आदिल अहमद
कानपुर। कानपुर की कभी शान रही एल्गिन मिल अब अपनी बर्बादी पर आंसू बहा रही है। मिल लगभग नीलामी के कगार पर खडी है और कोई भी इस मिल को वापस शुरू करने के मूड में नहीं दिखाई दे रहा है। वही इस मिल में काम करने वाले मजदूर कर कर्मचारी इस मिल में अपने बकाया वेतन की लम्बी लड़ाई लड़ रहे है। इनके आशियाने भी इसी मिल कम्पाउंड में बने कालोनी में ही है। इस कालोनी में सैकड़ो परिवार निवास करते है। अपनी दाल रोटी के जद्दोजेहद में लगे और खुद के बकाया वेतन की लड़ाई लड़ रहे इन परिवारों पर अब अपने सर छुपाने के लिये भी मुसीबत आ पड़ी है।
इधर मिल कर्मियों ने अपने सर से छीन रही छत को बचाने के लिये परिवार सहित धरना प्रदर्शन किया। सबका कहना था कि जिला प्रशासन को हमारे लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करना चाहिये था। हमारा बकाया वेतन भुगतान सरकार को करवा देना चाहिये था। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और हम घर से बेघर हो रहे है। प्रदर्शन कर रहे लोगो में एक बुज़ुर्ग सत्यप्रकाश ने कहा कि “पहले तो हमको सिर्फ अपने रोज़ी रोज़गार की फिक्र थी, मगर अब हमारे रिहाईश की भी समस्या हमारे सर पर है। हम अपनी जवान बेटियों को लेकर कहा जाये। सरकार हमारा बकाया वेतन दिलवा देती तो हम कही भी जा सकते थे। मगर ऐसे हालत में हम कहा जाये ? जिला प्रशासन को हमारे लिये कोई वैकल्पिक व्यवस्था करना चाहिये था।”
खैर मिल के नंबर 1 प्रथम कम्पाऊंड को खाली करवाया जा चूका है। दूसरा हिस्सा खाली करवाने की कवायद भी प्रशासन चला रहा है। जल्द ही उसको भी खाली करवा दिया जायेगा। बकायेदारो को इस संपत्ति के अधिग्रहण के बाद उनका बकाया मिल जायेगा। मिल तो बंद हो चुकी है। मजदूर कहा जायेगे साथ ही यहाँ रहने वालो की क्या स्थिति होगी वह कहा जायेगे, क्या करेगे इसका किसी के पास जवाब नही है। इनकी मदद के लिए न कोई नेता आगे आ रहा है और न ही कोई राजनैतिक दल। इनको अपनी जद्दोजहद खुद करना है। वही अगर जिला प्रशासन चाहता तो कम से कम इनको सर छुपाने के लिये खाली पड़े कांशीराम आवासों में ही जगह दे सकता था। मगर अभी तक इसकी पहल नही हुई है।
इसी मिल कम्पाउंड में रहने वाले परिवार की एक पढ़ी लिखी बेटी ने इस दौरान हमसे बात करते हुवे कहा है कि सरकार हजारो करोड़ की मूर्ति लगवा रही है। इन्ही पैसो से सरकार हमारे सर पर छत उपलब्ध करवा सकती थी। या फिर हमारे परिजनों के बकाया वेतन का भुगतान करवा सकती थी मगर सरकारे सिर्फ मूर्ति लगवा रही है।
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