तारिक खान
प्रयागराज- प्रयागराज में अगले माह 14 जनवरी से महाकुंभ मेला शुरु होने जा रहा है, मोदी व योगी राज में हो रहे इस महा-कुंभ मेले में व्यवस्था मजबूत की जा रही है, मेले मे बिभिन्न समुदाय के देश- विदेश के लाखो करोडो लोग इस मेले मे शिरकत करेंगे, इसलिये व्यवस्था मे कोई चूक ना हो सभी तैयारियां की जा रही है ,
अगर सियासत की नजर से देखे तो यह मेला सिर्फ मेला ही नही भाग्य विधाता माना जा रहा है, क्योकि आगामी वर्ष 19 मे लोकसभा चुनाव भी होंगे, जिसके मद्दे नजर अब मोदी की निगाहे यू पी मे टिकी हुई है, अब योगी हो य मोदी भला इससे बढिया मौका और क्या हो सकता है, जहा करोडो लोग एक साथ कुंभ मेले मे पहुंचेन्गे ,
सरकारी अमले ने शाही स्नान समेत दूसरे जुलूसों मे हाथी-घोड़ों को शामिल नहीं करने का फरमान सुना दिया है , जिससे नाराज़ साधू-संतों ने इसे परम्परा से खिलवाड़ बताते हुए जमकर विरोध करने का एलान कर दिया है, नाराज़ संतों ने यह सवाल भी उठाया है कि बकरीद पर कुर्बानी के लिए सरकारी संसाधन मुहैया कराने वाली योगी की सरकार को आखिर सनातन धर्मियों के कुंभ मेले में ही जानवरों पर अत्याचार की फ़िक्र क्यों हो रही है,
साधू-संतों के विरोध के बाद मेला प्रशासन अब बीच का कोई रास्ता निकालने की बात कहकर हाथी-घोड़ों पर लगी आग को ठंडा करने की कोशिशों मे जुट गया है, प्रयागराज का कुंभ मेला शुरू होने में अभी दो हफ्ते ही बचे है, लेकिन मेले में एक के बाद एक कई विवाद खुलकर सामने आने लगे हैं, ताज़ा मामला कुंभ मेला प्रशासन द्वारा अखाड़ों की पेशवाई-शाही स्नान और नगर प्रवेश जैसे दूसरे जुलूसों में हाथी-घोड़ों के इस्तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगाए जाने के मामले को लेकर है,
मेले मे जहा गंगा नदी मे पर्यटको के विहार के लिये वोट मशीन की व्यवस्था की गई है, वही अखाड़ों के पदाधिकारियों के साथ होने वाली कोआर्डिनेशन बैठक में मेला प्रशासन ने जैसे ही वन्य जीव क्रूरता अधिनियम का हवाला देकर हाथी और घोड़ों के इस्तेमाल पर रोक का फरमान सुनाया, वहां मौजूद साधू-संत उबल पड़े, अफसरों की दलील दी थी कि जुलूसों में हाथी व घोड़ों पर अत्याचार होता है और यह क़ानून के खिलाफ है, नये नियमों के तहत जुलूसों में इन्हे शामिल किये जाने पर पाबंदी है, संतों ने हाथी-घोड़ों को सनातनी वैभव का प्रतीक करार देते हुए इसे परम्परा से जुड़ा हुआ बताया तो अफसरों ने भीड़ के दौरान भगदड़ मचने और पांटून पुलों को नुकसान पहुंचने की आशंका जताते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए,
गौरतलब है कि अखाड़ों के नगर प्रवेश, कुंभ में शाही अंदाज़ में प्रवेश करने की रस्म पेशवाई और तीन प्रमुख स्नान पर्वों पर होने वाली शाही स्नान के लिए निकलने वाले जुलूसों में सबसे आगे हाथी-घोड़े और ऊंट ही होते हैं. कई बार अखाड़ों के संत या उनके भक्त इन जानवरों पर बैठे हुए भी नजर आते हैं. जुलूसों में सबसे आगे चलने वाले ये जानवर अखाड़ों के वैभव का प्रदर्शन करते हैं,
बहरहाल कुंभ मेला प्रशासन के इस फरमान से साधू संतों में ज़बरदस्त नाराज़गी है, उनका कहना है कि वह अपनी सनातनी परम्परा से कतई खिलवाड़ नहीं होने देंगे और इस फरमान को कतई नहीं मानेंगे, कहा जा सकता है कि हाथी-घोड़ों ने कड़कड़ाती ठंड में भी कुंभ के माहौल को गरमा दिया है, इस गर्म माहौल में योगी व मोदी सरकार को अग्नि परीक्षा देकर संतों की कसौटी पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड सकता है।
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