संजय ठाकुर /मुकेश यादव
मऊ/ कहने को तो केंद्र की भाजपा सरकार ने अंतरिम बजट पेश कर मतदाताओं पा जाल फेंका है।पर यह अन्तरिम बजट न होकर वोटों का लेखा जोखा है,बजट के अवलोकन से लोगों के मन मे उत्साह भी आया होगा,पर कहीं ये बजट ऐसा तो नही की चराग़ बुझने से पहले उसकी लौ तेज़ हो गयी हो?चुनाव जबकि सर पर है ऐसे में जुमलों की भरमार ही लगता है यह बजट।
देश मे शिक्षा,स्वास्थ्य,और रोजगार का बुरा हाल है।पर यह सरकार शिक्षा बजट में भारी कटौती करके क्या अनपढ़ रहेगा इंडिया के नारे को प्रभावी बनाना चाहती है।शिक्षा बजट में सीधे 45 हज़ार करोड़ से 20 हज़ार करोड़ की कटौती कर दी गयी है।किसानों की आमदनी दुगना करने का नारा देने वाली सरकार किसानों को 500 रुपये महीने देने की बात करके उनका मजाक उड़ाने पर आमादा है।500 रुपये देकर किसानों को कौन सी राहत देने का बीड़ा उठाया है।मोदी सरकार ने आज के मंहगाई के दौर में किसानों को 6 हज़ार रुपये सालाना देकर उनकी एक बीघा फसल की बुवाई का भी बंदोबस्त नही किया है।किसानों के बैंकों में जो खाते हैं,उनपर हर तिमाही मिनिमम चार्जेज की कटौती के बराबर रह जायेगी ये रक़म।
बेरोजगार युवाओं को नौकरी देने की बात करने वाली सरकार ने ये नही बताया कि वो वो कौन से साधन उपलब्ध करा पाई जिसमे बेरोजगार नौजवान को आशा की किरण दिखाई पड़े। पूंजीगत प्राप्तियों के मामले में पिछले वित्त वर्ष 2018-19 के लिए तय 80 हज़ार करोड़ रुपये विनिवेश से करीब 35 हज़ार करोड़ रुपये जुटाए जा सके हैं।
उद्दोग जगत को पिछले 10 वर्षों से 1.86 लाख करोड़ रुपये का सालाना पैकेज दिया जा रहा है।जिसका अब कोई आर्थिक आधार नहीं है।इसे खत्म कर देना चाहिए।गरीब किसान को 500 रुपये महीना मदद से क्या किसानों के क़र्ज़ में डूबकर आए दिन हो रही आत्महत्या करने की घटनाओं में कोई कमी के आसार हैं,ऐसा क़त्तई प्रतीत नही होता,कुल मिलाकर यह बजट चुनावी रूप से वोटों का लेखा जोखा ही लगता है।
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