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सेवानिवृत कर्मियों पर मेहरबान सरकार, बेरोजगारी को दे रही बढ़ावा

आलोक श्रीवास्तव
सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने सरकारी विभागों में 50 साल से ज्यादा उम्र के अफसरों और कर्मचारियों की कार्य कुशलता की समीक्षा करने के साथ ही कार्य कुशलता में कमी होने पर सेवानिवृत किए जाने का निर्देश जारी किया था। परन्तु वास्तविकता यह है कि सरकारी विभागों में सेवानिवृत के बाद भी कर्मचारी कुर्सी से चिपके हैं, और एक साथ दो-लाभ ले रहे हैं तथा बढ़ती बेरोजगारी को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। स्थिति यह है कि कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है, सेवानिवृत कर्मचारी पेंशन के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
आलोक श्रीवास्तव, लेखक आलोक श्रीवास्तव वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार है. लेख में लिखे गये विचार लेखक के खुद के विचार है.

बावजूद इसके चहेतों को लाभ दिलाने के लिए उन्हें संविदा पर तैनात किया जा रहा है यदि उनके लायक विभाग में जगह नहीं है तो पद का सृजन कर तैनाती दी जा रही है। ऐसा ही एक मामला स्टेट इनोवेशन इन फैमिली प्लानिंग सर्विसेज प्रोजेक्ट एजेंसी (सिफ्सा) का प्रकाश में आया है। उक्त एजेंसी जब अपने शबाब पर थी तो वित्तीय सलाहकार जैसी कोई पोस्ट ही नहीं थी। जब उक्त संस्था अपने संचित निधि से प्रदेश मे स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने के लिये कटिबद्ध है तो ऐसे समय मे अपने किसी चहेते को लाभ देने हेतु शासन स्तर से वित्तीय सलाहकार का पद सृजित करना कहां तक मुनासिब है। संस्था ने शासन से मिली अनुमति के उपरान्त एक विज्ञापन प्रकाशित कराया है, जिसमे एक लाख रुपये मासिक वेतन निर्धारित करते हुए अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष निर्धारित किया गया है।

विदित हो कि 90 के दशक में परिवार नियोजन से जुड़ी सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त प्रयास से प्रदेश में मातृ शिशु दर को कम करने एवं परिवार नियोजन सेवाओं को आगे बढ़ाने के लिए यूएसएआईडी के वित्तीय सहयोग से सिफ्शा का गठन किया गया और कुछ ही समय मे उक्त संस्था ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित किया। आज भी उक्त संस्था अपने बल पर उन्नतशील योजना पूरे देश मे चला रही है। ऐसे में समाज हित मे खर्च होने वाली धनराशि किसी ऐसे सेवानिवृत कर्मी को लाभ पंहुचाने के लिए यदि खर्च की जाती है तो सरकारी धन के दुरुपयोग के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं को जन-जन तक पहुंचाने की बात बेमानी साबित होगी। जबकि सिफ्शा जैसी संस्था को सरकार से कोई धनराशि नहीं दी जाती है।
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