तारिक आज़मी,
हम कहते है साहब मगर कोई मानता ही नही है। हम कहते थे कि दालमंडी में ले ढिशुम ढिशुम के आगे भी कुछ है और पीछे तो बहुत कुछ है मगर चच्चा मानते ही नहीं रहे। हम तो कह रहे थे चच्चा रेस्ट कर लो न। मगर चच्चा है कि माने को तैयार नही। मगर आज एक बात तो समझ में आई कि दालमंडी में मेरे चाहने वाले खूब है। वो एक शेर है न कि हर मोड़ पर मिल जाते है मुझे हमदर्द हजारो, लगता है मेरी बस्ती में अदाकार बहुत है।
साहब आज सुबह से कई चच्चा लोग एकदम पीछे पड़े रहे। एक तो काका की तरह कह बैठे का गुरु अब ले ढिशुम ढिशुम दे ढिशुम ढिशुम नही लिखोगे। हम भी ख़ामोशी की चादर ओढ़े बैठे थे। क्यों ? क्योकि हम हकीकत की तह तक जाना चाहते थे। इस बार ले ढिशुम ढिशुम को मजाकिया ही नही गहरे जाकर देखना चाहते थे कि आखिर चक्कर इस बार क्या है ? हम देखना चाहते थे कि थाने के अन्दर वालो के लिए बाहर गेट पर दुसरे के पैसो का पान खाकर गुलगुले लफ्जों की ताबीर क्या हो रही है।
बड़ी कसक रह जाती थी जानकार कि ढिशुम ढिशुम की वजह परदे के पीछे कुछ और थी। मगर पेन दुबारा रगड़ने का मौका ही नही मिलता थे। इस बार हम आराम से सुस्ता के खबरिया लिखना चाहते रहे तो दिन भर सौतनो की सहेलियों जैसे कई ताने झेल लिए। वैसे बहुत खूब तार्रुफ़ है इन फिज़ाओ की गुलिस्ता का। तो हम भी समझ रहे थे कि हर फोन के पीछे आवाज़ ये दिलकश किसकी है।
एक भवन दालमंडी के गोविन्दपूरा में है। मकान का नंबर है सीके 43/163 जो सरकारी कागजातों में साबिर इलाही के नाम पर दर्ज है। इस मकान के एक हिस्से में बने जर्जर कमरे (ये शब्द मैं नही बल्कि पुलिस रिकार्ड और माननीय उच्च न्यायालय का आदेश कह रहा है महोदय) को ध्वस्त करने का सुबह लगभग 6 बजे काम हो रहा था। इस हिस्से पर अमीर हसन पुत्र लाडले बतौर किराये पर रहते थे (साहब ये भी मैं नही कह रहा हु सरकारी रिकार्ड, सुलहनामा और न्यायालय तथा किरायदार द्वारा पोस्टआफिस के माध्यम से भेजा गया किराये की पर्ची कह रही है)। उस हिस्से को तोड़ते समय उक्त संपत्ति के ठीक सामने रहने वाले किरायदार को आपत्ति हुई और फिर शुरू हुआ सिलसिला दे धडाम धडाम, ले धडाम धडाम का। सिलसिला इतना ज़बरदस्त था कि साहब कुछ देर को अफरातफरी का माहोल पैदा हो गया। इस माहोल में एक पक्ष जो मकान मालिक का था वह खुले प्लाट पर था और दूसरा पक्ष किरायदार वाला ऊपर अपने रिहायशी भवन में थे। ये सिलसिला थोडा जमकर चला और करीब दस मिनट तक पत्थरबाजी हुई।
इस बीच किसी ने सुचना 100 पर दे दिया। सुचना पाकर दालमंडी की पेचीदा दलीलों सरीखी इस गली में तत्काल फैंटम पहुचती है और दोनों पक्ष को लेकर थाने आ जाती है तथा दोनों पक्ष को थाने में पुरे सम्मान के साथ बैठा दिया जाता है। मामला इतनी सुबह का था और पुलिस के पहुचने के पहले ही क्षेत्र के लोग हस्तक्षेप कर चुके थे तो बात और आगे नही बढ़ी। मगर कुछ लोगो को पेट में दर्द सिर्फ इस वजह से होने लगी कि सुबह सुबह 6 बजे मौके पर थानेदार क्यों नही आये। असल में थानेदार साहब को आना चाहिये था क्योकि ये लोग वीवीआईपी से थोडा ऊपर की श्रेणी के है न। खास तौर पर ये पेट में दर्द क्षेत्र के एक बहुत बड़े पत्रकार महोदय को हो रही थी। दर्द की और भी कुछ वजह है मगर अभी उसको बताना सही नही होगा। दर्द तो पेट में इतनी हुई कि खुद सुबह सुबह सोशल मीडिया पर उल्टिया कर रहे थे। साथ में दुसरे साथियों को भी भेज रहे थे कि मैं उलटिया कर रहा हु अब तुम भी करो। साथी अगर सो रहा था तो सीधे फोन करके जगा जगा कर कहा जा रहा था कि उलटिया करो मौके पर थानेदार नही आये केवल फैंटम के दो सिपाही आये।
अरे गुरु पहले से थानेदार को बता दिया होता तो थानेदार साहब एक ट्रक पीएसी की मांग करके लेकर साथ में पहुच जाते। अमा गलियों के अन्दर कंट्रोल रूप को मिली विवाद की सुचना पर फैंटम ही जायेगी न। या फिर पूरी फ़ोर्स विवाद के नाम पर पहुच जायेगी। कमाल करते हो राजा बाबु आप भी। खैर छोड़े ये तो साहब के आदत में शुमार है। उनको कोई खास तवज्जो देने की ज़रूरत नही है। हम असली स्टोरी पर आते है। थाने पर बैठे दोनों पक्षों के बीच बात हुई। थानेदार की उपस्थिति में भी बात हुई। मामला सबके समझ आ चूका था। आखिर में थानेदार साहब को दोनों पक्षों ने तहरीर दिया कि विवेचना हो जाए मामले की। दोनों तहरीर के बाद दोनों पक्षों के मिला कर तीन लोगो का शांति भंग में चालान कर दिया गया। तीनो ने अदालत में ज़मानत करवाया और बाहर निकल कर दो चाय की चुस्की लिया और वापस घर आकर बिरयानी का आनंद लिया। अब हम बताते है कि आखिर उस भवन का मामला क्या है ?
