साभार UNT न्यूज़
कानपुर। वैसे तो प्रेस वार्ता काफी देखा है मगर आज की जैसी प्रेस वार्ता आयोजित हुई वह कुछ अलग ही थी। कहने को तो ये एक प्रेस वार्ता थी। मगर देखने में ऐसा लग रहा था जैसे प्रेस मीटिंग रही हो जहा सवालो को पहले से तैयार किया गया हो और सवाल पूछने वाला भी तैयार हो। मौका था कानपुर शहर के मध्य में मुस्लिम बहुल इलाके के एक शिक्षण संसथान की कमेटी की बैठक का. बैठक के बाद आयोजित प्रेस वार्ता कही न कही से नुरा कुश्ती जैसी प्रतीत हो रही थी।
दरअसल मुस्लिम बाहुल क्षेत्र में एक मुस्लिम शिक्षण संसथान चलता है। यह शिक्षण संस्थान एक मुस्लिम संस्था द्वारा संचालित होता है और संस्था है तो साहब कमी किस बात की हो सकती है। दशको से इसकी मिलकियत के ऊपर दो गुट दावा करते चले आ रहे है आज दुसरे गुट के द्वारा एक व्यक्ति विशेष पत्रकार को वार्ता का पूरा ठेका जैसे दे रखा गया हो। भाई साहब ने पहले से ही अपने सवाल आयोजक को जवाब सहित दे रखे थे। ठेकेदार पत्रकार महोदय के भी कहने क्या, बड़ी ऊँची दूकान वाले है साहब, पूर्व में ट्रक लूटने के केस में लाल कोठी से सैर करके वापस आये है. उन्होंने पूरा पत्रकारों का ठेका ले लिया और सबके जगह खुद की सवाल करने लगे. सवाल भी क्या साहब वही जो रटा रटाया हुआ था. शुरू हुआ नुरा कुश्ती की तरह पत्रकार वार्ता।
मौके पर शहर के कुछ सीनियर पत्रकार भी मौजूद थे। पत्रकार महोदय के अकेले सवालो की झड़ी देख बाकी वह उपस्थित पत्रकारों के भी पेट में दर्द हुई और सवाल दाग ही दिया। सवाल बड़ा ज्वलंत था। आयोजक का दावा था कि बैठक में कुल 300 सदस्य शामिल हुवे। जबकि मौके पर केवल 100 कुर्सिया लगी ही थी उसमे से भी अधिकतर खाली थी। इसी को मुद्दा बना कर पत्रकारों ने जब सवाल पूछा तो आयोजक महोदय सकपका गये और बात को दूसरा रुख देते हुवे मोड़ने की कोशिश किया मगर कोशिश तो साहब कोशिश होती है सीनियर पत्रकार भी बढे घाघ निकले सब अपने बात पर घूम फिर के आ ही जाते थे. वैसे आयोजक साहब इस बात का भी जवाब नही दे पाये कि एक शिक्षण संसथान में देर रात किस बात की मीटिंग होती है क्योकि अकसर रात दस बजे के बाद यहाँ मीटिंगों के दौर की बाते क्षेत्र में चर्चा का विषय रहती है..
यह गुट प्रेस वार्ता करके अपने कार्य प्राणी का उल्लेख करना चाहता था। इस मीटिंग में किया गया। मीटिंग के बाद एक प्रेस वार्ता का भी आयोजन किया गया। जिस को सम्बोधन इस गुट के कार्यवाहक महामंत्री कर रहे थे। खैर साहब लाल कोठी रिटर्न पत्रकारों के ठेकेदार अपनी हरी होते देख नंबर बढाने के लिए एक अन्य पत्रकार जिनके पास बहुत सी आईडी होती है और क्षेत्र में तो उनके लिए कभी कभी शर्ते भी लग जाती है कि भाई के पास कौन सी आईडी नही है को लेकर कोने में गये. उनको कुछ समझाया और वो समझने की कोशिश करते हुवे और भी ज्यादा कोने में चले गए फिर ओके ओके करते हुवे टाटा बाय बाय हो गए.
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