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दक्खिनही काली माता मंदिर – आज भी दिखाई देता है माँ का चमत्कार

विकास राय

गाजीपुर। देवी-देवताआें के चमत्कारों के किस्से कहानियां सुनने-सुनाने की प्रथा तो सैकड़ों साल से चली आ रही है। लेकिन जब इन घटनाआें का वर्णन कोई प्रत्यक्षदर्शी बुजुर्ग करता है, तो कुछ ज्यादा ही रोमांच पैदा हो जाता है। इसी तरह का एक प्रसंग गाजीपुर नगर के व्यस्ततम इलाके मिश्रबाजार स्थित मां काली के मंदिर से जुड़ा हुआ है।

सड़क के उत्तरी पट्टी पर स्थित मां काली की प्रतिमा व मंदिर आने-जाने वाले राहगीरों को बरबस ही आकर्षित करता रहता है। नगर में दक्खिनही काली माता के नाम से प्रसिद्ध यह दिव्य स्थान लोगों के आस्था का केंद्र है। भक्तों की भारी भीड़ देखकर ही मां काली के महातम्य का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। लोग बताते हैं कि उनके शरण में जो भी पीडि़त आया हंसते हुए घर वापस लौटा और जिसने भी उपेक्षा की उसे प्राकृतिक दंड भोगना पड़ा। वहीं देवी से संबंधित अनेकानेक घटनाएं लोगों को आश्चर्यचकित करती हैं। सडक़ के उत्तरी पटरी पर स्थित करीब तीन फीट ऊंचे चार सीढिय़ों की बनी वेदी पर मां काली की भव्य प्रतिमा की स्थापना कुछ बुजुर्गों के नेतृत्व में स्थानीय नागरिकों के सहयोग से करायी गयी थी।

मंदिर का प्रवेश द्वार व सीढिय़ां दक्षिण दिशा की तरफ खुलती हैं। मंदिर के ऊपर लगभग 12 फीट ऊंचे गुम्बद का निर्माण कराया गया है। मां काली मंदिर से सटे उत्तर दिशा की तरफ मां शीतला के सातों बहनों का चौरा है, जो सैकड़ों साल पुराना बताया जाता है। इस चौरे का निर्माण स्थानीय निवासी गुरुशरण लाल ने अपनी जमीन पर देवी शक्ति के प्रति आशक्त होकर कराया था। पहले इस चौरे के पास एक पुराना नीम का वृक्ष था, जिसे बाद में कटवा दिया गया। बाद में उक्त स्थान को घेर कर गृहस्वामी ने मंदिर का रुप दे दिया, जो काली मां मंदिर से सटे उत्तर में मौजूद है। शीतला मंदिर का निर्माण भवन स्वामी स्व. गिरीशचंद्र वर्मा अधिवक्ता ने कराया था। मां काली की प्रतिमा व मंदिर की स्थापना कराने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि पहले मां काली का द्वार दक्षिण में था, इसलिए उन्हें दक्खिनही काली माता के नाम से जाना जाता है।

स्थानीय लोगों के द्वारा दक्षिण दिशा को अशुभ मानते हुए मां काली की प्रतिमा का रुख पूर्व दिशा में करने के लिए जमीन की गहरी खुदाई भी करायी गयी थी, इसके बावजूद भी प्रतिमा के नींव का कहीं पता नहीं चला। तब आजिज आकर लोगों ने प्रतिमा का रुख पूर्व में करने के लिए लोहे की जंजीरों व मजबूत डोर ट्रैक्टर में बांधकर खिंचवाया, पर यह आश्चर्यजनक रहा कि मजबूत इस्पाती जंजीरें व डोर खंडित हो गयी। ट्रैक्टर का इंजन बंद हो गया, किंतु प्रतिमा टस से मस नहीं हुई। अंतत: भक्तों के द्वारा मां काली की प्रार्थना की गई और प्रतिमा का निर्माण उड़ीसा राज्य के कारीगर मकसूदन द्वारा कराया गया।

इस काली मंदिर पर श्रावणी पूजा के अलावा शारदीय एवं वासंतिक नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ लगती है। शहर के लोगों के बीच यह मां का मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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