सरताज खान
गाजियाबाद। लोनी पुरानी कथाओं की चर्चाओं में एक विशेष स्थान रखने वाला जनपद गाजियाबाद का कस्बा लोनी, जो आज उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी नगर पालिका परिषद के रूप में विकसित हो चुका है।
उक्त संदर्भ में विभिन्न दृष्टांतो की कड़ी में यदि इतिहासकारों की मानें तो उसकी दंतकथा के अनुसार लोन्न करण नामक राजा ने इस क्षेत्र की स्थापना की थी। और यहां एक किला निर्माण कराया था। लोनी के नाम बनवाया गया यह किला 1789 तक भी यहा मौजूद था। मानना है कि इसके बाद मोहम्मद शाह नामक राजा ने इस किले को ध्वस्त करा दिया था। और उसकी ईटों व अन्य सामग्री को यहां बगीचा व तालाब बनवाने के लिए प्रयोग में ले लिया था। जिसके साक्ष यहां आज भी मौजूद है।
मुगल काल में बनवाए गए थे तीन भाग
उपरोक्त के अतिरिक्त मुगल काल के समय बनवाए गए तीन बाग यहां आज भी उनकी याद ताजा करते हैं। जो खरजनी बाग, अलीपुर बाग व रणप बाग के नाम से प्रचलित है। माना जाता है कि उक्त बागों में शामिल प्रथम दो बागो को आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की पत्नी जीनत महल की इच्छानुसार विकसित किया गया था। जिन्हें बाद में अंग्रेजों ने अपने शासनकाल के दौरान हथिया लिया था और उन्हें मेरठ के शेख इलाही बख्श नामक व्यापारी को बेच दिया था।
इसके बाद धीरे-धीरे समय बीतता गया और बदलते दौर में यहां आबादी में भी परिवर्तन आया और लोगों ने कभी मशहूर रहे बागराणप की आकर्षक दीवारों को क्षति पहुंचाई। मगर इसके बावजूद वहां आज भी मौजूद उसके कुछ हिस्से अपनी वास्तविकता की गाथा को साक्षात्कार करते हुए दिखाई देते हैं।
लवणासुर राक्षस का भी जुड़ा है नाम
उपरोक्त के अलावा कुछ इतिहासकारों की मानें तो यहां कभी लवणासुर नामक राक्षस का राज था। जिसकी क्रूरता के चलते क्षेत्र के प्रत्येक साधु-संत व अन्य लोग तंग थे। लवणासुर के आतंक से आमजन को छुटकारा दिलाने के लिए परशुराम जी के कहने पर श्री राम जी ने अपने अनुज शत्रुघ्न को भेजकर उसका वध कराया था। मगर उसके नाम अनुसार क्षेत्र को आज भी लोनी के नाम से पुकारा जाता है। सच्चाई चाहे जो भी हो लोनी का इतिहास अपने आप में एक अनूठा स्थान रखता है। जिसका भूतकाल आज एक नये वर्तमान में प्रवेश कर चुका है।
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