आफ़ताब फ़ारूक़ी
सऊदी अरब ने जिसे वहाबियत का पालना समझा जाता है, हालिया वर्षों में पश्चिम एशिया सहित दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में आतंकवाद का ख़ास तौर पर तकफ़ीरी आतंकवाद का व्यापक समर्थन किया है।
चरमपंथी वहाबी विचारधारा कि जिसका सऊदी अरब प्रचार प्रसार करता है, दाइश जैसे आतंकवादी गुटों का वैचारिक स्रोत समझी जाती है। जैसा कि जर्मन संसद में वामपंथी धड़े की प्रमुख सारा वागन केनेश्त का दाइशी आतंकवाद के विस्तार के कारण की समीक्षा में कहना है कि आतंकवाद पश्चिम एशिया में अमरीका और उसके घटकों की जंगों का नतीजा है।
इस समय योरोप ने, जिसे हालिया वर्षों में चरमपंथियों के आतंकवादी हमले का सामना है, इस विषय पर देर ही से सही प्रतिक्रिया दर्शायी है। इस परिप्रेक्ष्य में योरोपीय आयोग ने शुक्रवार को सऊदी अरब का नाम उन देशों की सूचि में शामिल किया है जो योरोपीय संघ के लिए ख़तरा हैं और इसका कारण योरोपीय संघ ने इन देशों की आतंकवाद की वित्तीय मदद को रोकने में लापरवाही कहा है।
इसके साथ ही पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के शासन काल के अंतिम दिनों में जास्टा नामक क़ानून के पारित होने से आतंकवाद के समर्थन में सऊदी शासन के रोल की पुष्टि हो गयी। अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि सऊदी अरब ने 11 सितंबर की घटना अंजाम देने वालों की मदद की और इस तरह वह भी इस हमले में लिप्त रहा है। ख़ास तौर पर इस बात के मद्देनज़र कि 11 सितंबर की घटना में सऊदी अरब के कुछ वरिष्ठ अधिकारी और शहज़ादे भी लिप्त बताए जाते हैं। (
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