प्रदीप दुबे विक्की
ज्ञानपुर,भदोही। जनपद में 12 जनवरी को स्कूली बच्चों के बर्न वैन कांड के बावजूद प्रशासन लापरवाह है। विद्यालय प्रबंधकों की हठधर्मिता सेआज भी स्कूली बच्चे आटो रिक्शे में ठूंस-ठूंसकर ढ़ोये जा रहे हैं। ट्रैफिक पुलिस व आरटीओ विभाग सब कुछ देखकर आंखें मूंदे हुए हैं। शायद उसे फिर किसी बड़े हादसे का इंतजार है। बच्चे किसी के भी हो, अमीर या गरीब के मां बाप के लिए बच्चे जान से प्यारे होते हैं। यह वह सोच भी नहीं सकते कि जिस ऑटो वाले के साथ यह अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं, वह उन्हें सिर्फ कमाई का जरिया ही जानता है। ऑटो चालक बच्चों को लगेज की तरह ढ़ूस-ढ़ूंसकर ढ़ोते हैं।
किसी भी स्कूल के छूटते समय ऑटो रिक्शा में दबे सिकुड़े या अधलटके बच्चों को देख मन व्याकुल हो जाता है। यह लगभग हर राहगीर के साथ होता है। ऑटो में बैठे बच्चे हिलने-डुलने को भी मोहताज रहते हैं। वह भले ही इसके बारे में किसी से कुछ भी न कहें, लेकिन उनकी आंखें दर्द बयां कर ही देतीे हैं। वही इसे रोकने के लिए जिम्मेदार यातायात पुलिस व आरटीओ विभाग अपने मुनाफे को गवाना नहीं चाहते। यही कारण है कि जिस ऑटो पर 5 से अधिक बच्चे नहीं बैठने चाहिए उसमें 15 से 20 बच्चे तक ठूंस कर भरे जा रहे हैं।
जबकि हाई कोर्ट का सख्त आदेश है की आटो में 03 व्यस्क या 05 बच्चों से अधिक नहीं बैठाया जाए । लेकिन हर सड़कों पर इस आदेश की अवहेलना स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। स्कूली बच्चों को ऑटो में ठूंस-ठूंस कर स्कूलों में ढ़ोया जा रहा है। ऐसा भी नहीं कि ऑटो किसी तंग गलियों से छिप छुपा कर चलता हो। यह तो धड़ल्ले से मुख्य मार्गो से होते हुए अफसरों के सामने से ही स्कूलों पर पहुंचते हैं। इन बच्चों की हालत पर आरटीओ और यातायात पुलिस को जरा सा भी तरस नहीं आता है। कुछ दिनों तक चालानी कार्रवाई के बाद एक दम से अधिकारी बैठ जाते हैं। फिर बाद में यह भी देखने का प्रयास नहीं करते कि ऑटो पर कितने बच्चे बैठाये जा रहे हैं। यदि समय-समय पर कार्रवाई होती रही, तो ऑटो चालकों व स्कूली प्रबंधकों की मनमानी पर अंकुश लग सकता है। ऑटो रिक्शे नगरों में बड़ी संख्या में धड़ल्ले से चल रहे हैं। यह सब कुछ यातायात पुलिस और आरटीओ के शह पर हो रहा है।
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