इमरान अख्तर
नई दिल्ली : राफेल मुद्दे पर घिरी मोदी सरकार के लिये आज का दिन शायद अच्छा तो नही था। राफेल सौदे का मुद्दा आज शुक्रवार को संसद में छाया रहा जहां विपक्ष ने एकजुट होकर एक अखबार की खबर का हवाला देते हुए मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने तथा प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग की। वहीं सरकार ने आरोप लगाया कि विपक्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों और निहित स्वार्थ से जुड़े तत्वों के हाथों में खेल रहा है और उसका प्रयास गड़े मुर्दे उखाड़ने जैसा है।
बताते चले कि एक अंग्रेज़ी अखबार द हिंदू की ख़बर के मुताबिक अखबार ने दावा किया है कि रक्षा मंत्रालय तो सौदे को लेकर बातचीत कर ही रहा था, उसी दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय भी अपनी ओर से फ्रांसीसी पक्ष से ‘समांतर बातचीत’ में लगा था। अखबार के मुताबिक 24 नवंबर 2015 को रक्षा मंत्रालय के एक नोट में कहा गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय के दखल के चलते बातचीत कर रहे भारतीय दल और रक्षा मंत्रालय की पोज़िशन कमज़ोर हुई। रक्षा मंत्रालय ने अपने नोट में तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का ध्यान खींचते हुए कहा था कि हम प्रधानमंत्री कार्यालय को ये सलाह दे सकते हैं कि कोई भी अधिकारी जो बातचीत कर रहे भारतीय टीम का हिस्सा नहीं है। उसे समानांतर बातचीत नहीं करने को कहा जाए। इस रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की ओर सीधे पीएम मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने इसमें घोटाला किया है। इस रिपोर्ट पर सदन में भी हंगामा हुआ।
इस हंगामे पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने अखबार पर सवाल उठाते हुए कहा, “एक समाचारपत्र ने रक्षा सचिव की नोटिंग को प्रकाशित किया। अगर कोई समाचार पत्र एक नोटिंग को छापता है, तो पत्रकारिता की नैतिकता की मांग है कि तत्कालीन रक्षामंत्री का जवाब भी प्रकाशित किया जाए। “दूसरी ओर समाचार एजेंसी एएनआई की पहुंच उस दस्तावेज़ तक बनी है, जिसमें तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने रक्षा मंत्रालय के राफेल सौदे से जुड़े असंतुष्टि नोट पर जवाब दिया था जवाब में लिखा था कि – “रक्षा सचिव जी. मोहन को प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव से सलाह-मशविरा कर इस मुद्दे को हल करना चाहिए।” पूर्व रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने भी बयान दिया है कि राफेल की कीमत को लेकर रक्षा मंत्रालय ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी।
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