आफताब फारुकी
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव सर पर आता जा रहा है। माने या न माने मगर भाजपा के लिये चौतरफा सरदर्द बढ़ता जा रहा है। अभी तक केवल भाजपा की मुखालफत कांग्रेस करती रही। इस दौरान महागठबंधन की सुगबुगाहट ने भाजपा को थोडा सुकून तो दिया था कि सभी विरोधी एक मंच पर आ जायेगे। महागठबंधन की बयार चली भी। सभी दल आये मगर अब इस बीच प्रियंका के सक्रिय राजनीत में आने से जो बल कांग्रेस को मिला है उसको देख कर लगता है कि इस बार लोकसभा चुनावों में कांग्रेस एकला चलो की निति अपना सकती है, वैसे अगर देखा जाये तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए कांग्रेस महागठबंधन की पिच तैयार करने में जुटी हुई थी। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने अपनी रणनीति को नया आयाम दिया है और एक से अधिक राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
इस एकला चलो की निति में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल उनमें से एक हैं। कांग्रेस ने बुधवार को आंध्र प्रदेश में इसकी घोषणा भी कर दी। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने इस संबंध में कहा था कि कांग्रेस आंध्र प्रदेश में सभी 175 विधानसभा सीटों और 25 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी टीडीपी के साथ हमारा गठबंधन केवल राष्ट्रीय स्तर पर है, ऐसे में हम राज्य में टीडीपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे।” ओमन चांडी ने कहा कि वे चुनाव की तैयारियों के बारे में चर्चा करने के लिए फिर 31 जनवरी को एकत्र होंगे। उन्होंने कहा कि राज्य कांग्रेस ने फरवरी में सभी 13 जिलों में एक बस यात्रा निकालने का निर्णय किया है। इसका मतलब यह निकलता है कि कांग्रेस और टीडीपी के बीच आंध्र प्रदेश में कोई महागठबंधन नहीं होगा। दोनों पार्टियों हाल ही तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव में साथ लड़ी थीं, लेकिन चुनाव का नतीजा दोनों पार्टियों के लिए काफी भयानक साबित हुआ। शायद यह वजह है कि दोनों पार्टियां आंध्र प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ना चाहती हैं।
कांग्रेस के लिए टीडीपी तेलंगाना में एक डेड वेट के समान साबित हुई, तो नायडू के लिए आंध्र प्रदेश में कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है। जहां, आंध्र प्रदेश के विभाजन और तेलंगाना के जन्म की अध्यक्षता करने वाली पार्टी के खिलाफ जनता का भारी गुस्सा है। इसके अलावा, विपक्षी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश में कई रोड शो कर रहे हैं और लोगों का समर्थन भी उन्हें मिल रहा है। लेकिन कांग्रेस और टीडीपी की आपसी समझ को हल्के में नहीं लिया जा सकता।चंद्रबाबू नायडू ने इससे पहले साफ किया था कि कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन केवल तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए था और महागठबंधन राष्ट्रीय स्तर के चुनाव के लिए है। अगर रणनीतिक रूप से देखा जाए तो दोनों पार्टियों के लिए अलग-अलग चुनाव लड़ना ही बेहतर रणनीति होगी और यह जगन मोहन रेड्डी की सीटों की संख्या को कम करते हुए टीडीपी विरोधी वोटों को विभाजित करेगा।
वहीं, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के सवाल पर मायावती-अखिलेश यादव के कैंप ने कहा कि कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ना सबसे ज्यादा बीजेपी को प्रभावित करेगा हमे नहीं। कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने से ब्राह्मण और ठाकुर वोट विभाजित होगा, जो बीजेपी के लिए नुकसानदायक साबित होगा।वहीं, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और ममता बनर्जी के बीच किसी भी गठबंधन को लगभग खारिज कर दिया गया है। बंगाल कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ किसी भी तरह का गठजोड़ नहीं चाहती है। जबकि राहुल गांधी ने बीते दिनों ममता बनर्जी की विपक्षी एकता रैली को समर्थन दिया था। कोलकाता में आयोजित इस रैली में राहुल गांधी शामिल तो नहीं हुए, लेकिन उन्होंने अपने प्रतिनिधि अभिषेक मनु सिंधवी और मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा था।
तृणमूल के लिए पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ गठबंधन एक बोझ है, क्योंकि इसका मतलब यह होगा कि कांग्रेस के साथ सीटों को शेयर करना होगा, जो कि तृणमूल संभवतः अपने दम पर जीतेगी। पश्चिम बंगाल में तृणमूल को कांग्रेस की जरूरत नहीं है, क्योंकि पार्टी यहां अपने दम पर कई सालों से परचम लहरा रही है।उधर, प्रियंका गांधी वाड्रा के कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश -पश्चिम की प्रभारी नियुक्त किए जाने के बाद से कांग्रेस में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में शामिल होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कहा था कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर बैकफुट पर नहीं खेलना चाहती वह फ्रंटफुट पर खेलेगी। कांग्रेस ने दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी के साथ संभावित गठबंधन को अभी नकारा नहीं है। शीला दीक्षित ने इसके निर्देश भी दिए हैं। कांग्रेस महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ, तमिलनाडु में डीएमके और कर्नाटक में जेडीएस, बिहार में आरजेडी और झारखंड में जेएमएम के साथ गठबंधन की योजना पर काम कर रही है।
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