अंजनी राय
डेस्क (नई दिल्ली)। एससी-एसटी संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। केंद्र सरकार ने SC/ST एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान जोड़ने के फैसले का बचाव किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि अब भी भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं और अनुसूचति जाति/जनजाति के लोगों को अधिकारों से वंचित किया जाता है। ऐसे में एससी-एसटी के दुरुपयोग के चलते कानून रद्द कर देना गलत है। केंद्र सरकार ये भी कहा कि कानून में बदलाव का मकसद राजनीतिक लाभ नहीं है. 20 नंवबर को मामले पर सुनवाई होनी है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते मेें जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने कानून के अमल पर रोक लगाने की मांग की थी, जिस पर कोर्ट ने कहा था कि सरकार का पक्ष सुने बिना कानून के अमल पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
बता दें कि दो वकील प्रिया शर्मा, पृथ्वीराज चौहान और एक NGO ने जनहित याचिका दायर की है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के केंद्र सरकार के एससी-एसटी संशोधन कानून 2018 को चुनौती दी गई है। साथ ही याचिका में एससी-एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक को बहाल करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि सरकार का नया कानून असंवैधानिक है, क्योंकि सरकार ने सेक्शन 18ए के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाया है जो कि गलत है और सरकार के इस नए कानून आने से अब बेगुनाह लोगों को फिर से फंसाया जाएगा। याचिका में ये भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के नए कानून को असंवैधानिक करार दे और जब तक ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहे। तब तक कोर्ट नए कानून के अमल पर रोक लगाए।
आपको बता दें कि राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी करने वाले एससी/एसटी संशोधन कानून 2018 को मंजूरी दी थी। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद एससी/एसटी कानून पूर्व की तरह सख्त प्रावधानों से लैस हो गया है।
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