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सरकार की वादाखिलाफी पर आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों में गुस्सा, एकजुट होकर बुलंद की आवाज

प्रत्यूष मिश्रा

बांदा। भारतीय जनता पार्टी की सूबे की सरकार की वादा खिलाफी से नाराज आंगनबाड़ी कर्मचारी एवं सहायिका एसोसिएशन ने आखिरकार काम बंद और कलमबंद हड़ताल शुरू कर दी। सोमवार को विकास भवन परिसर में इकट्ठा हुए सैकड़ों आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने कहा कि जब तक मानदेय बढ़ोत्तरी का शासनादेश सहित हमारी लंबित मांगों का उचित निस्तारण नहीं हो जाता तब तक आंदोलन चलता रहेगा।

संगठन की मंडल अध्यक्ष नीलम वर्मा ने आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को संबोधित करते हुए कहा कि 17 जनवरी 2019 को मुख्यमंत्री को एक मांग पत्र जिलाधिकारी के माध्यम से देकर उचित निस्तारण की मांग की थी। निस्तारण न होने तक काली पट्टी बांधकर केंद्र संचालन कर रहे थे। लेनिक सरकार द्वारा आज तक कोई ठोस निर्णय नहीं आने से हम मजबूर होकर कामबंद, कलमबंद हड़ताल करने को बाध्य हुए हैं। जबकि 7 जून 2018 को मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश तथा संगठन के पदाधिकारियों और आंगनबाड़ियों का मानदेय बढ़ाने के लिए गठित उच्चाधिकारियों के बीच हुई त्रिपक्षीय वार्ता के दौरान मुख्यमंत्री ,ारा मानदेय 10 हजार रुपए मासिक करने पर सहमति प्रदान की गई थी, जिसके परिप्रेक्ष्य में अनुपूरक बजट में उचित धनाशि का प्रावधान करते हुए मुख्यमंत्री द्वारा मानदेय दोगुना करने की घोषणा विधान सभा में भी की गई। लेकिन आज तक शासनादेश जारी नहीं किया गया जो कि हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा किया जा रहा है।

कहा कि वर्तमान सरकार के ,ारा हमसे काम जहां जी करता है अधिकारियों के द्वारा जबरन बिना कोई पारिश्रमिक दिए करवाया जाता है लेकिन जब हम अपना हक और अपनी समस्या की बात कहते हैं तो हमारा मानदेय रोकने सहित हमारे उत्पीड़न के तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। जबकि पड़ोसी राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में 10 हजार से 12 हजार तक मासिक मानदेय हो गया है। मगर उत्तर प्रदेश की सरकार हमारा मानदेय बढ़ाने की घोषणा के बावजूद अब आनाकानी कर रही है और कार्यवाही की धमकी देकर हमारा शोषण करने पर उतारू है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

आंगनबाड़ी कर्मचारी एवं सहायिकाओं को संबोधित करते हुए जिलाध्यक्ष किरन सेठी ने कहा कि मानदेय बढ़ोत्तरी का शासनादेश सहित हमारी लंबित मांगों को उचित निस्तारण नहीं हो जाता तब तक यह हमारा आंदोलन चलता रहेगा। हम भी नहीं चाहते कि बार-बार धरना-प्रदर्शन करना पड़े, लेकिन सरकार हमें मजबूर कर रही है।

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