अनिला आज़मी
चुनाव सर पर आ चूका है और सभी दल अपनी अपनी रणनीति बनाने में लगे है। जहा एक तरह सपा बसपा गठबंधन ने भाजपा के रातो की नींद उड़ा रखी है। वही दूसरी तरफ भाजपा के ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता दबी ज़बान से इस बात को मान रहे है कि इस बार इस गठबंधन से 30-35 सीट का नुक्सान होने की संभावना है। अगर भाजपा के अन्दर चल रही इस सुगबुगाहट को आधार माने तो कही न कही से भाजपा को ये बड़ा नुक्सान हो रहा है। इस गठबंधन के बाद अगर उपचुनावों के ऊपर नज़र डाले तो इस स्थिति में भाजपा का नुक्सान ही हुआ है। इस उपचुनाव में भाजपा के रथ को रोकने के लिये विपक्ष की रणनीति काम आई थी और बसपा सपा एक पाले से लड़ी तथा कांग्रेस अलग पाले से लड़ी। इसका राजनितिक जानकारों के बातो पर ध्यान देकर अगर असर देखा जाए तो ये भाजपा को नुक्सान पहुचाने वाला होता है।
इसको राजनितिक जानकारों के नज़रिये से देखे तो बसपा और सपा के नाराज़ वोटरों के पास कोई तीसरा आप्शन न होने के कारण वह मत भाजपा के खाते में चला जाता था। वही कांग्रेस के रहने पर यह नाराज़ वोट कांग्रेस के भी खाते में इस बार उपचुनाव में गये। ये भाजपा के हार का मुख्य कारण साबित हुआ। वही विश्व विख्यात बनारसी अडिबाज़ भी इस समीकरण पर अपनी मुहर लगाते दिखाई दे रहे है। उनके अभी तक के विश्लेषण में सरकार अगर भाजपा की बनती भी है तो लंगड़ी सरकार बनेगी और भाजपा का अच्छा खासा नुक्सान होता दिखाई दे रहा है।
अब दूसरी तरफ अगर चुनावों में मतों के % को आधार बना कर देखे तो भाजपा को गठबंधन की कामयाबी रोकने के लिये कुल 51 % से अधिक मतों को पाना होगा। सूत्रों की माने तो अमित शाह का इस बार का एजेंडा 51 प्लस ही रहेगा। अगर 2017 के विधानसभा चुनाव को देखें तो सपा, बसपा और रालोद का कुल वोट शेयर करीब 46 % होता है। वहीं कांग्रेस का वोट शेयर 6.2% है। अगर कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल होती तो यह वोट शेयर करीब 53 % हो जाता है। जबकि बीजेपी, अपना दल और भासपा का वोट शेयर करीब 41.4 % होता है। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो सपा(22.20), बसपा(19.60) का कुल वोट शेयर 41.8 % होता है। वहीं कांग्रेस का 7.5 % वोट शेयर रहा। अगर कांग्रेस भी गठबंधन में होती तो यह वोट शेयर करीब 49.3 % होता है। जबकि बीजेपी(42.30) और अपना दल(1 %) का कुल वोट शेयर 43.30 % था।
इसमें सबसे अधिक ध्यान देने की बात ये है कि वर्त्तमान में अनुप्रिया पटेल का अपना दल और ओमप्रकाश राजभर का भारतीय समाज पार्टी भाजपा से खासी नाराज़ चल रही है। अनुप्रिया की मांगे मान लेने का रास्ता तो दिखाई दे रहा है मगर जिस प्रकार कि मांग अभी ओमप्रकाश राजभर कर रहे है वह वर्तमान में संभव नही दिखाई दे रही है। ओमप्रकाश राजभर लगातार भाजपा के खिलाफ बयानबाजी करते रह रहे है। उनकी नाराज़गी तो यहाँ तक पहुच चुकी है कि उन्होंने सभी सीट पर अपने प्रत्याशी उतारने का भी संकेत दे डाला है। अगर ऐसा होता है तो ये भाजपा के लिये एक बड़ा नुक्सान होगा क्योकि दो सालो में सत्ता के साथ रहकर ओमप्रकाश राजभर ने अपनी ताकत में इजाफा कर लिया है और उनका दल पहले जो केवल पूर्वांचल तक सीमित थे अब उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्सों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है। सब मिलाकर इस बार भाजपा की राज उत्तर प्रदेश में आसान नही दिखाई दे रही है।
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