तारिक आज़मी
वाराणसी। अगर बनारस की बात हो और बनारसी अंदाज़ न हो तो बेकार सा लगता है। आज मुद्दा भी बनारस का है और समस्या भी बनारस की तो ई रजा बनारस है। यहाँ सुबह बनारस शाम बनारस ई रजा देखो जाम बनारस। शहर में आप कभी भी कही भी निकल जाए आपको जाम के झाम से निजात नहीं मिलेगी।
अगर शहर के जाम के झाम पर ज़िम्मेदारी तय करेगे तो पहली ज़िम्मेदारी अवैध अतिक्रमण की है। लगभग हर दूकान ही दो तीन फुट आगे निकल कर दूकान निकालने को बेचैन है। सब आगे ही आना चाहते है तो फिर सड़के तो सकरी हो ही जायेगी। प्रशासन भले कितना भी अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाये मगर अतिक्रमण है कि कम होने का नाम नही ले रहा है। जिलाधिकारी खुद सडको पर उतर कर अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चला रहे है। मगर एक तरफ अतिक्रमण हटाया जाता है तो दुसरे तरफ वापस दुसरे ही घंटे अतिक्रमण हो जाता है। इसके पीछे एक और भी कारण है कि अतिक्रमण अभियान में अधिकतर देखा गया है कि अमीर माफ़ और गरीब साफ़ के तर्ज पर अभियान चलता है। आज तक जहा जहा भी लम्बे पैमाने पर अतिक्रमण हटा वहा फिर कभी अतिक्रमण नही हुआ। वही जहा ये अतिक्रमण गरीबो के द्वारा किया जाता है वह अगले ही दिन वापस आ जाता है। कभी कभी तो अगले ही घंटे वापस आ जाता है।
अवैध पार्किंग दूसरा सबसे बड़ा कारण है शहर के जाम में। यहाँ दूकानदार अथवा बड़ी मार्किट पार्किंग के जगह को भी कमर्शियल प्रयोग में ले लेते है। इसके ऊपर कभी न तो नगर निगम का ध्यान जाता है और न ही कभी विकास प्राधिकरण अपनी ज़िम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वहन करता है। आप सड़क पर कही भी निकल जाये तो आसानी से ये पार्किंग की समस्या आपको दिखाई दे जायेगी। सडको पर ही वाहन खड़ा करना आपकी मज़बूरी होगी। अगर कही पार्किंग है भी तो उसका चार्ज इतना अधिक लिया जाता है जो देने में आम इंसान को खल जाये। बाइक का न्यूनतम दस रुपया और कार का तो मुह्मांगा दाम हो गया है। कई जगह तो ऐसी है जहा सड़क के किनारे अवैध पार्किंग पर भी मोटी रकम वसूली जाती है। इसमें मुख्य है कचहरी के आस पास होने वाले अवैध पार्किंग स्थल। सडको पर वाहनों को खड़ा करवा कर यहाँ दस रूपये बाइक के और 50 रुपये कार के वसूले जाते है। पॉवरफुल लोगो के संरक्षण में चलता यह अवैध पार्किंग हर रोज़ ही अधिकारियो के नज़र से गुज़रता है मगर कोई इसके ऊपर कार्यवाही नही करता। शायद उस हिडेन पॉवर का डर सबको सता जाता है। स्टेट बैंक के सामे से लेकर विकास भवन तक इस प्रकार के अवैध सायकल स्टैंड सडको को जाम करता रहता है मगर ध्यान देने वाला कोई नहीं है।