क्या है आखिर उस भवन का मामला
पूरा मामला हम आपको बताने से पहले बताते चले कि हमारे द्वारा इस भवन के सम्बन्ध में जो जानकारी प्रदान किया जा रहा है उसके अदालती आदेश और साक्ष्य उपलब्ध है, किसी को आपत्ति होने पर हमसे संपर्क कर सकता है। भवन संख्या सीके 43/163 मोहल्ला गोविन्दपुरा दालमंडी में एक जर्जर भवन था। वर्तमान मालिक साबिर इलाही ने कागज़ातो को दिखाते हुवे और हवाला देते हुवे बताया कि इस भवन पर वर्ष 1948 तक खलील का नाम दर्ज था। इसी वर्ष यानी सन 48 में एक वाद का निस्तारण करते हुवे सम्बंधित अदालत ने फैसला सुनाते हुवे इस भवन की डिग्री किया था और वह नीलामी में तत्कालीन व्यापारी रज्जाक ताले वाले ने ख़रीदा था। रज्जाक ताले वाले की फौत के बाद उनके वारिसो ने उक्त भवन को वर्ष 2011 में साबिर इलाही को बेच दिया। उसके बाद सरकारी रिकार्ड और कागज़ातो में साबिर इलाही का नाम दर्ज हो गया। इस भवन में कई किरायेदार थे। जिनमे एक किरायेदार अमीर हसन पुत्र लाडले भी है।
भवन की जर्जर हालात देख कर नगर निगम ने इसको गिरवाने के निर्देश भवन मालिक को जनहित में जारी किया। इस सम्बन्ध में साबिर इलाही के द्वारा 133 के तहत कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया गया। इसके उपरांत सम्बंधित न्यायलय ने इसको गिराने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद कुछ किरायदार इस फैसले के विरोध में हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा डाले। इस प्रकरण में हाई कोर्ट ने भी 20 नवम्बर 2018 को आदेश जारी करते हुवे स्थानीय पुलिस बल के साथ मकान को तोड़ने का आदेश दे दिया।
अधिकतर किरायदारो द्वारा भवन स्वामी से इसके निर्माण के बाद वापस नई किरायदारी की शर्त पर समझौता करके जगह को खाली कर दिया गया। मगर अमीर हसन खाली नही किये थे। इधर उच्च न्यायालय के आदशो का पालन न होने पर भवन स्वामी साबिर इलाही ने फिर हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और हाई कोर्ट ने 5 दिसंबर 2018 को आदेश पारित करते हुवे आदेशो का पालन न करने की स्थिति में पुलिस प्रशासन को तलब कर लेने का आदेश दे डाला।
इस आदेश के अनुपालन में दिनांक 15 दिसंबर 2018 को स्थानीय चौक पुलिस ने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में भारी फ़ोर्स के साथ भवन को तोडवाना शुरू कर दिया। और रात होने की स्थिति में ताला बंद कर बाकी हिस्सा तोड़ सकने का निर्देश भवन स्वामी को देते हुवे उक्त भवन की चाभी भवन स्वामी को प्रदान कर दिया। इस सम्बन्ध में इन शब्दों की पुष्टि करता हुआ तत्कालीन एसएसआई चौक चन्द्र प्रकाश कश्यप के रिपोर्ट को आधार मान माननीय उच्च न्यायालय में वाराणसी पुलिस ने अपना जवाब दाखिल कर दिया। इसी दौरान जब अमीर हसन के कब्ज़े वाले हिस्से को तोडवाने की बात हुई तो अमीर हसन ने क्षेत्र के संभ्रांत नागरिको के सामने एक सुलहनामा किया और जगह को दो महीने में खाली करने का वचन दिया। ये सुलहनामा वाराणसी कलक्ट्री के जिला पंचायत भवन के केजीएन कम्पूटर द्वारा तैयार मसौदे की बिना पर दिनांक 27 दिसंबर 2018 को हुआ था। इस सुलहनामे में उक्त जगह दो माह में खाली करने की बात स्पष्ट लिखने के अलावा उसके स्थान पर नया भवन निर्माण के बाद दूकान दिए जाने की भी रजामंदी हो गई थी।
