आफ़ताब फ़ारूक़ी
अरबी समाचारपत्र रायुल यौम ने अपने संपादकीय में लिखा है कि इस्राईली केवल ताक़त की भाषा समझते हैं और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ने ज़ायोनी शासन को करारा जवाब दे कर आग के बदले आग के अर्थ को मज़बूत बनाया है।
रायुल यौम के प्रधान संपादक अब्दुल बारी अतवान ने फ़िलिस्तीन की हालिया घटनाओं के बारे में लिखा है कि यह फ़िलिस्तीनी जनता विशेष कर ग़ज़्ज़ा के फ़िलिस्तीनियों का हक़ है कि उन्हें विजय हासिल हो, वे अपनी जीत का जश्न मनाएं और मस्जिदों में अल्लाहो अकबर के नारे लगाएं। अगर फ़िलिस्तीनियों का साहसिक प्रतिरोध न होता तो घमंडी ज़ायोनी प्रधानमंत्री बेनयामिन नेतनयाहू कभी संघर्ष विराम को मानने के लिए तैयार न होते और जल, थल और वायु मार्ग से ग़ज़्ज़ा पट्टी पर हमले जारी रखते। इस्राईली केवल ताक़त की भाषा समझते हैं और ग़ज़्ज़ा पट्टी व पश्चिमी तट में प्रतिरोधक बल वही लोग हैं जिन्होंने यह भाषा अच्छी तरह सीख ली है।
पत्र लिखता है कि नेतनयाहू इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि बिना विध्वंसक जवाब और ज़ायोनी सैनिकों व काॅलोनियों में रहने वालों के भारी जानी नुक़सान के बिना ग़ज़्ज़ा पट्टी को निशाना बना संभव नहीं है। उन्होंने प्रतिरोध के एक वरिष्ठ कमांडर के अपहरण या उनकी हत्या के लिए अपने विशेष कमांडोज़ को ग़ज़्ज़ा पट्टी में भेजा था। ये कमांडोज़ पिछले साल की तहर इस बार भी फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के जाल में फंस गए और उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि किस ओर से भागें। अगर इस आतंकी टीम की मुक्ति के लिए इस्राईल के व्यापक हमले न होते और उसके हेलीकाॅप्टर समय पर न पहुंच जाते तो यह पूरी टीम मारी जाती। इन आतंकियों को मारना एक क़ानूनी व राष्ट्रीय अधिकार है।
अब्दुल बारी अतवान अपने संपादकीय में ग़ज़्ज़ा और ज़ायोनी शासन के बीच संघर्ष विराम की घोषणा की तरफ़ इशारा करते हुए लिखते हैं कि ग़ज़्ज़ा पट्टी का हालिया युद्ध अल्पकालीन था क्योंकि नेतनयाहू व उनका मंत्रीमंडल इस निष्कर्ष पर पहुंच गया कि अगर ये युद्ध व्यापक रूप धारण करता है तो उन्हें भारी जानी और माली नुक़सान उठाना पड़ेगा और संभावित रूप से इसके कारण नेतनयाहू आगामी चुनाव में हार सकते हैं और उनके सांठ-गांठ करने वाले अरब मित्र कठिनाई में पड़ सकते हैं। इस लिए उन्होंने फ़ैसला किया कि कम से कम नुक़सान के साथ संकट से बाहर निकल जाएं। उन्होंने मिस्र से मदद मांगी ताकि इस स्थिति से उन्हें मुक्ति मिल जाए। प्रतिरोध के बलों ने जो नए समीकरण पेश किए हैं उनसे युद्ध में एक नए अर्थ को बल मिला है और वह है “आग के मुक़ाबले में आग” और ग़ज़्ज़ा पट्टी के निकट स्थित ज़ायोनी काॅलोनियां फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के मीज़ाइलों के सटीक निशाने पर हैं।
केवल एक दिन में 400 मीज़ाइल फ़ायर किए गए जिनसे इस्राईलियों को भारी नुक़सान पहुंचा। ख़तरे के सायरन लगातार बजते रहे और लाखों आतंकित काॅलोनी निवासियों के लिए शरण स्थलों के दरवाज़े खोल दिए गए। कौन सोच सकता था कि एक अहंकारी सरकार के सामने इतनी तेज़ी के साथ इस प्रकार की स्थिति पैदा हो जाएगी? यह वही प्रतिरोध का मोर्चा है जो ईश्वर की सहायता से सांठ-गांठ के अन्य मोर्चों को भी पराजित कर देगा। अतवान अपने संपादकीय में फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास को संबोधित करते हुए लिखते हैं कि ग़ज़्ज़ा पट्टी से फ़ायर होने वाले मीज़ाइल, व्यर्थ नहीं हैं बल्कि ये वह हथियार है जो तेल अवीव, नहारिया, उसदूद, मजदल, सफ़द और अन्य इस्राईली शहरों के होश उड़ा रहे हैं। ज़मीन के भीतर मीज़ाइल और हथियार बनाने वाले बड़े दिमाग़, परिवेष्टन और बिजली व वेतन काटे जाने के योग्य नहीं हैं।
रायुल यौम के प्रधान संपादक अब्दुल बारी अतवान ने अपने संपादकीय के अंत में लिखा है कि इस बार प्रतिरोध की विजय हुई क्योंकि उसे अपनी निश्चित विजय का पूरा विश्वास था जिस प्रकार से उसे इस बात पर विश्वास है कि फ़िलिस्तीन का संघर्षकारी राष्ट्र उसका समर्थक है। जब अलअक़सा टीवी चैनल ने अपना हेडक्वाॅर्टर ध्वस्त होने के दस मिनट के अंदर अपनी गतिवियां पुनः शुरू कर दी तो इसका अर्थ यही है कि प्रतिरोध ने हर संभावना व आशंका को दृष्टिगत रखा था और हर स्थिति का विकल्प तैयार कर रखा था। इस टीवी चैनल ने इस्राईलियों को तपा रखा है और यह स्वयं अपने आप में एक सेना है जो ज़ायोनी शासन पर कड़े प्रहार कर रही है। ग़ज़्ज़ा पट्टी के लोग इस युद्ध में विजय के लिए बधाई के पात्र हैं। इस विजय के नतीजे भी बड़ी तेज़ी से सामने आए और अत्याचारपूर्ण घेराबंदी के बावजूद इसने नए सैन्य समीकरण पैदा कर दिए हैं।
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