सडको पर और गलियों में दौड़ते हुवे ई रिक्शा शहर के जाम को बढाने में अपनी पूरी जान लगा के बैठे है। पतली गलियो से लेकर सडको तक ये ई रिक्शा सुविधा की जगह सरदर्द बनते जा रहे है। नाबालिग बच्चो के हाथो से लेकर पढ़े लिखे लडको तक के हाथो में चलने वाले ये ई रिक्शा बेतरतीब खड़े होकर सवारियो को भरने के अलावा बीच सड़क पर रोक कर सवारी लेने और उतारने में अपने पीछे आ रहे लोगो को रोक देते है। इसके ऊपर कार्यवाही तो काफी हुई और कई बार हुई मगर कोई निष्कर्ष मुकम्मल नही निकल पाया। आज भी सडको पर इनकी रफ़्तार और हरकते वैसे ही जारी है। ट्रैफिक पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है। स्थानीय थाना अपनी ज़िम्मेदारी सिर्फ अभियान के दौरान चालान काट कर पूरी कर लेता है। मगर न तो इनके लिये कोई नियम बन पाया और न ही ये नियंत्रण में आ सके। इनकी ताय्दात लगातार बढती ही जा रही है। इसका मुख्य कारण बेरोज़गारी और इसमें कमाई है। एक ई रिक्शा अगर इंसान खुद का चला रहा है तो कम से कम एक हज़ार रोज़ की कमाई कर लेता है। वही बेरोजगारों को ये रोज़गार दिखाई दे रहा है। तो काफी पढ़े लिखे लोग भी इस ई रिक्शा चलाते दिखाई दे रहे है।
वही ऑटो रिक्शा का भी यही हाल है। परमिट सिटी का बंद होने के बावजूद अन्य मार्गो के परमिट को लेकर शहर में ये अपनी पकड़ बनाये हुवे है। इस जगह भी ट्रैफिक पुलिस और स्थानीय पुलिस की भूमिका ढुलमुल ही रहती है और इनकी सही तरीके से चेकिंग नही हो पाती है। सबसे आश्चर्य जनक बात तो ये है कि पब्लिक कनवेंस के ये दोनों साधनों के चलाने वालो में काफी एकता है। एक बन्दा अगर कही चेकिंग देख लेता है तो वह पुरे रास्ते सबको बताते हुवे चलता है कि फला जगह चेकिंग हो रही है। सबको होशियार करता रहता है।
हम खुद भी ज़िम्मेदार है
दरअसल इस जाम के झाम के ज़िम्मेदार कही न कही से हम खुद भी है। बनारस और ट्रैफिक नियम एक दुसरे के विरोधी ही समझ में आते है। यहाँ तो रोड ब्लाक करने को लगे रस्से के नीचे से हम बाइक लेकर निकल जाते है। यहाँ नियम कुछ इस तरह है कि मुझको पहले जाना है और सुरक्षित जाना है, बकिया कोई जाये या न जाये। हमारी ये सोच भी शहर का जाम बढाने में काफी मददगार साबित होती है। हमको जहा जगह मिलती है उसी जगह अपने वाहन को खड़ा करके हम अपने काम को चले जाते है। हमारे वाहन से किसको क्या दिक्कत आ रही है इसकी हमको चिंता नही रहती है। अक्सर ऐसा होता है कि हमारे वाहन के बगल में खड़ा वाहन जब चला जाता है तो हमारा वाहन बीच सड़क पर है इसका अहसास हमको होता है मगर हम उसको नज़रंदाज़ करके बैठ जाते है। वही हम खुद जाम में फंसे होते है और ऐसे किसी वाहन के वजह से जाम लगा रहता है तो हम उस वाहन स्वामी को मन में कोसते हुवे चले जाते है।
सब मिलाकर ये है कि कही न कही ट्रैफिक पुलिस अपने कर्तव्यों का सही तरह निर्वाहन नही करती है तो कही हम नही करते है। अरसा गुज़र जाता है ट्रैफिक पुलिस को यातायात के दौरान लगे जाम को निकलवाते देखा हो। स्थिति ऐसी है कि सड़क पर ट्रैफिक पुलिस बैठी है और वही जाम लगा हुआ है, मगर उस जाम को ख़त्म करवाते हुवे ट्रैफिक पुलिस को देखा गया हो।
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