आदिल अहमद
कानपुर। पत्रकारों की सुरक्षा के लिये उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया भले ही जितने भी दिशा निर्देश देते रहे मगर आज भी प्रदेश में पत्रकार असुरक्षित है। लगातार पत्रकारों पर हमले के समाचार आते रहते है। इसी कड़ी में आज कानपुर के थाना अनवरगंज क्षेत्र के बॉसमंडी क्षेत्र के एक इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार शाहनवाज़ पर छेड़खानी का विरोध करने पर क्षेत्र के पास का रहने वाला कुख्यात अपने दस पंद्रह साथियों के साथ हमलावर हुआ और मार पीट कर पत्रकार को घायल कर दिया। घटना की सुचना पुलिस को प्रदान करने के बाद अभी तक पुलिस की कार्यवाही संदेह के घेरे में है।
क्या है घटना का मुख्य कारण
घटना के सम्बन्ध में प्राप्त समाचार के अनुसार थाना अनवरगंज क्षेत्र के आलम मार्किट, टुकुनियापुरवा के रहने वाले पत्रकार शहनवाज़ कल जुलूस-ए-मुहम्मदी के दौरान अपने घर के बाहर खड़ा था। उसी समय क्षेत्र के पास का रहने वाला बऊवा झादुवाला नाम का कुख्यात अपने दो साथियों के साथ आकर वहा से गुज़र रही लडकियों पर छीटाकशी करना शुरू कर देता है। यां देख पत्रकार शहनवाज़ उनको ऐसा करने से मना करता है और मौके से चले जाने को कहता है। अपना विरोध देख बऊआ आग बगुला हो जाता है और पत्रकार से गर्मी गरमा करने लगता है। इसी दौरान क्षेत्र के अन्य सम्भ्रांत लोग भी उस अपराधी के खिलाफ खड़े हो जाते है। इसके बाद बऊआ झाड़ू को मौके से जाना पड़ा था क्योकि काफी लोग उसके खिलाफ खड़े हो गये थे। अपना दबदबा कम होते देख बऊआ झाडूवाला पत्रकार शाहनवाज़ को देख लेने की धमकी देता हुआ मौके से चला जाता है।
पीड़ित शहनवाज़ के अनुसार आज दोपहर लगभग ढाई बजे के शाहनवाज़ एक खबर के सिलसिले में कही जा रहा था कि टुकुनियापुरवा चौराहे पर पहले से घात लगाये बैठे बऊआ झाड़ू और उसके साथियों ने पत्रकार को घेर लिया और मारने पीटने लगे। अचानक हुवे हमले से शहनवाज़ सड़क पर गिर पड़ा और उसका बैग वगैरह सब सड़क पर फ़ैल गया। प्रत्यक्षदर्शियो और क्षेत्रीय नागरिको के अनुसार मारपीट होते देख आस पास के दुकानदार और क्षेत्रीय नागरिक मौके पर इक्कट्ठा होना शुरू हुवे तब तक हमलावर फरार हो गये।
पुलिस की भूमिका रही संदिग्ध
इस हमले के बाद घायल पत्रकार लगभग 2:45 बजे दोपहर में अपनी शिकायत लेकर थाना स्थानीय अनवरगंज पंहुचा और घटना की सुचना अपने मीडिया हाउस तथा प्रेस क्लब को प्रदान किया। सुचना पर मौके पर दो क्षेत्र के निवासी पत्रकार के अलावा मीडिया हाउस से अभिलाष बाजपेई पहुचे। मौके पर मौजूद पत्रकारों की माने तो पहले थानेदार साहब ने रौब झाड़ते हुवे पत्रकार को ही हडदब में लेने का प्रयास किया। पत्रकार ने कहा कि मारपीट में उसका बैग भी कही लापता हो गया है जिसमे उसका कैमरा था तो थानेदार साहब हत्थे से उखड गए और पत्रकार को ही हडकाते हुवे बोले कि झूठी बात है ये मैं उलटे तुम्हारे ऊपर मुकदमा लिख दूंगा। तब तक साथ थाने पहुचे पत्रकारो को थाना प्रभारी साहब देखे तो थोडा ठन्डे हुवे और मुकदमा दर्ज करने का आदेश देते हुवे कहा कि जहा भी दिखाई दे आरोपी तो तत्काल मुझको फोन करके बताना। इसके बाद पीड़ित पत्रकार को मेडिकल के हेतु भेज दिया गया।
मेडिकल थाने पर जमा करने के बाद पीड़ित पत्रकार अपने साथ गये चुनिन्दा पत्रकारों के साथ क्षेत्र में पहुचता है तभी उसको जानकारी मिलती है कि आरोपी कुख्यात बदमाश बऊवा झाड़ू चौराहे पर खड़ा है। इसकी सुचना जब थाना प्रभारी को दिया जाता है तो वह कहते है कि अभी चौकी इंचार्ज को भेजता हु और फिर लगभग 3 घंटे बाद चौकी इंचार्ज मौके पर पहुचते है। इस दौरान आरोपी कुख्यात अपने रस्ते चला जाते है।
अपराधी को फोन पर समझाते है चौकी इंचार्ज
घटना का सबसे हास्यप्रद पहलू यह है कि चौकी इंचार्ज बॉसमंडी मौके पर जाकर सबसे अपराधी का मोबाइल नंबर मांगने लगते है। किसी ने उनको जब नंबर उपलब्ध करवाया तो उन्होंने आरोपी शातिर अपराधी को फोन करके चौकी आकर अपनी बात कहने का प्रस्ताव जैसा रखा और पीड़ित पत्रकार से कहा कि आप परेशान नही हो, मैं सब ठीक कर दूंगा और आरोपी आपसे मांगी मांगेगा। अब यह बात समझ नही आ रही है कि क्या अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को जिस प्रकार दुबे जी प्रेम से चौकी बुला रहे है और पीड़ित को इससे सान्तवना दे रहे है कि आपसे उक्त कुख्यात माफ़ी मांगेगा, उससे उनके निष्पक्ष कार्यवाही की उम्मीद ही कम होती जा रही है या फिर ये कहिये कि ख़त्म हो रही है।
नहीं पंहुचा पत्रकारों का संगठन
शहनवाज़ एक ऐसा पत्रकार है जो हर किसी को खबर बता देता है। किसी ने न्यूज़ के सम्बन्ध में कोई जानकारी मांगी तो वह परस्पर सहयोग के तहत उपलब्ध करवा देता है। शहनवाज़ कानपुर प्रेस क्लब से भी जुडा हुआ है। इन सबके बावजूद आज आवश्यकता पड़ने पर पीड़ित शाहनवाज़ के साथ उस संगठन का कोई नही खड़ा हुआ यह अफ़सोस की बात है। पत्रकार को इन्साफ मिले इसके तर्ज पर बने इस संगठन के कोई भी पदाधिकारी अथवा सदस्य नही दिखाई दिया। यही नही किसी ने साथ में आकर खड़े होने की ज़हमत नही उठाई। शायद कथनी और करनी का फर्क इसको ही कहा जाता है।
60 साल के बुज़ुर्ग या 60 साल के जवान
लगभग 60 साल के बुज़ुर्ग पत्रकार अजय मौके पर पहुच जाते है मगर संगठन के नाम पर किसी ने साँस डकार तक नही लिया, शायद नवजवान इस बुज़ुर्ग के मुकाबले कमज़ोर रहे होंगे। जो भी हो मगर घटना की कड़े शब्दों में निंदा तो बनती है। हम इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करते है।
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