आदिल अहमद
नई दिल्ली : 12 दिसंबर के कॉलेजियम फैसले पर उठे विवादों के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर ने बुधवार को कहा कि वे इस बात से निराश हैं कि विवादों में रही जजों की पदोन्नति पर शीर्ष अदालत के कॉलेजियम का 12 दिसंबर का फैसला सार्वजनिक नहीं किया गया।
जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम के फैसले को नए कॉलेजियम द्वारा बदलन पर मुझे निराशा हुई। इसे अपलोड किया जाना चाहिए था। इसके पीछे मैं कोई मकसद नहीं देखता। मैं इसलिए भी निराश हूं कि दिसंबर की सिफारिश को अपलोड नहीं किया गया। मुझे इसका कोई इंप्रेशन नहीं है। दिसंबर में एक मीटिंग हुई थी और दस जनवरी की सिफारिश में सब है। किसी को सिफारिश अपलोड करने के लिए कहने का कोई औचित्य नहीं है। अपलोड करने की कोई स्टैंडर्ड प्रैक्टिस नहीं है। एक बार सिफारिश पास होती है तो अपलोड होती है।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि कॉलेजियम की बैठकों में स्वस्थ चर्चाएं होती हैं और सहमति-असहमति इसका हिस्सा है। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम में जो कुछ होता है वह गोपनीय है और विश्वास एक महत्वपूर्ण कारक है। उन्होंने कॉलेजियम की सिफारिशों पर कार्यपालिका द्वारा समय पाबंद तरीके से फैसलों की वकालत की और कहा कि सरकार द्वारा कोई फैसला नहीं किए जाने पर सिफारिशों को स्वीकार माना जा सकता है।
बताते चले कि तीस दिसंबर 2018 को सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति लोकुर उस पांच सदस्यीय कॉलेजियम की चर्चा में शामिल हुए थे। जिसमें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति के लिए जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और जस्टिस राजेंद्र मेनन के नामों की सिफारिश पर कथित रूप से सहमति बनी थी। हालांकि बाद में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना और कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दिनेश माहेश्वरी को पदोन्नत करके शीर्ष अदालत का न्यायाधीश बनाया गया था।फैसले में कथित बदलाव को लेकर पैदा विवाद पर, जस्टिस लोकुर ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद कौन से अतिरिक्त दस्तावेज सामने आए। एक कानूनी पोर्टल द्वारा आयोजित ‘भारतीय न्यायपालिका की दशा’ विषय पर चर्चा में, उन्होंने न्यायपालिका में भाई भतीजावाद के दावों को खारिज किया और कहा कि उन्हें नहीं लगता कि कॉलेजियम व्यवस्था नाकाम हो गई है।
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