पर्क प्राप्त करने का वायदा किया. इस वायदे पर खरा उतरते हुवे ग्राम प्रधान कन्हैया ने सलीम के जीजा असलम का नंबर प्राप्त कर प्रदान किया. असलम से बात करने पर ज्ञात हुआ कि सलीम आज से लगभग 26 साल पहले ही गुम हो गया था और तब से उसका कोई पता नहीं चला. सलीम की एक बेटी की शादी हो चुकी है और सलीम के बेटे मुन्ना की भी शादी हो चुकी है और वह भी दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहता है और मजदूरी का काम करता है. सलीम की पत्नी ने दूसरी शादी कर लिया था और वह बिहार में रहती है. उसका दूसरा पति भी उसको छोड़ के जा चूका है.
इस दौरान हमारे सम्पादक तारिक आज़मी द्वारा सलीम की बहन से फोन पर कांफ्रेंस के मंध्यम से सलीम की बात करवाया गया. 26 साल बाद एक बहन को उसके भाई की आवाज़ सुनने को मिली थी. भाई की मानसिक स्थित लगभग ठीक हो चुकी है फिर भी वह डरा डरा सा रहता है और कम बोलता है. बहन के ख़ुशी का ठिकाना नहीं लग रहा था. इसी बातचीत में ज्ञात हुआ कि सलीम का एक भांजा भी दिमागी रूप से बीमार होकर लगभग 8 माह पहले ही घर छोड़ कर चला गया है. उसकी भी परिवार को तलाश है.
हमारे एक छोटे से प्रयास से एक 26 साल पहले अपनों से बिछड़ा सलीम आज अपने के आस पास पहुच चूका है. समाचार लिखे जाने तक सलीम की बहन उसको लेने के लिये पाली को निकल चुके है. सलीम भी अपने बहन से मिलने के लिया बेताब है.
- यह हमारे द्वारा किया पहला प्रयास नहीं है इसके पहले भी आदमपुर थाना क्षेत्र के चौहट्टालाल खान निवासी 30 वर्षो से गुमशुदा शहजादे को उसके परिवार से मिलाने में अजय लोढ़ा और हमारे सम्पादक तारिक आज़मी के साथ तत्कालीन थाना प्रभारी आदमपुर अजीत मिश्रा का महत्वपूर्ण योगदान था. शहजादे भी लगभग 30 साल पहले दिमागी संतुलन ख़राब होने के कारण घर से लापता हो गया था जिसको अपना घर आश्रम ने आश्रय दिया था और उसका दवा इलाज कर उसको भी तंदुरुस्त बनाया था. आज शहजादे अपनी पत्नी और बच्चो के साथ हंसी ख़ुशी अपना जीवन जी रहा है.
ईदुल अमीन डेस्क: झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 10 बच्चों की मौत पर…
शफी उस्मानी डेस्क: उत्तर प्रदेश के झांसी के सरकारी मेडिकल कॉलेज में आग लगने से…
आफताब फारुकी डेस्क: झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 10 बच्चों की मौत के…
मो0 कुमेल डेस्क: असम सीमा के पास मणिपुर के हिंसाग्रस्त जिरीबाम ज़िले में शुक्रवार की…
आदिल अहमद डेस्क: उत्तर प्रदेश के झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के चीफ़ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट…
उमेश गुप्ता बिल्थरारोड(बलिया): उभांव थाना क्षेत्र के मुबारक गांव निवासी में शनिवार की प्रातः एक…