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यूं तो होते नहीं कुछ खास पल भुलाने के लिये, कभी गर मिलो तो लगे, जैसे बिछड़े हों किसी जमाने के लिये – फारूख हुसैन

आदिल अहमद

पलियाकला-खीरी।पलिया नगर में चल रहे दशहरे मेले में रामलीला मंच पर स्वतंत्रता सेनानी पंडित बंसीधर शुक्ल की पूर्ण स्म्रति में एक क्षेत्रिय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया ।जिसमें पलिया नगर और आस पास क्षेत्रों से आये प्रमुख कवियो ने कविता पाठ कर सैकड़ों श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।कवि सम्मेलन का शुभारंभ रामलीला कमेटी के अध्यक्ष विजय महेन्द्रा,बद्री विशाल गुप्ता और बलदेव वैदिक इंटर कालेज के उप प्रबंधक राजेश भारतीय के द्वारा विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती जी के चित्र पर  दीप प्रज्वलित कर और माल्यार्पण कर किया गया।जिसके बाद सभी कवियों का माल्यार्पण कर सम्मानित किया गया ।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता रामलीला कमेटी के अध्यक्ष विजयमहेन्द्रा ने की और संचालन श्रीकांत सिंह ने किया ।कार्यक्रम में पूर्ण रूप से सहयोग देने वाले उप प्रब॔धक राजेश भारतीय का रहा ।

पश्चात कवि अतुल मधुकर ने सस्वर सरस्वती वंदना कर ससक्त रचना पढ़ी-

उसके बाद बलदेव वैदिक इंटर कालेज के शिक्षक एंव कवि रोशन लाल भारती ने कहा कि-

अजब सी बेबसी शहर मे,छायी हुई सी है ।

ऐसा लगता है कि आग लगायी हुई सी है ।

लाशों के चेहरों से खौफ साफ झलका है ।

जुल्म ढाया ऐसा कि मौत भी घबरायी हुई सी है ।।

पश्चात प्रमुख कवि एवं शिक्षक नफीस अंसारी ने कहा- वफा से आज कुछ हासिल कहां है,

मेरी उलफत तेरे काबिल कहां है,

करूं गद्दारी मैं अपने वतन से,

लहू में मेरे यह शामिल कहां है,

नगर के युवा कवि एंव पत्रकार फारुख हुसैन ने कई गजलें पढ़कर अपनी एक रचना कुछ इस तरह कही-

सितमगर तेरे मैं सितम क्या गिनाऊं,

ये टूटा हुआ दिल किसे मैं दिखाऊं,

बहुत याद आती है सूरत तुम्हारी,

बतादे तुझे किस तरह मैं भुलाऊं

पलिया के वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार ओम प्रकाश सुमन ने कहा-

चेहरों पर उदासी है मरघट की तरह,

आदमी रिन्यू हो रहा है परमिट की तरह,

वैसे तो होली पर दिखते थे रंग बिरंगे चेहरे,

अब रोज आदमी रंग बदलता है गिरगिट की तरह।।

वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार राम चन्द्र शुक्ल ने अपनी रचना कुछ यू पढ़ी कि-

नौकरी बचा लेता हूं,

हाथ में बिना बल्ब की टार्च पकड़ाकर कहते हैं,

मेरे साहब इसे जलाइये,

वरना नौकरी गंवाइयें,,

पलिया के वरिष्ठ कवि विजय मिश्र विजय ने कहा-

बेंच डालेगें कफन ये,

बेंच डालेगें कलम ये,,

बेंच डालेगें बदन ये,

हैं बड़े शरारती सावधान न हुये तो

फिर गुलाम तुम बनोगे,

देश बेंच डालेगें ये देश के महारथी ,,

इसके बाद वीर रस के कवि दीपक पांडेय ने राष्ट्र प्रेम से सम्बंधित कई अच्छी रचना पढ़कर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।कवि मोबिन अहमद इस सामाजिक समरसता से जुड़ी कई देश भक्ति की कुछ पंक्तिया इस तरह पढ़ी।

हम अपने दिल मे मोहब्बत का चमन रखते है।

अपने फौलाद इरादों में भी काफी वजन रखते है।।

जान इस देश पे अपनी लुटाने को।

सर पे बांधे हुए, हर वक्त कफन रखते है।।

साथ ही पलिया नगर के ग्राम छोटी पलिया से कवि डाॅ उदित प्रभात दीक्षित ने कहा-

गंग सुधार रसधार बहे निति,

ज्ञान की ऐसी वर्षा हो,,

अज्ञान सदा मिटता ही जाये,,

कहीं न इसकी चर्चा हो,

मूक बने वाचाल सही,

पंगु की यात्रा पर्वत हो ,,

कवि रविन्द्र तिवारी ने समाज से जुड़ी रचना पढ़ी कि

अपराध राजनीति,

राजनीति अपराध,

दोनों एक दूसरे के पूरक से हो गये,,

शिष्टाचार,राजनिति केवल हैं भाषणों में,

अवसर देख बल निरपेक्ष्य हो गये ,,

इसके साथ ही कवि पवन मिश्रा,शिक्षक एंव कवि कुलदीप, सरिता वाजपेयी,कमल पांडेय,कमलेश धुरधंर सहित अन्य कवि और कवित्रियों ने अपनी -अपनी रचनायें पढ़कर सभी को भावविभोर कर दिया । कविस सम्मेलन की समाप्ती के बाद सभी कवियों को कमेटी के द्वारा प्रश्सित पत्र और स्म्रति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया । इस मौके पर पलिया कोतवाल दीपक शुक्ल, समाजसेवी आलोक मिश्रा भइया, व्यापारी प्रतिनिधि रवि गुप्ता, सभी सहित अनेक श्रोतागड़ उपस्थित रहे।

aftab farooqui

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