अब सूत्रों और क्षेत्र में व्याप्त चर्चोओ को आधार लेकर विवाद के मुद्दे पर आते है। अचानक इस सब कार्यवाही के बाद एक मकान के खुद को मालिक कहने वाले और आते है और न्यायालय में वाद दाखिल करते है। वाद सेराज नामक एक व्यक्ति द्वारा दाखिल होता है जो खुद को भवन का पॉवर आफ अटार्नी होल्डर बताता है। वाद में दावा किया जाता है कि सिराज ने उक्त पावर आफ अटार्नी इलाहाबाद के निवासी किसी कुरैशी से लिया गया है। उक्त कुरैशी ने भी खुद को पॉवर आफ अटार्नी होल्डर बताते हुवे कहा है कि उसको भवन के 1948 में स्वामी रहे खलील के बेटे ने पॉवर आफ अटार्नी दिया है। और खलील की फौत 1996 में हो गई है। खैर वाद न्यायालय में है और न्यायालय गुण दोष के अनुसार उसका निस्तारण करेगा। हम इस सम्बन्ध में कुछ भी नही कहना चाहते है।
क्या है विवाद का मुख्य सूत्र
मगर क्षेत्रीय चर्चोओ पर अगर कान धरे तो इस विवाद का कारण समझ आ सकता है। सूत्र बताते है कि वाद तो किसी सेराज ने दाखिल किया है मगर उसकी मुक़दमे की पूरी पैरवी क्षेत्र के रहने वाले खुद को हुक्मराने-ए-दालमंडी समझने वाले एक सज्जन कर रहे है। बताते चले कि ये जो खुद को हुक्मराने-ए-दालमंडी समझते है इनके विरुद्ध क्षेत्र की जनता ने कई बार सट्टा कारोबार चलाने की शिकायत दिया था। फिर उसके बाद पूर्व चौकी इंचार्ज जमीलुद्दीन खान ने दशको से चले आ रहे दालमंडी के जुआ पर ऐसी लगाम कस डाली कि वह बंद ही हो गया।
खैर वो तो विभाग का अपना कार्य क्षेत्र है हम क्यों बताये कि सूत्र बताते है कि अब एक बार फिर दालमंडी के कुछ सटोरियों ने अपने सर उठाने शुरू कर दिए है और आईपीएल दरबार लग रहा है। हम तो बात आज के विवाद की कर रहे है। मियाद पूरी होने के बाद भवन स्वामी साबिर इलाही ने उक्त हिस्सा खाली करने को कहा। वही किरायदार का कहना था कि भवन के एक नही दो मालिक है। मामला अधर में लटकाओ। क्योकि कौन मालिक है मकान का उसका फैसला मैं नही न्यायलय करेगा।
बात तो किरायदार की भी सौ फिसद सही है। बस हज़म होने वाली एक बात नही समझ आई कि अगर किरायदार जब फैसला न्यायालय पर छोड़ रहा है कि वह फैसला करेगा तो बिलकुल सही है कि सम्मानित न्यायलय ही फैसला कर सकता है कि कौन सही कौन गलत, मगर हमारा सवाल ये है कि उक्त वाद के दाखिल होने के बाद फिर किरायदार द्वारा साबिर इलाही से समझौता क्यों किया गया जो दिनांक 27 दिसंबर 2018 को हुआ था। चलिए मान लेते है कि किरायदार को मालूम नही था कि कोई ऐसा वाद दाखिल हुआ है। मगर फिर एक सवाल उभर का आता है सामने कि फिर उसी किरायदार के द्वारा 13 मार्च 2019 को ईएम्ओ संख्या 134493523748466080 द्वारा रुपया 300 के किराये का मनीआर्डर वाराणसी कैंट ब्रांच से जो दिनांक 12 मार्च को बुक हुआ था क्यों भेजा गया ?
खैर विवादों का क्या है विवाद तो चलते ही रहते है। मगर चर्चोओ के अनुसार इस दो लोगो के बीच कोई तीसरा बाजीगरी दिखा रहा है। वैसे हमको क्या भाई हमसे कई लोग सुबह से कह रहे थे कई लोगो की मांग थी तो ले भाई मांग पूरी हो गई।
दालमंडी के चल रहे हमारे विशेष सीरिज़ में जल्द ही हम खुलासा करेगे कि कौन है जेल में बैठ दालमंडी में अपना सिक्का चलाने वाले अपराधी का दाहिना हाथ। तफ्तीश जारी। जुड़े रहे हमारे साथ।
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