तारिक आज़मी
सपा बसपा का गठबंधन हो चूका है। इस गटबंधन से सबसे अधिक नुक्सान की सम्भावनाये कही न कही से भाजपा को ही है। इतिहास गवाह है कि दोनों दलों के पूर्व में हुवे गटबंधन ने भाजपा को ही नही सभी सियासी दलों को पटखनी दिया है। इसका जीता जागता उदहारण प्रदेश में कुछ सीटो पर उपचुनाव है जहा भाजपा इस दो दलों की बिना औपचारिकता के हुवे गठबंधन के आगे अपनी सीट गवा चूका है। वैसे तो उपचुनावों में हमेशा उस पार्टी को फायदा मिलता रहा है जिसकी वह सीट रहती है। मगर इस बार मृतक विधायक की सीट पर उसकी पत्नी को उतारने के बाद भी भाजपा को मुह की खानी पड़ी थी।
अब उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन को दुसरे नज़र से देखे तो विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने का मास्टर प्लान तैयार किया है। अखिलेश यादव और मायावती की जोड़ी ने मोदी लहर की काट निकालने की कोशिश की है। अखिलेश-मायावती की जोड़ी पीएम मोदी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। ऐसे में इस बार यूपी में बीजेपी की राह आसान नहीं है। अखिलेश और मायावती दोनों ने साथ आने के संकेत काफी पहले से देने शुरू कर दिए थे।
उदहारण के लिये आपको बता दू कि बीजेपी का गढ़ और योगी आदित्यनाथ का चुनावी क्षेत्र गोरखपुर जिस सीट पर योगी आदित्यनाथ खुद काबिज़ थे और उनके इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई थी। इसी गठबंधन ने बीजेपी के हाथ से निकल गई। इसके अलावा फूलपुर में भी मायावती के उम्मीदवार के चुनाव न लड़ने से बीजेपी को एसपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। कैराना और नूरपुर की सीट भी बीजेपी के हाथ से निकल गई। कैराना का प्रकरण किसी को बताने की ज़रूरत नही है फिर भी भाजपा वहा चुनाव हार गई। वही दूसरी तरफ भाजपा के विधायक की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद खाली हुई नूरपुर की सीट पर भाजपा ने उनकी पत्नी को टिकट दिया। इसके बाद भी भाजपा वहा चुनाव हार गई और उसको मुह की खानी पड़ी थी।
बताते चले कि 2014 के चुनाव में दोनों ही पार्टियों को बुरा हाल रहा था। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जहां 71 सीटें मिली थी। वहीं एसपी को 5 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी, जबकि बीएसपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। हालांकि मोदी लहर के बावजूद वोट प्रतिशत के मामले में एसपी-बीएसपी काफी मजबूत रही थी। अगर 2014 जैसी लहर मान ले तो ये गठबंधन आंकड़ों के हिसाब से मोदी सरकार के पसीने छुड़ा सकता है। 2014 में मोदी लहर के बावजूद सपा-बसपा 41।80 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही थी। जबकि बीजेपी को 42।30 फीसदी वोट मिले थे। सूबे में 12 फीसदी यादव, 22 फीसदी दलित और 18 फीसदी मुस्लिम हैं, जो कुल मिलाकर आबादी का 52 फीसदी हिस्सा है। यदि इस हिस्से को एक साथ मिला लिया जाए तो ये धडा भाजपा के काफी आगे दिखाई दे रहा है। यूपी के जातीय समीकरण और इतिहास में भी ये जोड़ी बीजेपी और मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है और पीएम के रास्ते का रोड़ा जो कि महागठबंधन से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है।
वही अगर ज़मीनी स्तर से जुड़े भाजपा कार्यकर्ताओ की सुगबुगाहट को ध्यान दे तो भाजपा को इस गठबंधन से लगभग 35 से 40 सीट का नुक्सान होने की संभावना है। अगर इस समीकरण को ध्यान रखे तो अगली सरकार भले भाजपा की बन जाए मगर होगी लंगड़ी सरकार, क्योकि जहा समीकरणों में 35 सीट उत्तर प्रदेश की जा रही है वही बड़ा नुक्सान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा में होता दिखाई दे रहा है। दुसरे तरफ बिहार में लालू खेमा जहा हावी होने की कोशिश कर रहा है वही दुसरे तरफ नितीश और पासवान ने जिस प्रकार भाजपा को झुका रखा है वह उस प्रदेश में भी भाजपा को नुक्सान दिखला रहा है। अब एक तरफ ओमप्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल द्वारा भी भाजपा को आँखे दिखाना शुरू कर देने से पूर्वांचल में भी भाजपा को इन दोनों दलों से नुक्सान होने की संभावना है।
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