आदिल अहमद
सऊदी अरब की डेवोस इन द डेज़र्ड, मरुस्थल में दावोस शीर्षक के साथ आर्थिक सम्मेलन शुरू हो गया है मगर वरिष्ठ पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या का प्रकरण इस समय इस सम्मेलन ही नहीं बल्कि सऊदी अरब के शीर्ष नेतृत्व के भविष्य पर काली छाया बनकर छा गया है।
सऊदी अरब ने दो सप्ताह तक इंकार करने के बाद स्वीकार किया कि इस्तांबूल में सऊदी वाणिज्य दूतावास के भीतर ख़ाशुक़जी की हत्या कर दी गई थी। मगर अब भी सऊदी अरब असली जानकारियां छिपाकर क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान को बचाना चाह रहा है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो वातावरण बन गया है उसे देखते हुए यह नहीं लगता कि सऊदी अरब आसानी से यह काम कर पाएगा।
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने 2030 के नाम से आर्थिक विजन पेश किया है जिसके तहत वह सऊदी अरब की पूरी अर्थ व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं और इसी महत्वाकांक्षी योजना के तहत मुहम्मद बिन सलमान यह सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं लेकिन अनेक देशों ने इसका बहिष्कार कर दिया है। जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने कहा कि जर्मनी सऊदी अरब को हथियारों की सप्लाई उस समय तक बंद कर रहा है जब तक ख़ाशुक़जी की हत्या की पूरी जानकारी सामने नहीं आ जाती।
अमरीका के वित्त मंत्री ने भी सम्मेलन में भाग लेने का कार्यक्रम रद्द कर दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि सऊदी अरब पर प्रतिबंध लगाने की बात करना समय से पहले है। वह रियाज़ की यात्रा पर भी गए।
साफ़्ट बैंक के कार्यकारी अधिकारी मार्सीलो क्लावर ने कहा कि वह भी सम्मेलन का बहिष्कार कर रहे हैं। इसी प्रकार कई कंपनियों और मीडिया संस्थानों ने इस सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया।
इन परिस्थितियों के कारण मुहम्मद बिन सलमान बुरी तरह बौखला गए हैं क्योंकि पश्चिमी देशों और विशेष रूप से अमरीका के ट्रम्प प्रशासन के समर्थन के भरोसे पर उन्होंने अपने सारे सपने बुने थे जो उन्हें चकनाचूर होते दिखाई दे रहे हैं। कारण यह है कि ट्रम्प प्रशासन चाहने के बावजूद सऊदी सरकार की मदद नहीं कर पा रहा है। अमरीका के भीतर मीडिया के स्तर पर और इसी प्रकार अमरीकी कांग्रेस की सतह पर मुहम्मद बिन सलमान के प्रति गहरा आक्रोश है। अलग अलग हल्क़े अब यही मांग कर रहे हैं कि बिन सलमान को सज़ा ज़रूर दी जानी चाहिए।
अमरीकी अधिकारी सऊदी अरब के साथ अमरीका के स्ट्रैटेजिक संबंधों और अमरीका के हितों का हवाला भी दे रहे हैं लेकिन साथ ही इस बात पर ज़ोर भी दे रहे हैं कि मुहम्मद बिन सलमान को सज़ा दी जाए।
इस बीच यह मांग भी उठने लगी है कि 11 सितम्बर के हमलों के पीड़ितों का इंतेक़ाम भी सऊदी अरब से लिया जाए। जिस समय यह हमले हुए थे अमरीका में जार्ज बुश की सरकार थी जबकि सऊदी अरब की बागडोर शाह अब्दुल्लाह ने संभाल रखी थी। हमले में शामिल 19 आतंकियों में से 15 सऊदी नागरिक थे जिनके बारे में कहा जाता है कि सऊदी अरब के अधिकारियों से उनके संबंध थे। उस समय सऊदी नेतृत्व को यह भय हो गया था कि अमरीका सऊदी अरब से इंतेक़ाम ले सकता है मगर सऊदी सरकार ने बड़े पैमाने पर पैसा ख़र्च करके और फ़िलिस्तीन के संबंध में अमरीका और इस्राईल की कई मांगें स्वीकार करके किसी तरह ख़ुद को बचा लिया था मगर अब हालात बहुत बदल गए हैं। अमरीका के भीतर मीडिया और कांग्रेस में लगभग आम सहमति बन चुकी है कि बिन सलमान सहित जितने भी लोग जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के ज़िम्मेदार हैं उन्हें अमरीका के हितों और अमरीका सऊदी अरब स्ट्रैटेजिक संबंधों की आड़ में छिपने का मौक़ा नहीं देना चाहिए।
इस समय सऊदी अरब ने अपना आर्थिक सम्मेलन शुरू तो कर दिया है लेकिन हक़ीक़त यह है कि सऊदी सरकार को सारी चिंता यह लगी है कि किस तरह ख़ुद को अंतर्राष्ट्रीय आक्रोश से बचाए। आर्थिक सम्मेलन से से रियाज़ सरकार को भी अब कोई ख़ास आशा नहीं रह गई है।
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