तारिक आज़मी
नई दिल्ली। वर्त्तमान सरकार का आखरी संसद सत्र समाप्त हो चूका है। भले ही लोकसभा में संख्या बल के माध्यम से भाजपा सरकार को किसी प्रकार की कोई दिक्कत नही आई हो मगर, राज्यसभा जहा भाजपा अल्पमत में हमेशा रही उसमे भाजपा को लगातार दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इसी तरह आखरी दिन भी राज्यसभा में भाजपा को विरोध का सामना करना पड़ा और उसके ट्रीपल तलाक तथा नागरिकता बिल 2016 पर सहमति न बन सकी। जिसके कारण ये दोनों बिल राज्यसभा में लटक कर रह गये। लोक सभा में पास हुवे ये दोनों बिल कल 13 जनवरी को राज्यसभा में पेश ही नही हो सके और अब इन दोनों बिलों को पास होने का लम्बा इंतज़ार करना पड़ सकता है अथवा शायद पास ही न हो सके।
बताते चले कि यदि कोई बिल राज्यसभा में पास होकर लोकसभा में रुक जाए अथवा लोक सभा में पास होकर राज्य सभा में रुक जाए तो नई सरकार होने पर ये बिल फिर से दोनों सदनों में पेश किया जाता है। अब जब मोदी सरकार के लिए राज्यसभा का आखिरी सत्र समाप्त हो गया है। इसके साथ ही लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र महत्वपूर्ण माने जा रहे ट्रिपल तलाक़ और नागरिकता बिल-2016 भी रद्द हो गए हैं। बताते चले कि ये दोनों ही बिल लोकसभा में पास हो चुके थे, लेकिन आज 13 जनवरी को सत्र के आखिरी दिन भी इन्हें राज्यसभा में पेश नहीं किया गया।
लोकसभा की प्रक्रिया के अनुसार लोकसभा में पेश किया गया कोई भी बिल अगर किसी भी सदन में लंबित है तो वह सरकार के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाता है। अगर कोई बिल राज्यसभा में पेश हुआ है और पास भी हुआ है, लेकिन लोकसभा में लंबित है तो वो भी रद्द हो जाता है।
अब अगर ट्रिपल तलाक़ और नागरिकता बिल को लेकर नया कानून बनाना है तो अगली सरकार के आने के बाद इन्हें दोबारा लोकसभा और राज्यसभा में पास कराना होगा। इस प्रकार से भाजपा लोकसभा चुनावों में जिस मुद्दे पर मतों का फायदा उठाना चाहती थी वह कही न कही से लटक गया है। इस प्रकार अब ट्रिपल तलाक के मामलों में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था ही आखिरी दिशा-निर्देश हैं। अब सरकार के पास दूसरा रास्ता अध्यादेश लाकर कानून बनाने का है, लेकिन लोकसभा चुनावों को देखते हुए अब उसको ये साबित करना होगा कि ये बिल देश के लिए बेहद ज़रूरी हैं और इमरजेंसी के हालत हैं। जैसा संभव प्रतीत नही हो रहा है। हालत के मद्देनज़र माना जा रहा है कि जल्दी ही आचार संहिता लागू हो जाएगी। इस प्रकार इसकी संभावना न के बराबर है।
बताते चले कि जहा एक तरफ तीन तलाक के मामले में अल्पसंख्यको के मुस्लिम समुदाय में भारी नाराज़गी है। मुस्लिम वर्ग इसको अपने धार्मिक अधिकारों पर हमला मान कर चल रहा है। इसके ऊपर शरियत के हवाले से भी काफी बाते निकल कर सामने आई जिसमे आलिमो ने तीन तलाक को शरियत में बिदत बताया है। इस्लाम धर्म में एक साथ तीन तलाक बिदत है। बिदत का तात्पर्य अरबी भाषा में प्रतिबंधित से होता है। आलिमो का कहना है कि जो चीज़ शरियत में खुद प्रतिबंधित है उसके मामले को इस प्रकार से तुल देकर उसको अपराधिक कृत्य करार देने से इसके दुरूपयोग शुरू हो जायेगे।
इसी प्रकार नागरिकता विधेयक का पूर्वोत्तर राज्यों में बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। इस विधेयक पर चर्चा के लिए तीन घंटे आवंटित किए गए थे, लेकिन इसे पेश ही नहीं किया जा सका। सरकार को तीन तलाक मुद्दे पर विपक्षी दलों के उग्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा रहा है। हालांकि पीएम मोदी इन दोनों बिलों को लेकर काफी गंभीर थे और उन्होंने पहले ही साफ़ कर दिया था कि वो राज्यसभा में इन्हें पास करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 के माध्यम से सरकार अवैध घुसपैठियों की परिभाषा की फिर से व्याख्या करना चाहती है। इसके जरिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन कर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। हालांकि इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों (शिया और अहमदिया) को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है। इसके आलावा, इस विधेयक में 11 साल तक लगातार भारत में रहने की शर्त को कम करते हुए 6 साल करने का भी प्रावधान है। इसके उलट नागरिकता अधिनियम, 1955 के मुताबिक वैध पासपोर्ट के बिना या फर्जी दस्तावेज के जरिए भारत में घुसने वाले लोग अवैध घुसपैठिए की श्रेणी में आते हैं। अब देखने वाली बात होगी कि जिस दो मुद्दों को लेकर डिबेट से लेकर मंचो तक भाजपा द्वारा मामले को भुनाने का प्रयास किया गया था अब उसके सम्बन्ध में अध्यादेश लाकर क्या भाजपा कानून बनाने का कदम उठती है अथवा चुनावों के बाद नई सरकार बन जाने का इंतज़ार भाजपा द्वारा किया जायेगा।
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