आदिल अहमद
महाराष्ट्र के नासिक ज़िले की एक विशेष टाडा अदालत ने आतंकवाद से जुड़े 25 साल पुराने एक मामले में 11 मुसलमानों को बरी कर दिया है।
“द वायर” के अनुसार विशेष टाडा न्यायालय के जज जस्टिस एस.सी. खाती ने सबूतों के अभाव और आतंकवादी और विघटनकारी क्रियाकलाप (निरोधक) अधिनियम के दिशानिर्देशों के उल्लंघन का हवाला देकर इन लोगों को बरी करने का आदेश दिया है। यह भी आरोप था कि ये लोग महाराष्ट्र के नासिक और भुसावल शहरों से अपने कथित आतंकी संगठन के लिए युवाओं की भर्ती करने की कोशिश कर रहे थे। एनजीओ जमीयत उलेमा ने इन 11 लोगों को क़ानूनी सहायता प्रदान की थी। इन सभी 11 लोगों को 28 मई 1994 को देश के विभिन्न भागों से गिरफ्तार किया गया था और उन पर बाबरी मस्जिद गिराए जाने का बदला लेने और आतंकी प्रशिक्षण हासिल करने के आरोप लगाए गए थे।
इन 11 आरोपियों में एक डॉक्टर और एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर भी शामिल है। इन पर महाराष्ट्र के भुसावल के एक रेलवे स्टेशन और बिजली संयंत्र पर बम रखने की साजिश रचने का आरोप है। मई 1994 में इन्हें हिरासत में लेने के बाद आरोपियों को कुछ महीनों के भीतर ज़मानत दे दी गई। आरोपियों के ख़िलाफ़ टाडा लगाए जाने को लेकर संदेह की वजह से मामला 25 बरस से अटका हुआ था। नवम्बर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करके मामले की सुनवाई तेज़ी से करने का आदेश दिया था। जमीयत उलेमा की लीगल सेल के प्रमुख गुलज़ार आज़मी ने कहा कि न्याय मिला लेकिन इन लोगों ने अपने जीवन के क़ीमती साल खो दिए। इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? क्या सरकार इसकी भरपाई कर पाएगी और इनका सम्मान लौटाएगी?
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