समीर मिश्रा.
लखनऊ. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 12 साल की बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या करने के मामले में मुख्य अभियुक्त पुतई को सत्र न्यायालय से मिली फांसी की सजा को बरकरार रखा है। न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त सहानुभूति का हकदार नहीं है। वहीं इसी मामले के दूसरे अभियुक्त दिलीप की आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ की गई अपील को भी न्यायालय ने खारिज कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति आरआर अवस्थी व न्यायमूर्ति महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने दोनों अभियुक्तों की ओर से दाखिल अलग-अलग अपीलों को खारिज करते हुए दिया। न्यायालय ने कहा कि दोनों अभियुक्तों ने मात्र अपनी हवस को शांत करने के लिए 12 साल की बच्ची के साथ दुराचार किया। जबकि अभियुक्त पुतई ने न सिर्फ उसकी क्रूरता से हत्या की बल्कि उसके शव को भी ठिकाने लगाने का प्रयास किया।
न्यायालय ने बच्ची के शरीर में आई चोटों का जिक्र करते हुए कहा कि इन चोटों से अभियुक्त के क्रूरता की कहानी पता चलती है। यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसने कितना दर्द सहा होगा। न्यायालय ने यह भी उद्धत किया कि बच्ची को गला घोंटकर मारा गया था। न्यायालय ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट देखने के बाद अभियुक्तों के घटना में शामिल न होने की कोई आशंका नहीं रह जाती। वहीं दोनों अपीलों का विरोध करते हुए, शासकीय अधिवक्ता विमल श्रीवास्तव ने दलील दी कि अपर सत्र न्यायाधीश, कोर्ट नम्बर 13 ने पारिस्थितिजन्य साक्ष्यों को गहराई से परखते हुए, दोनों अभियुक्तों को सही सजा सुनाई है।
5 सितम्बर 2012 को मोहनलालगंज थाने में मृतका के पिता ने एफआईआर लिखाई थी। जिसमें कहा गया था कि 4 सितम्बर की शाम को उसकी बेटी शौच के लिए गई थी लेकिन देर तक न लौटने पर उसकी तालाश शुरू हुई। 5 सितम्बर की सुबह उसका शव एक खेत में पड़ा मिला। जांच के दौरान खेत में मिले बच्ची के कपड़े और एक कंघे के सहारे डॉग स्क्वॉड की मदद से पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची।
रहम का हकदार नही
न्यायालय के समक्ष 31 वर्षीय मुख्य अभियुक्त की गरीबी को देखते हुए, सहानुभूति की प्रार्थना की गई। न्यायालय ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि अभियुक्त अपने कृत्य के कारण किसी भी सहानुभूति का हकदार नहीं है। हो सकता है कि अभियुक्त पेशेवर अपराधी न हो और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी न हो लेकिन जिस क्रूरता से उसने इस अपराध को अंजाम दिया है, वह इस मामले को दुर्लभतम श्रेणी में लाता है।
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