आदिल अहमद
? आपके फ़ोन के व्हाट्सऐप ग्रुप में भी ऐसे मैसेज आते होंगे “सभी भारतीयों को बधाई! यूनेस्को ने भारतीय करेंसी को सर्वश्रेष्ठ करेंसी घोषित किया है, जो सभी भारतीय लोगों के लिए गर्व की बात है.”
ये मैसेज और इस तरह के कई दूसरे मैसेज फ़ेक होते हैं लेकिन उन्हें फ़ॉरवर्ड करने वाले लोग सोचते हैं कि वो ‘राष्ट्र निर्माण’ में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.
बीबीसी के एक नए रिसर्च में ये बात सामने आई है कि लोग ‘राष्ट्र निर्माण’ की भावना से राष्ट्रवादी संदेशों वाली फ़ेक न्यूज़ को साझा कर रहे हैं और राष्ट्रीय पहचान का प्रभाव ख़बरों से जुड़े तथ्यों की जांच की ज़रूरत पर भारी पड़ रहा है.
इस रिपोर्ट में ट्विटर पर मौजूद कई नेटवर्कों का भी अध्ययन किया गया और इसका भी विश्लेषण किया गया है कि इनक्रिप्टड मैसेज़िंग ऐप्स से लोग किस तरह संदेशों को फैला रहे हैं.
बीबीसी के लिए ये विश्लेषण करना तब संभव हुआ जब मोबाइल यूजर्स ने बीबीसी को अपने फोन का एक्सेस दिया.
बीबीसी के Beyond Fake News प्रोजेक्ट के तहत ये रिसर्च किया गया है, जो ग़लत सूचनाओं के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है.
भारत में लोग उस तरह के संदेशों को शेयर करने में झिझक महसूस करते हैं जो उनके मुताबिक़ हिंसा पैदा कर सकते हैं लेकिन यही लोग राष्ट्रवादी संदेशों को शेयर करना अपना कर्तव्य समझते हैं.
भारत की प्रगति, हिंदू शक्ति और हिंदुओं की खोई प्रतिष्ठा की दोबारा बहाली से जुड़े संदेश तथ्यों की जांच किए बिना बड़ी संख्या में शेयर किए जा रहे हैं. इस तरह के संदेशों को भेजते हुए लोगों को महसूस होता है कि वे राष्ट्र निर्माण का काम कर रहे हैं.
कीनिया और नाइजीरिया में भी फ़ेक न्यूज़ फैलाने के पीछे भी कहीं न कहीं लोगों में कर्तव्य की भावना है.
लेकिन इन दोनों देशों में ये संभावना ज़्यादा है कि लोग राष्ट्र निर्माण की भावना की बजाय ब्रेकिंग न्यूज़ को साझा करने की भावना ज़्यादा होती है ताकि कहीं अगर वो ख़बर सच हुई तो वह उनके नेटवर्क के लोगों को प्रभावित कर सकती है.
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