आफ़ताब फ़ारूक़ी
बहरैन के आले ख़लीफ़ा शासन की अदालत ने चार नागरिकों को हत्या और ग़ैर क़ानूनी हथियार रखने के निराधार आरोप में सज़ाए मौत सुनाई है।
हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार बहरैन की अदालत ने सोमवार को इन चार बहरैनी नागरिकों को दुराज़ क्षेत्र में सुरक्षा बलों की गश्ती टीम पर हथगोला फेंकने के निराधार आरोप में यह सज़ा सुनाई।
बहरैन की अदालत इससे पहले शनिवार को छह नागरिकों को उम्र क़ैदा की सज़ाएं भी सुना चुकी थी। इन छह लोगों पर आतंकवादी गुटों से वित्तीय सहायता लेने का आरोप लगाया गया है।
बहरैन के 14 फ़रवरी वर्ष 2011 से शाही सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं। बहरैनी जनता निरंतर प्रदर्शन करके देश में निर्वाचित सरकार के गठन, न्याय की स्थापना और भेदभाव की समाप्ति की मांग कर रही है।
वर्ष 2010 के आरंभ और 2011 के आरंभ में जब अरब जगत में अत्याचारी, तानाशाही और बड़ी शक्तियों की पिट्ठू सरकारों के ख़िलाफ़ क्रांतियां आना शुरू हुईं तो बहरैन की जनता, भी जो बरसों से अपने मूल प्रजातांत्रिक अधिकारों से वंचित है, 14 फ़रवरी 2011 को सत्तारूढ़ आले ख़लीफ़ा शासन के ख़िलाफ़ उठ खड़ी हुई। उस दिन को बहरैन के क्रांतिकारी युवाओं ने आक्रोश दिवस का नाम दिया था और सड़कों पर प्रदर्शन आरंभ कर दिया था।
अन्य अरब देशों की तरह बहरैन का जनांदोलन भी सोशल मीडिया पर प्रचार और युवाओं के माध्यम से शुरू हुआ। 14 फ़रवरी सन 2011 को मुख्य प्रदर्शन राजधानी मनामा के पर्ल स्क्वायर पर हुआ जिसमें बाद में तानाशाही शासन ने क्रांति का स्मारक बनने से रोकने के लिए ध्वस्त कर दिया।
बहरैन की जनता ने अपना आंदोलन करने के लिए 14 फ़रवरी की तारीख़ का चयन भी सोच समझ कर किया था। 2002 में इसी दिन बहरैन का संविधान पारित हुआ था।
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