करिश्मा अग्रवाल
कुछ शख्सियतें कम समय में ही एक नई बुलंदी हासिल कर लेती है।इसी का उदाहरण है- ‘लीजेंड ऑफ़ प्रयागराज’ अवार्ड से सम्मानित उदीयमान युवा लेखक सौरभ चौबे। इनकी पुस्तकें ‘प्राचीन भारत’ और ‘मध्यकालीन भारत’ लगातार ना केवल रिकॉर्ड बिक्री कर रही हैं,बल्कि निरंतर सम्मानित और पुरस्कृत भी हो रही हैं। इनके सरल व्यक्तित्व की छाप इनके लेखन में भी साफ नजर आती है ‘स्पष्ट और सहज’। पहली बार PNN24 न्यूज़ की संवाददाता करिश्मा अग्रवाल के साथ बेबाकी से साझा किए अपने विचार और अनुभव सौरभ चौबे ने :-
सौरभ चौबे – सिविल की तैयारी के दौरान इतिहास की ओर रुझान हुआ।यह रुझान धीरे धीरे जुड़ाव और फिर जुनून में बदल गया।इतिहास से प्यार इतना बड़ा कि फिर कहीं भटकाव ही नहीं हुआ और इसी क्षेत्र में स्वयं को समर्पित कर दिया।
2.क्या आपने सोचा था कि आपकी पुस्तक ‘प्राचीन भारत’ और ‘मध्यकालीन भारत’ इतनी अधिक लोकप्रिय रहेंगी?
सौरभ चौबे – जी बिलकुल सोचा था,क्योंकि इन पुस्तकों का लेखन मैंने व्यवसाय के लिए नहीं बल्कि एक विद्यार्थी के दृष्टिकोण से प्रतियोगी परीक्षाओं के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए किया था।मेरा उद्देश्य ढ़ेर सारी उपलब्ध अध्ययन सामग्री के बीच सरल-सहज भाषा में परीक्षापयोगी सामग्री का सारगर्भित संकलन था ना कि अनावश्यक विस्तार।यही लोकप्रियता का कारण बना।
3.किताबें लिखने की प्रेरणा आपको कैसे मिली?
सौरभ चौबे – बाजार में उपलब्ध प्रतियोगी पुस्तकों की भरमार में भ्रामक और गलत तथ्यों से भरी ढेरों सामग्री भी मौजूद है। ऐसे में विश्वसनीय,सटीक और अतिविशिष्ट तथ्यों के संकलन से परिपूर्ण पुस्तक की कमी ने मुझे प्रेरित किया। मेरी पूजनीय माता उमा चौबे ने निरंतर मेरा उत्साह बनाए रखा।मेरा लेखन और सफलता उन्हीं की प्रेरणा का फल है।
4.अक्सर काफी तैयारी के बाद भी युवा प्रतियोगिताओं में असफल हो जाते हैं।ऐसा क्यों?
सौरभ चौबे – देखिए सफलता और असफलता एक सापेक्षिक अवधारणा है जिसे लेकर अपनी-अपनी सोच है।यदि हम असफल हुए हैं तो ऐसा नहीं कि सफल नहीं होंगे। सकारात्मक ऊर्जा ,सही रणनीति और दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़े।
5.अधिकतर अभ्यर्थी इतिहास विषय को काफी ‘कठिन’ विषय के रूप में देखते हैं।उनसे क्या कहना चाहेंगे?
सौरभ चौबे – अक्सर ऐसा कहा सुना जाता है,तो बता दें कि इतिहास को अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ कार्य-कारण संबंध समझते हुए पढ़े यानि क्या हुआ,क्यों हुआ और उसका तत्कालीन और भावी घटनाओं पर क्या प्रभाव पड़ा तो निश्चित ही इससे रुचिकर और कुछ नहीं।
6.प्रतियोगी अभ्यर्थियों के बीच ‘क्या पढ़े-क्या न पढ़ें’ को लेकर असमंजस रहता है।ऐसे में ‘इतिहास’ की तैयारी की सही रणनीति क्या होनी चाहिए?
सौरभ चौबे – निसंदेह अगर आपको यह पता चल जाए कि आपको क्या नहीं पढ़ना है तो आपकी सफलता की दर काफी बढ़ जाती है।इतिहास के अध्ययन के लिए हमेशा मानक पुस्तकों का ही अध्ययन करें जो किसी विचारधारा विशेष से प्रभावित ना हो और तथ्यों का लेखन प्रमाणों के आधार पर किया गया हो।अच्छी संगत की तरह अच्छी पुस्तकें भी आपको सफलता की राह पर आगे ले जाती है।
7.प्रतियोगी अभ्यर्थी अक्सर निराश हो जाते हैं?उन्हें क्या ‘मोटिवेशन मंत्र’ देना चाहेंगे?
सौरभ चौबे – असफलता को खुद पर हावी ना होने दें।यदि किसी एक क्षेत्र में असफल हो रहे हैं तो भी आत्मविश्वास न खोयें।ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता।राहें और भी बहुत सी हैं,बस सोच बदलें।
8.हर साल आपकी पुस्तकों के नए संस्करण आ रहे हैं जिसे लेकर एक वर्ग ने आप पर निशाना भी साधा।उनसे क्या कहेंगे?
सौरभ चौबे – संस्करणों की निरंतरता लेखक की लेखन के प्रति प्रतिबद्धता और समर्पण का प्रतीक होती है,जो दिखाता है कि उसने अपना लेखन और अध्ययन छोड़ा नहीं है।वर्ष में एक बार आने वाले संस्करण का कारण प्रतियोगी परीक्षाओं के बदलते स्वरुप के अनुसार पुस्तक को अपडेट रखना है।उदाहरण के लिए बी.एल. ग्रोवर 50वां संस्करण चल रहा है और एल.पी.शर्मा 25वां।नवीन तथ्यों व और अधिक अच्छा लिखने के भाव ही संस्करण के रूप में सामने आते हैं।मेरा उत्तर मेरा लेखन और उसकी सफलता है।
9.सभी आपकी पुस्तक ‘आधुनिक भारत’ का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, यह इंतज़ार कब खत्म होगा?
सौरभ चौबे – दरअसल आधुनिक भारत का लेखन भी पूर्ण मनोयोग और शोध के साथ करना चाहता हूं। ‘निपटाउ’ लेखन मेरा ध्येय नहीं इसलिए समय लग रहा है। फिर भी दिसंबर 2019 तक पुस्तक आप सभी को समर्पित कर दूंगा।
10.भविष्य में किन पुस्तकों के लेखन की योजना है?
सौरभ चौबे – सिविल सर्विसेज हेतु इतिहास के तीनों भागों का कंबाइंड एडिशन लाने की तैयारी है। इसके अलावा विभिन्न प्रतियोगिताओं के सोलव्ड पेपर्स और भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर पुस्तक के लेखन की योजना है।
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