आदिल अहमद
: इस समय अमरीका और रूस के बीच शब्दिक युद्ध तेज़ हो गया है और दोनों ही देश जिस दिशा में आगे जा रहे हैं उससे टकराव की आशंका बढ़ी है।
अमरीकी विदेश मंत्रालय ने अमरीका को निशाना बनने पर सक्षम मिसाइल तैनात करने की रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन की धमकी के जवाब में कहा है कि रूस शुरू से ही समझौते का उल्लंघन कर रहा था और उसने मध्यम रेंज के मिसाइलों का कार्यक्रम शुरू से ही जारी रखा था लेकिन पर्दे के पीछे।
अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के हवाले से मीडिया में ख़बर है कि अमरीकी सरकार यह समझती है कि रूस ने दोनों देशों के बीच होने वाले समझौते का उल्लंघन किया और अब उस पर पर्दा डालने के लिए रूस की ओर से इस प्रकार के बयान दिए जा रहे हैं जिससे यह प्रतीत है कि अमरीका इस समझौते का उल्लंघनकर्ता है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन ने बुधवार को कहा कि यदि अमरीका ने यूरोप में रूस को निशाना बनाने वाले मिसाइल तैनात किए तो रूस मजबूर होकर वह मिसाइल तैनात करेगा जो अमरीका की धरती को निशाना बनाने में सक्षम होंगे।
अगर घटनाओं को देखा जाए तो यह समझना आसान है कि दूसरे देशों की धरती पर एक दूसरे की ताक़त आज़माने के बाद अब अमरीका और रूस आमने सामने एक दूसरे को ललकारने लगे हैं। बुधवार को रूसी राष्ट्रपति ने अपने महत्वपूर्ण वार्षिक भाषण में कहा कि हमारी विदेश नीति की प्राथमिकता विश्वास निर्माण पर आधारित है, हम दुनिया के सामने उत्पन्न होने वाले ख़तरों का मिलकर मुक़ाबला करने में विश्वास रखते हैं, हम आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बढ़ाना चाहते हैं हम शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में सहयोग करना चाहते हैं। हम लोगों के एक दूसरे से संपर्क के मार्ग में आने वाली रुकावटें दूर करने पर कटिबद्ध हैं। हम अमरीका को दावत देते हैं कि वह खुद को सुपर पावर समझने वाली ग़लतफ़हमी दूर कर ले।
पुतीन ने अपने मिसाइलों की गुणवत्ता के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि उनके नई मिसाइल की रफ़तार आवाज़ की रफ़तार से ९ गुना अधिक है। पुतीन ने रूस की पनडुब्बियों की विध्वंसक ताक़त बताई। मगर साथ ही यह भी कहा कि हम अमरीका से टकराव के इच्छुक नहीं हैं।
इस समय अमरीका को यह हक़ीक़त साफ़ तौर पर नज़र आ रही है कि उसने शीत युद्ध के दौरान बड़ी मेहनत से जिस सोवियत संघ को पराजित करके ख़ुद को दुनिया का एकमात्र सुपर पावर घोषित कर दिया था वही रूस अब अमरीका की सुपर पावर की स्थिति को ललकार रहा है।
अमरीका के सामने समस्या यह है कि उसके पारम्परिक घटक भी उससे दूर हो रहे हैं। कनाडा से अमरीका के विवाद बढ़ गए हैं और द्विपक्षीय समझौतों के बारे में अब दोनों देशों के बीच सहमति का अभाव है। नैटो में शामिल अमरीका के घटकों के साथ भी वाशिंग्टन के संबंधों में तनाव आ गया है। चीन के साथ तो अमरीका का आर्थिक युद्ध चल रहा है।
दूसरी ओर रूस है जिसने नए सिरे से अलग अलग देशों से गठजोड़ किए हैं। रूस रूस ने तुर्की और ईरान से गठजोड़ कर लिया। रूस ने सीरिया में बड़ी भूमिका निभाई, रूस ने इस्लामी गणतंत्र ईरान जैस देशों के साथ एलायंस बनाया है जो इलाक़े में तेज़ी से अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने वाला देश है।
इन तथ्यों को सामने रखकर देखा जाए तो यह हक़ीक़त साफ़ नज़र आती है कि अमरीका के प्रभाव का दायरा तेज़ी से सिकुड़ता जा रहा है और रूस अपनी सफल नीतियों की मदद से नए नए गठजोड़ बना रहा है।
इन परिस्थितियों में रूस की तो कोशिश यही होगी कि अमरीका से प्रत्यक्ष टकराव की नौबत न आए क्योंकि हालात का रुख़ रूस के पक्ष में है और बीतते समय के साथ हालात रूस के लिए और भी अनुकूल होते जाएंगे। मगर देखना यह है कि इस वर्तमान प्रक्रिया को अमरीका कहां तक सहन कर पाता है?
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