अनिला आज़मी
डेस्क। देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले को भी कुछ धर्म के ठेकेदार नही मानते है और अपना अलग ही कानून चलाते है। इसी कड़ी में सबरीमाल मंदिर में महिलाओ के दर्शन पर लगी रोक को सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दिया। इसके बाद मंदिर में दर्शन करने जा रही महिला कार्यकर्ता के घर पर अवांछनीय तत्वों ने तोड़फोड़ कर दिया है। वही मंदिर के पुजारी ने एलान का दिया है कि अगर महिलाये दर्शन के लिये आई तो मंदिर का पट बंद कर देंगे और नहीं खोलेगे। इसी बीच हालात के हाथो खुद को मजबूर दिखाता प्रशासन बेचारगी अपनी दिखाते हुवे महिलाओ को वापस जाने के लिये राज़ी कर चूका है। सवाल यह है कि जब प्रशासन अपनी सख्ती नही दिखा सकता है तो फिर किस तरह न्यायालय के आदेश लागू होंगे।
प्रकरण में प्राप्त समाचारों के अनुसार सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन करने निकली एक महिला के कोच्चि स्थित घर पर कुछ लोगों ने पत्थरबाजी की है। उसके घर में तोड़फोड़ भी की गई है। यह महिला 4 किमी पैदल चलकर मंदिर पहुंचेगी। दो महिलाएं हैं, जो मंदिर में दर्शन के लिए निकली हैं। पुलिस ने इन्हें सुरक्षा के लिए हेलमेट पहनाया है। इन दो महिलाओं में एक पत्रकार है और दूसरी महिला सामाजिक कार्यकर्ता है। इन दोनों महिलाओं को केरल पुलिस ने सुरक्षा कवर दिया है।
लोगों ने दोनों महिलाओं की इस यात्रा की काफी आलोचना की है। सोशल मीडिया पर कई तरह की टिप्पणी आ रही हैं। जिसमें मंदिर जाने का औचित्य पूछा जा रहा है। तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष तमिलसाई सुंदरराजन ने ट्वीट कर लिखा, ‘सबरीमाला पूजा स्थल है जो किसी आस्तिक के लिए है न कि नास्तिकों या सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए जो वहां जाकर दशकों पुरानी परंपरा तोड़ने पर तुले हैं। क्या अन्य धार्मिक कट्टपंथियों के बारे में सुनकर आपको हैरानी नहीं हूई? एक्टिविजम या सेकुलरिजम की आड़ में हिंदुओं की भावनाओं को आहत करना निंदनीय है।
केरल के देवस्वोम मंत्री ने इस विरोध प्रदर्शन के बारे में कहा, ‘हर उम्र के लोगों को वहां जाने की इजाजत दी जाएगी लेकिन हम इसकी अनुमति नहीं देंगे कि कोई एक्टिविस्ट वहां जाए और अपनी जोर-जबर्दस्ती दिखाए।’
दूसरी ओर सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी ने पुलिस महानिदेशक से कहा है कि महिलाएं अगर मंदिर में प्रवेश करती हैं, तो वे मंदिर का कपाट बंद कर देंगे। ताजा जानकारी के मुताबिक, मंदिर में प्रवेश के लिए निकलीं दोनों महिलाएं वापस लौट रही हैं। केरल के आईजी ने कहा, हमने दोनों महिलाओं को वहां की हालत के बारे में जानकारी दी. दोनों ने वापस लौटने की तैयारी कर ली है।
आईजी मनोक श्रीजीत ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद महिला एक्टिविस्ट ने 21 दिन का उपवास रखा था और अन्य श्रद्धालुओं की तरह उसने भी सबरीमाला मंदिर में पूजा-अर्चना की सभी परंपराओं का पालन किया। विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग जब पुरुषों को आस्तिक या नास्तिक के नाम पर नहीं रोक रहे, तो महिलाओं को क्यों रोका जा रहा है ? वह सरकारी बैंक की कर्मचारी है। हम अधिकारों की रक्षा में खड़े हैं। एक्टिविस्ट, मंत्री या तांत्री के लिए यहां अलग-अलग कानून नहीं है।
अब आप खुद समझे एक मंत्री के शब्दों को और सोचे कानून व्यवस्था लागू करवाने वाले लोग किस तरह सर्वोच्च न्यायालय के आदेशो को न मानने पर तुले है। अगर मंत्री जी से तीन तलाक मुद्दे पर पूछ लिया जाए कि वह भी धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ मुद्दा था तो फिर उसके लागू करवाने में इतनी पैरवी क्यों हुई थी तो शायद मंत्री जी के पास जवाब नही होंगे।
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