आफ़ताब फ़ारूक़ी
इलाहाबाद अंचल में यह भी मान्यता है कि पुरुरवा ऐल यानी इलापुत्र ने माँ के नाम पर बसाया। अंतिम रूप से बेटी या माँ के नाम पर आबाद हुआ नगर है इलाहाबाद।
प्रयाग के साथ कोसम और कौशाम्बी लगातार मिलते हैं। लेकिन इलावास के साथ और नाम नहीं मिलते। इलाहाबाद में इला का अवशेष चिपका था।
रामायण के अनुसार प्रयाग केवल वन था। जहाँ इक्के दुक्के मुनि रहते थे। आबाद बस्ती इलावास थी। यह चंद्रवंशी सम्राट पुरु की राजधानी थी। इनके पूर्वज पुरुरवा थे। जो मनु की पुत्री इला और बुध के पुत्र थे। मनु की पुत्री इला के नाम पर ही प्रयाग के इर्दगिर्द के क्षेत्र को इलावास कहा जाता था। पौराणिक साहित्य में प्रयाग कभी नगर नहीं रहा। वह सदैव वन और जंगल था। और गंगा जमुना का संगम था। सरस्वती के मेल से त्रिवेणी की संकल्पना मध्यकालीन है।
प्रतिष्ठान पुरी जो कि आजकल झूंसी के नाम से अधिक ख्यात है, वह राजधानी थी। वहाँ मनु दुहिता इला का वास था। संसार का शायद पहला नगर हो इलावास जो बेटी के नाम पर बसा।
मैं जोर देकर कहना चाहता हूँ कि बेटी के नाम पर बसे नगर इलावास का नाम प्रयाग रखना सरकार के बेटी विरोधी चरित्र का प्रमाण है। इलाही से नफरत में अंधे लोग बेटी इला या माँ इला की स्मृति को स्वाहा कर रहे हैं।
ऐसे ही दिल्ली यानी इंद्रप्रस्थ का नामकरण नया है। इंद्रप्रस्थ से पहले उस भूक्षेत्र का नाम खाण्डवप्रस्थ सप्रमाण प्राप्त है। जो पाण्डवों के पूर्वजों और नागों के बीच एक विवादित क्षेत्र था। वहाँ वनवासी नाग काबिज थे। जिन्हें घोर क्रूरता से कृष्णार्जुन ने मारा उजाड़ा जलाया और भगाया। तो अब यदि दिल्ली का नाम बदला जाए तो इंद्रप्रस्थ किया जाए या खाण्डवप्रस्थ?
और कंस की मथुरा पहरे मधुपुर थी जो दैत्य लवणासुर की राजधानी थी। क्या उसका नाम बदला जाए और लवणासुर की स्मृति में उसका नाम मधुपुर रखा जाए।
बदलाव और अधिकार में किसका पहला हक होगा। इलाहाबाद पर बेटी इला का। इंद्रप्रस्थ पर नागों का या मथुरा के मूलवासी असुरों का। अलीगढ़ का मूल नाम कोल था । भुवनेश्वर पहले विन्दु सरोवर था। गिरनार रैवत गिरि था। आजका एरण कभी एरंगकिना था। एलिफेंटा धारापुरी था। द्वारका कुशावर्त था। हमें तय करना होगा क्या-क्या और कैसे-कैसे और कब-कब बदला जाएगा। क्या हर समय एक नामांतर का सिलसिला बना रहेगा। कितना समाजवादी बदलेंगे। कितना मायावादी कितना आस्थावादी यह एक साथ तय हो। और देश बदलाव से मुक्ति पाकर आगे जाए।
और बदलना है तो भारत देश को उसके अंग्रेजी नाम से मुक्ति दिलाएं। भारत के जितने पुराने नाम हैं उनमें से एक तय करें। शकुंतला नंदन भरत के महले भी तो यह भूभाग था। वह नाम तो भारत नहीं था। कृपा करें भारत को उसका असली नाम दें। उसके माथे से इंडिया का मुकुट या मैल जो भी है उसे हटाएं।
नाम बदलने के कुचक्र को जल्दी रोका जाए। यह एक सरल सा प्रस्ताव है। इस पर विचार हो।
बोधिसत्व, मुंबई
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