तारिक आज़मी
मुझको मालूम है कि शायद मेरे लफ्ज़ कुछ तल्ख़ हो सकते है। अजीबो गरीब माहोल बनता जा रहा है कि एक सच को बोलने पर झूठ के कई आरोप झेलने पड़ जाते है। खैर साहब क्या बताया जाये अगर कलम ही झूठ की तरफदारी करने लगे तो फिर क़यामत के आसार ही कहेगे इसको। आप ही बताओ न हम सच की पैरोकारी करे या झूठ के परचम को बुलंद रखे। सियासत अगर झूठ बोलती है तो एक बार समझ में आ सकता है कि क्यों बोला, मगर अगर नौकरशाह झूठ का सहारा लेना शुरू कर दे तो फिर बात थोडा हज़म नही होती है। क्योकि जिनके ज़ाती मकानात है वो किरायदारो के तरफ अगर अपने हुनर को बया करे तो बात अचम्भे की हो सकती है।
मामला प्रयाग में इस साल कुम्भ का है। राहत इन्दौरी का शेर याद है मुझको कि सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है, वह रोज़ा तो नही रखता मगर अफ्तारी समझता है। यहाँ रवादारी का मतलब शिष्टाचार से होता है ये बता देना ज़रूरी है वरना किस नुक्कड़ से कौन सा फतवा निकल कर जी का जंजाल बन जाए समझ नही आता है। मैं पहले भी कह चूका हु कि पत्रकारिता इतनी आसान तो नही है। हां भले आप आसन रास्तो की तलाश कर सच को छुपा ले, झूठ को बया कर दे, टीआरपी बढ़ा ले, पत्तेचाटी कर ले और आसानी से पत्रकारिता को अंजाम दे ले, मगर सही मायनों में पत्रकारिता इतनी आसान नही होती है।
एक टीवी चैनल से बात करते हुवे तीन दशकों से इलाहाबाद में पत्रकारिता कर रहे हैं सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया, “मेला प्रशासन जो कह रहा है कि 2 करोड़ लोगों ने स्नान किया ये किसी के गले नहीं उतरेगा। सवा दो करोड़ स्नान करा देना लगता है कि दिव्य कुम्भ है। अब बात दूसरी है कि 33 करोड़ देवता भी जोड़ लें तो बहुत हो सकता है दृश्य और अदृश्य। मेरा मानना है कि दृश्य तो नहीं हो सकता। इससे इतर एक सामन्य विधि से सांख्यकी के जानकार बताते हैं कि एक आदमी को स्नान करने के लिये प्वॉइंट 25 स्कवायर मीटर की जगह चाहिये। उसे नहाने में 15 मिनट का वक्त लगेगा। ऐसे में एक घंटे में 12 हज़ार 500 लोग स्नान कर सकते हैं। अगर 18 घंटे लगातार स्नान चलेगा तो 2 लाख 25 हज़ार लोग ही स्नान कर सकते हैं। कुंभ क्षेत्र में तकरीबन 35 घाट ही बनाये गए हैं; इन घाटों में कितनी भीड़ स्नान कर रही इसकी कोई सटीक विधि मेला प्रशासन के पास नहीं है। यह बात अपर मेला अधिकारी दिलीप कुमार त्रिगुनायक की बातों से स्पष्ट होती है जो कहते हैं, “हमारे यहां जो घाट हैं, स्नान जितने लोग करते हैं आधे घंटे से एक घंटे, इस तरह का एक आकलन होता है। फोटोग्राफ़ी या वीडियोग्राफ़ी से किया जाता है। इसका अभी कोई डिजिटल उस तरह की मैपिंग नहीं है कि इस तरह का आंकड़ा बताया जाए।”
हमने कुम्भ मेले में आये लोगो से और वहा कवरेज कर रहे पत्रकारों से आकड़ो के अनुमान के बारे में बात किया तो यह संख्या कुछ अलग ही दिखाई दे रही है। वहा से कवरेज कर रहे तारिक खान ने बताया कि संख्या लगभग 20 लाख अथवा 22 लाख के करीब होगी। ये करोडो के दावे तो हमारे समझ से परे है। क्योंकि सुबह का जो टाइम था शाही स्नान का उस वक्त भीड़ बहुत थी। हर तरफ सर ही सर थे लेकिन शाम तक उतनी अधिक भीड़ इतनी नहीं थी।
अब बात करे कन्वेंस कि तो बात एकदम अलग समझ आएगी। 50 लाख की आबादी वाले इस शहर में 2 करोड़ लोगों को लाने ले जाने के लिये बड़े पैमाने पर ट्रांसपोटेशन की भी ज़रुरत पड़ेगी। बताते चले कि रेल विभाग ने 37 मेला स्पेशल ट्रेनें चलाई थीं इसमें 200 रेगुलर ट्रेनें भी जोड़ दें और एक ट्रेन में लगभग 3 हज़ार लोगो के आने का क्रम जोड़े तो ये संख्या लगभग 7 लाख होगी। ये ध्यान रखे कि हम एक ट्रेन से 3 हज़ार जोड़ रहे है और रेग्युलर तथा मेला स्पेशल ट्रेनों को जोड़ कर संख्या 237 मान रहे है तो ये संख्या लगभग 7 लाख 11 हज़ार होगी। अब इसमें 500 मेला स्पेशल बस जोड़ लेते है जिससे लगभग एक बस में 100 लोगो को जोड़ ले तो ये संख्या 50 हज़ार होती है हम बसों के एक दिन में दस चक्कर आने की बात भी अगर मान ले तो ये संख्या पांच लाख होती है।
यानी सब मिला कर एक दिन में इसके फेरो से अगर जोड़े भी तो लगभग 25 लाख होते है। साथ में प्राइवेट 1 लाख वाहनों को जोड़े और एक वाहन पर 6 लोगो को जोड़े तो ये संख्या लगभग 6 लाख होगी। अब खुद सोचे कि 50 लाख की आबादी वाले इस शहर में दो करोड़ लोगो ने कैसे डुबकी लगा लिया। इस आकडेबाज़ी का क्या फायदा होता है आखिर। अगर राजनीती में ये आकडे किसी जनसभा के तरफ से होने वाली भीड़ में दावे करे तो समझ आने वाली बात है मगर प्रशासन द्वारा इस तरह के दावे समझ से परे है।
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