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प्रदीप कुमार
पीएनएन 24 की विशाल और सक्रिय टीम के माध्यम से आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं भारत देश की एक गौरव एशिया के सबसे बड़े गांव पूर्वांचल में स्थित
गाजीपुर जिले के गहमर गांव से।
यकीन मानिए इस गांव की स्टोरी पढ़ने के बाद आपको गर्व भी होगा और आश्चर्य भी ।
भारतवर्ष के पूर्वांचल क्षेत्र में स्थित जिला गाजीपुर में स्थित है यह गहमर नाम का गांव,जो एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा गांव होने का गौरव प्राप्त है ।
इस गांव की जनसंख्या सैकड़ों हजारों में नहीं करीब 1 लाख 20 हजार से ऊपर है ।
परंतु इस आश्चर्यजनक आंकड़े के अलावा एक सबसे बड़ी गर्व की बात जो इस गांव के साथ जुड़ी हुई है वह ये है कि इस गांव के हर घर से कोई ना कोई सेना में तैनात हो देश की सेवा और रक्षा में लगा हुआ है।
पुरानी कहानियों और बुजुर्गों के माध्यम से जानकारी प्राप्त होती है कि सन 1530 में कुसुम देव राव” ने सकरा डीह नामक स्थान पर इस गांव को बसाया था।
जानकारी देते चलें कि जिला गाजीपुर से 40 किमी दूरी पर ये गांव बसा है,
विकास कार्यों शिक्षा व जागरूकता से लव रेज इस गांव गहमर में रेलवे स्टेशन भी है, जो इसे पटना और मुगलसराय से जोड़ता है।
इस गांव की सबसे बड़ी उपलब्धि व गौरव का इस बात से है अनुमान लगाया जा सकता है कि इस गांव के करीब 12 हजार लोग फौज में है, जो जवान से लेकर कर्नल तक छोटे पद से लेकर बड़े अधिकारी पदों तक सेना की सेवा कर देश की रक्षा अलग-अलग पदों पर आसीन हो कर रहे हैं,
आंकड़े यहीं तक अचंभित नहीं करते बल्कि अपने गौरवपूर्ण इतिहास के साथ आंकड़े यह भी बताते हैं कि करीब 15 हजार से ज्यादा इस गांव में भूतपूर्व सैनिक भी हैं, कई परिवार ऐसे भी हैं, जो पीढी दर पीढी इस देश की सेवा करते आ रहे हैं।
दादा परदादा तो भूत पूर्व सैनिक हैं ही, उच्च शिक्षा प्राप्त नाती पोता भी अपने पूर्वजों के नक्शे कदम पर चल के फौज में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रहे है।
बिहार-यूपी की सीमा पर बसा हुआ यह गांव गमहर निश्चित ही पूर्वांचल और देश का गौरव है भौगोलिक रूप से ये गांव करीब 8 वर्गमील में फैला है और इसकी आबादी करीब 1 लाख 20 हजार है। स्थानीय लोगों के अनुसार पूरी ग्राम सभा 22 पट्टी (टोले )में बंटा हुआ है, प्रत्येक पट्टी या टोला किसी ना किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के नाम पर रखा गया है।
विश्व युद्ध से लेकर करगिल युद्ध तक में यह गांव भागीदार व गवाह है।
प्रथम या फिर द्वितीय विश्व युद्ध रहा हो, या फिर 1965 और 1971 की लड़ाई, या करगिल युद्ध, इन सभी में यहां के फौजियों ने बढ चढ कर हिस्सा लिया था।
एक रिपोर्ट वह प्राप्त जानकारी के अनुसार विश्व युद्ध के समय भी अंग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक शामिल थे, युद्ध करते हुए 21 जवान शहीद भी हो गये थे, उनकी याद में आज भी गांव में एक शिलालेख लगा हुआ है, जिसका गांव में बहुत ही सम्मान है।
गहमर के भूत पूर्व सैनिकों ने एक पूर्व सैनिक सेवा समिति नाम से संस्था बनाई है, जिसकी देखरेख में गांव के युवकों का झुंड गंगा तट पर सुबह-शाम सेना की तैयारी करते दिखते हैं,
यहां के युवकों की फौज में जाने की परंपरा की वजह से ही सेना गहमर में भी भर्ती शिविर लगाया करती है, ताकि इस गांव के ज्यादा से ज्यादा युवा इस देश की रक्षा के लिये फौज में शामिल हो सकें।
साथ ही साथ गांव में ही सैनिकों की सुविधा के लिए सैनिक कैंटीन भी बनवाई गई थी जिससे कि सैनिकों को चीजें आसानी से सस्ते दरों पर उपलब्ध हो सकें परंतु मौजूदा समय में
1986 के बाद इस गांव में भर्ती के लिए शिविर लगाने की परंपरा को बंद कर दिया गया लेकिन यहां के लड़कों का रुझान सेना में भर्ती होने के लिये कम नहीं हुआ। अपने गांव के गौरव और देश की रक्षा के लिए यहां के लड़के लखनऊ, रुड़की, सिकंदराबाद जाकर परीक्षा देते हैं, ताकि उन्हें फौज में शामिल होकर इस देश की सेवा का मौका मिले।
कुछ सालों पहले से गांव में उपस्थित सैनिक कैंटीन को भी बंद कर दिया गया जिससे कि गांव के सैनिकों को कैंटीन से सामान लेने बनारस जाना पड़ता है।
यूं तो गहमर गांव है, लेकिन इस गांव में भी शहर जैसी सारी सुविधाएं हैं, गहमर में टेलीफोन एक्सचेंज, डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, स्वास्थ्य केन्द्र है।
यहां के लोग फौजियों की जिंदगी से इस कदर जुड़े हुए हैं कि चाहे युद्ध हो या फिर कोई प्राकृतिक विपदा, यहां की महिलाएं भी अपने घर के पुरुषों को इसमें जाने से नहीं रोकती है, बल्कि उन्हें और प्रोत्साहित करती है।
गांव में सैन्य कर्मियों के संख्या का आलम यह है कि त्योहारों में गांव सैनिक छावनी जैसा दिखता है।
गहमर रेलवे स्टेशन पर जितनी भी गाड़ियां रुकती है, उनमें से कुछ ना कुछ फौजी रोजाना यहां उतरते हैं, पर्व-त्योंहारों के साथ-साथ छुट्टियां मनाने के लिये फौजी यहां आते रहते हैं,
कई मौकों पर तो लगता है कि जैसे गांव सैन्य छावनी में तब्दील हो गया है।
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